Tuesday, May 8, 2012

मदद के हाथ

सलीम अख्तर सिद्दीकी
रात के लगभग 11 बजे थे। हाईवे पर ट्रैफिक पूरी रफ्तार से दौड़ रहा था। एक कार से थोड़ा आगे बाइक पर एक युवा अपनी मस्ती में स्पीड से जा रहा था। अचानक उसके सामने एक कुत्ता आ गया। उसने तेजी से ब्रेक लगाए। कुत्ता तो तेजी से सड़क पार कर गया, लेकिन पीछे से आती कार ने युवक को जोरदार टक्कर मार दी। वह बाइक से उछलकर सड़क पर जा  गिरा। बाइक घिसटती हुई डिवाइडर से टकराकर बंद हो गई। हादसा इतनी तेजी से हुआ कि कोई समझ नहीं पाया कि क्या हुआ। आते-जाते वाहनों के पहिए थमे और उसमें से उतरकर लोग उसके चारों ओर जमा हो गए। युवक बेहोश था। उसे किसी ने छूने की हिम्मत नहीं दिखाई। लोग जबानी हमदर्दी जताते रहे। भीड़ लगी देखकर वाहन सवार वहां धीमे होते और खिड़की से उचककर सरसरी निगाह डालते हुए पूछते, ‘क्या हुआ?’ आवाज आती, ‘एक्सीडेंट हुआ है।’ सवाल फिर उछलता, ‘मर गया क्या?’ जवाब आता, ‘बेहोश है शायद, सांस तो चल रही है।’ एक गाड़ी धीमी हुई। उसमें से भी इसी तरह के सवाल उभरे। ड्राइविंग सीट पर बैठा व्यक्ति अपनी बगल में बैठे हुए आदमी से बोला, ‘जा देखकर आ, कोई अपना तो नहीं है?’ वह उतरा और उसने सरसरी नजर सड़क पर पड़े युवक पर डाली और गाड़ी में बैठते हुए बोला, ‘नहीं, अपना कोई नहीं है।’ गाड़ी एक झटके से आगे बढ़ गई। जाम लगने लगा था। दो आदमियों ने युवक को उठाकर सड़क के एक साइड किया। बाइक भी उठाकर साइड में लगा दी। अब लोगों में यह चेतना आने लगी थी कि घायल युवक को अस्पताल पहुंचाया जाए। कई गाड़ी वालों को रोककर घायल को अस्पताल पहुंचाने की फरियाद की गई, लेकिन कोई नहीं पसीजा। एक आदमी ने घायल की नब्ज देखकर बैचेनी से इधर-उधर देखा। शायद नब्ज थमने लगी थी। तभी वहां एक बाइक पर तीन युवक रुके। वे तेजी से भीड़ को चीरते हुए घायल युवक के पास पहुंचे। तीनों को देखकर कुछ लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ीं। दरअसल, उनके हावभाव से लग रहा था कि वे नशे में हैं। एक युवक ने कहा, यार, इसकी तो नब्ज चल रही है, इसे अस्पताल पहुंचाते हैं। इतना सुनते ही बाकी दो युवाओं ने घायल को बाहों में भरकर उठा लिया। उनमें से एक बोला, ‘लेकिन इसे लेकर कैसे जाएंगे?’ दूसरे ने कहा, ‘बाइक है ना अपनी।’ घायल को दोनों युवाओं ने अपने बीच में बैठा लिया। तीसरा युवक बोला, ‘लेकिन मैं कैसे आऊंगा? बाइक चलाने वाले ने बाइक को तेजी से आगे बढ़ाते हुए चिल्लाकर कहा, ‘हाइवे के ट्रामा सेंटर पर कैसे भी पहुंच तू, वहीं मिलते हैं।’ तीनों ने सब काम इतने तेजी से किए कि लग ही नहीं रहा था कि वे नशे में हैं। घायल के जाने के बाद चंद मिनटों में ही सड़क से भीड़ छंट गई थी। हाईवे पर टैÑफिक अपने पूरे आब और ताब के साथ दौड़ने लगा था।

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