सलीम अख्तर सिद्दीकी
रसोई गैस लेने वालों की गैस गोदाम पर सुबह छह बजे से लंबी लाइन लगी हुई थी। वक्त बढ़ने के साथ लाइन लंबी होती जा रही थी। लंबी लाइन देखकर देर से आने वाले लोगों के माथे पर शिकन पड़ रही थीं। सबके मन में यही अंदेशा था कि पता नहीं आज भी गैस मिल पाएगी नहीं। बहुत लोग ऐसे थे, जो तीन दिन से लगातार आ रहे थे, लेकिन उन्हें कोई न कोई बहाना बनाकर टरका दिया जाता था। लगभग 60 साल की एक बुजुर्ग महिला लगभग 14-15 साल के किशोर के साथ गैस लेने आई थी। महिला लाइन के लगभग बीच में गैस सिलेंडर पर वह कपड़ा डालकर बैठी हुई थी, जिसमें वह सिलेंडर लपेट कर लायी होगी। उसके साथ आया किशोर अपनी साइकिल के कैरियर पर बैठा बेजारी से इधर-उधर देख रहा था। बुजुर्ग महिला बड़ी आस से गोदाम के बड़े से लोहे के गेट को टकटकी लगाए देख रही थी। थोड़ी देर बाद किशोर बुजुर्ग महिला के पास आया और बोला, ‘अम्मा पता नहीं आज भी गैस मिलेगी या नहीं? कोई कह रहा था कि ट्रक अभी तक नहीं आया है।’ महिला ने कोई जवाब नहीं दिया। किशोर फिर बोला, ‘तीन दिन हो गए लगातार आते-आते, रोज बिना गैस के ही वापस जाना पड़ता है।’ महिला ने इस बार मुंह खोला और बोली, ‘आज तो मैं गैस लेकर ही जाऊंगी। बाजार से 60 रुपये किलो की गैस तीन बार छोटे सिलेंडर में भरवा चुकी हूं। कमबख्त सारी गैस ब्लैक में बेच देते हैं।’ महिला के बराबर में खड़े एक अधेड़ को जैसे बहाना मिल गया। वह बोला, ‘बहन जी मैं कल भी आया था। पूरा एक ट्रक गैस सिलेंडरों का बाहर निकला था, जो हर हाल में ब्लैकियों को ही गया होगा।’ थोड़ी देर बाद गोदाम का गेट खुला। लाइन में तेज हलचल हुई और गैस सिलेंडरों के खिसकने और एक दूसरे से टकराने की आवाजें गूंजने लगीं। बुजुर्ग महिला भी सिलेंडर पर से खड़ी हो गई। गेट से एक छोटा ट्रक बाहर आता दिखा, जिसमें सिलेंडर भरे हुए थे। ट्रक के साथ कुछ लोग चल रहे थे, जो शक्ल से गुंडे लग रहे थे। लाइन एक झटके में भीड़ में तब्दील होकर ट्रक के चारों ओर जमा हो गई। कुछ नौजवान सिलेंडर बाहर ले जाए जाने का विरोध करने लगे। गोदाम कर्मचारियों और कुछ लोगों में धक्का-मुक्की होने लगी। ट्रक भीड़ के बीच में फंस गया था। ड्राइवर ने कई बार ट्रक को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उसके आगे से लोग हटने को तैयार नहीं थे। कर्मचारियों और लोगों में तकरार बढ़ती जा रही थी। कुछ ही देर में पुलिस की जीप धड़धड़ाती हुई वहां आकर रुकी। चार-पांच पुलिसवाले उसमें से डंडे लेकर फुर्ती से उतरे और भीड़ पर बरसाने शुरू कर दिए। चंद क्षणों में ही भीड़ तीतर-बीतर हो गई। ट्रक के आगे जाने का रास्ता साफ हो गया। ड्राइवर ने विजयी मुस्कान के साथ ट्रक आगे बढ़ा दिया। पुलिसवाले डंडे फटकार कर लोगों से दोबारा लाइन में लगने की हिदायत देने लगे। बुजुर्ग महिला, जो पहले लाइन के बीच में थी, सबसे पीछे पहुंच गई। एक बार फिर लोग गोदाम का गेट खुलने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद बड़े गेट में लगा छोटा गेट खोलकर एक कर्मचारी प्रकट हुआ और बोला, ‘हमारे पास सिर्फ सौ सिलेंडर हैं बांटने के लिए। शुरू के सौ आदमी रुक जाएं। बाकी को दो दिन बाद गैस मिलेगी।’ बुजुर्ग महिला ने उचककर देखा और मायूसी से अपने साथ आए किशोर को वापस चलने के लिए कहा। किशोर ने सिलेंडर को उठाकर साइकिल के कैरियर पर बांधना शुरू कर दिया।
सही विश्लेषण किया है!!!
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