Friday, February 5, 2010

अमिताभ बच्चन में जमीर नाम की चीज है या नहीं ?

सलीम अख्तर सिद्दीकी
यूपी में सपा का दम निकलने के बाद या कहें कि अमर सिंह के साथ मिलकर सपा का दम निकालने के बाद अमिताभ बच्चन ने अब गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर बनने का निर्णय लिया है। सपा से अमर सिंह की विदाई के बाद अमिताभ बव्वन ने शायद यही सोचा होगा कि उत्तर प्रदेश से बोरिया बिस्तर समेटने में भलाई है। इसलिए अब वह नरेन्द्र मोदी के कारनामों से बदनाम हुए गुजरात में पर्यटकों को आकृषित करने के लिए उसके ब्रांड एम्बेसेडर बन गए हैं। टेलीविजन पर अमिताभ बच्चन महीनों तक 'यूपी में हैं दम, क्योंकि यहां जुर्म हैं कम' चिल्लाते रहे, लेकिन यूपी में जुर्म तो कम नहीं हुआ लेकिन अमिताभ की तिजोरी में करोड़ों रुपए का इजाफा जरुर हो गया होगा। अमिताभ को यूपी से कोई मौहब्बत नहीं थी कि वे मुफ्त में ही सब कुछ कर रहे थे। मुलायम सिंह का गुणगान करने के लिए उन्हें पैसा दिया गया था। अब अमिताभ बच्चन उस गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए काम करेंगे, जिसके मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं और हजारों बेगुनाह लोगों के खून से जिनके हाथ रंगे हुए हैं। अस्सी दशक का 'एंग्रीयंग' मेन, जो गरीब गुरबों की लड़ाई को पर्दे पर लड़ता दिखता था, अब पैसों के पीछे भागने वाला एक इंसान बन गया है, जो किसी भी तरीके से पैसा कमाना चाहता है।'रण' फिल्म में अमिताभ बच्चन हिन्दु-मुस्लिम एकता की पैरवी करते नजर आए थे तो फिल्म 'देव' में एक मुख्यमंत्री की शह पर हुए कत्लेआम का राज फाश करने के लिए अपनी जान देने कुर्बान करते हुए दिखाई दिए थे। फिल्म 'देव' में श्याम बेनेगल ने गुजरात नरसंहार को ही अपनी विषय-वस्तु बनाया था। लेकिन फिल्म तो फिल्म है। हकीकत तो यह है कि अमिताभ बच्चन सिर्फ और सिर्फ एक प्रोफेशनल आदमी हैं। पैसों के लिए वह 'बूम' जैसी घटिया फिल्म में काम कर सकते हैं। उनके परिवार की फिल्में महाराष्ट्र में बिना किसी बाधा के रिलीज होती रहें, इसके लिए वह बाल ठाकरे और राज ठाकरे की ड्योढी पर सिर नवाने से भी परहेज नहीं करते। भले ही उनके शहर इलाहाबाद के लोगों को राज ठाकरे के गुंडे मार-मार कर मुंबई से भगाते रहें।
अब जब अमिताभ गुजरात के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गुजरात के ब्रांड एम्बेसेडर बन ही गए हैं तो उन्हें दुनिया को यह बताना चाहिए कि गुजरात में नरोदा पाटिया, गुलबर्गा सोसायटी और बेस्ट बेकरी नाम की जगह भी हैं, जहां प्रदेश के 'जांबाज' मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की शह पर सैकड़ों लोगों को जिन्दा जला दिया गया था। उन राहत कैम्पों के बारे में भी विस्तार से दुनिया को जानकारी दें, जिनमें आज भी बहुत सारे लोग इसलिए नारकीय जीवन बिता रह हैं, क्योंकि उनका घर-बार सब कुछ लुट लिया गया है और गुजरात सरकार जिन्हें मुआवजे के रुप में चन्द रुपयों से नवाज रही है। गुजरात के उस अलिखित कानून का भी जिक्र करें, जिसके तहत एक समुदाय के लोगों को किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं दी जाती है। बिलकीस बानो के बारे में भी बताना चाहिए, जिसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था। 19 साल की छात्रा इशरत जहां के बारे में भी जरुर बताएं, जिसे आतंकवादी बताकर फर्जी मुडभेड़ में मार दिया गया था। सोहराबुद्दीन शेख में बारे में भी जानकारी दें कि कैसे उसको फर्जी मुठभेड़ में मारकर उसकी पत्नि की लाश तक को गायब कर दिया था। मुख्यमंत्री की शह पर गुजरात के दर्जनों युवकों को आतंकवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ों में मारने वाले पुलिस अधिकारी डीके बंजारा की 'बहादुरी' की भी जरुर चर्चा करें।
लगता है कि अमिताभ बच्चन का जमीर जैसी किसी चीज से कोई मतलब नहीं है। यदि अमिताभ के पास जमीर नाम की चीज होती तो वह गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर बनना मंजूर नहीं करते। यदि वह ऐसा कर पाते तो यह फासिस्ट ताकतों के मुंह पर एक तमांचा होता और मजलूम लोगों के दिलों में सम्मान पाते। पता नहीं अमिताभ बच्चन नरेन्द्र मोदी के बारे में क्या विचार रखते है, लेकिन पूरी दुनिया उन्हें मानवता का कातिल मानती है। इसीलिए अमेरिका भी उन्हें वीजा जारी नहीं करता। लेकिन अमिताभ को इससे क्या, उन्हें तो पैसा चाहिए इसके लिए वह सब कुछ कर सकते हैं। तेल बेच सकते हैं। उत्तर प्रदेश में जुर्म कम बता सकते हैं। यहां तक कि नरेन्द्र मोदी के राज्य के ब्रांड एम्बेसेडर भी बन सकते हैं। गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर बनने से पहले अमिताभ बच्चन को सोचना चाहिए था कि वह देश में 'रील' के महानायक कहे जाते हैं। 'रियल' में महानायक बनने के लिए उन्हें पैसों का मोह छोड़कर उस मजलूम आदमी के जज्बातों को भी समझना होगा, जो उन्हें फिल्मों में मजलूम की लड़ाई लड़ता देखकर अपने करीब समझने लगता है। नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा होकर अमिताभ बच्च्न को पैसा तो मिल सकता है, लेकिन उन लोगों की हमदर्दी और प्यार नहीं मिल सकता, जो नरेन्द्र मोदी के सताए हुए हैं।

3 comments:

  1. हर आदमी वक़्त के साथ चलता है,अमिताभजी भी चले तो क्या गलत है?मुलायम और अमर के झगड़ों में आखिरकार कोई क्यूँ पड़े?

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  2. प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग
    ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।

    ‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1:5-6)

    ईश्वर की उपासना की सही रीति

    मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?

    सर्मपण से होता है दुखों का अन्त

    ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए।


    भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।


    क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है?

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  3. अमिताभ बच्चन को आख़िर इतने पैसो का करना क्या है, हमेशा वो आर्थिक संकट मैं घिरे रहते है, बिग बॉस भी उन्होने पैसो के लिए ही किया था हर घटिया चीज़ का एड वो करते हैं फिर उनकी यही दलील होती है कि पैसो की कमी है है. आख़िर इतने पैसो का वो करते क्या है? वैसे इन सब बातो का जवाब 'क़स्बा' पर रविश कुमार ने दे ही दिया है.

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