सलीम अख्तर सिद्दीकी
आजकल जिसे देखों 'पे्रस' वाला होना चाहता है। आजकल 'प्रेस' होने वाला आसान भी बहुत हो गया है। किसी साप्ताहिक समाचार-पत्र के मालिक-सम्पादक को पांच सौ रुपए का नोट थमाएं और एक घंटे में आपके पास चमचाता हुई अखबार का आई-कार्ड आ जाएगा। इतने पैसे तो साधारण संवाद्दाता बनने के लगते हैं। चीफ रिपोर्टर या ब्यूरो चीफ बनना चाहते हैं तो जेब बहुत ज्यादा ढीली करनी पड़ती है। कार्ड हाथ में आने के बाद अब आपके घर में जितने भी वाहन हैं, सब पर शान से प्रेस लिखवाएं और सड़कों पर रौब गालिब करते घूमें। इससे कोई मतलब नहीं है कि आपको अपने हस्ताक्षर करने आते हैं या नहीं। कभी एक भी लाईन लिखी है या नहीं। आपके पास किसी अखबार का कार्ड है तो आप प्रेस वाले हैं। हद यह है कि गैर कानूनी काम करने वाले भी अपने पास दो-तीन अखबारों के कार्ड रखते हैं। पैसे देकर कार्ड बनाने वाले अखबारों के तथाकथित मालिक और सम्पादक भी अपन जान बचाने के लिए कार्ड के पीछे एक यह चेतावनी छाप देते हैं कि 'यदि कार्ड धारक किसी गैरकाूनी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो उसका वह खुद जिम्मेदार होगा और उसी समय से उसका कार्ड निरस्त हो जाएगा।' जिन अखबारों के नाम में 'मानवाधिकार' शब्द का प्रयोग हो तो उस अखबार के कार्ड की कीमत पांच से दस हजार रुपए तक हो सकती है। इसकी वजह यह है कि आप अखबार वाले के साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हो जाते हैं। लोगों की आम धारणा है कि पुलिस और प्रशासन 'प्रेस' और 'मानवाधिकार' शब्द से बहुत खौफ खाते हैं। अब तो कुछ तथाकथित न्यूज चैनल भी 'ब्यूरो चीफ' बनाने के नाम पर दो लाख रुपए तक वसूल रहे हैं। न्यूज चैनल कभी दिखाई नहीं देता लेकिन उसके संवाददाता कैमरा और आईडी लेकर जरुर घूमते नजर आ जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। बड़े अखबारों के एकाउंट सैक्शन, विज्ञापन सैक्शन और मशीनों पर अखबार छापने वाले वाले तकनीश्यिन भी अपने वाहनों पर धड़ल्ले से प्रेस लिखकर घूमते है। यहां तक की अखबार बांटने वाला हॉकर भी प्रेस शब्द का प्रयोग करते देखा जा सकता है। यही कारण है कि सड़कों पर चलने वाली प्रत्येक दूसरी या तीसरी मोटर साइकिल, स्कूटर और कार पर प्रेस लिखा नजर आ जाएगा। यकीन नहीं आता तो अपने शहर की किसी व्यस्त सड़क पर पांच-दस मिनट बाद खड़े होकर देख लें। कम-से-कम मेरठ की सड़कों का तो यही हाल है। 'प्रेस' से जुड़ने की लालसा के पीछे का कारण भी जान लीजिए। शहर में वाहनों की चैकिंग चल रही है तो वाहन पर प्रेस लिखा देखकर पुलिस वाला नजरअंदाज कर देता है। मोटर साइकिल पर तीन सवारी बैठाकर ले जाना आपका अधिकार हो जाता है, क्योंकि आप प्रेस से हैं। किसी को ब्लैकमेल करके भारी-भरकम पैसा कमाने का मौका भी हाथ आ सकता है। प्रेस की आड़ में थाने में दलाली भी की जा सकती है। देखा, है ना प्रेस वाला बनने में फायदा ही फायदा। तो आप कब बन रहे हैं, प्रेस वाले ?
हम आपकी हक बात के साथ है सलीम खान । मेरा वोट पक्का ।
ReplyDeleteपुरानी बात है..
ReplyDeleteहमारे यहां तो धोबी भी प्रेस लिख कर चलता है
(प्रेस जो करता है,,,)
यही तंग नज़री इन्सान को इन्सान से और मालिक से दूर किये हुये है ।
ReplyDeleteकुरआन का इनकार कौन करता है?
पवित्र कुरआन इसी स्वाभाविक सच्चाई का बयान है। इस सत्य को केवल वे लोग नहीं मानते जो पवित्र कुरआन के तथ्यों पर ग़ौर नहीं करते या ग़ुज़रे हुए दौर की राजनीतिक उथल-पुथल की कुंठाएं पाले हुए हैं। ये लोग रहन-सहन,खान-पान और भौतिक ज्ञान में, हर चीज़ में विदेशी भाषा-संस्कृति के नक्क़ाल बने हुए हैं लेकिन जब बात ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन की आती है तो उसे यह कहकर मानने से इनकार कर देते हैं कि यह तो विदेशियों का धर्मग्रंथ है। जबकि देखना यह चाहिए कि यह ग्रंथ ईश्वरीय है या नहीं?
है। यह स्वयं अपने ईश्वरीय होने का सुबूत देता है और अपने प्रति सन्देह रखने वालों को अपनी सच्चाई की कसौटी और चुनौती एक साथ पेश करता है कि अगर तुम मुझे मनुष्यकृत मानते हो तो मुझ जैसा ग्रंथ बनाकर दिखाओ या कम से कम एक सूरः जैसी ही बनाकर दिखाओ और अगर न बना सको तो मान लो कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से हूँ जिसका तुम दिन रात गुणगान करते हो। मैं तुम्हारे लिए वही मार्गदर्शन हूँ जिसकी तुम अपने प्रभु से कामना करते हो। मैं दुखों से मुक्ति का वह एकमात्र साधन हूँ जो तुम ढूँढ रहे हो।
पवित्र कुरआन में जल-थल का अनुपात
एक इनसान और भी ज़्यादा अचम्भित हो जाता है जब वह देखता है कि ‘बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 12 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।
सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %
सूखी जमीन और समुद्र का आपसी अनुपात क्या है? यह बात आधुनिक खोजों के बाद मनुष्य आज जान पाया है लेकिन आज से 1400 साल पहले कोई भी आदमी यह नहीं जानता था तब यह अनुपात पवित्र कुरआन में कैसे मिलता है? और वह भी एक जटिल गणितीय संरचना के रूप में।
क्या वाकई कोई मनुष्य ऐसा ग्रंथ कभी रच सकता है?
क्या अब भी पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा है?
hello saleem khan
ReplyDeleteapki anarkali kahan gayi?
प्यारे भाई ; आदमी सच को नही़ बल्कि सैक्स को देक्षना सुनना चाहता है।
It is reality frnd. Isn t it?
SAHI BAAT
ReplyDeletethanks
ReplyDeletekahan ho
ReplyDeleteप्रेस की आड़ में थाने में दलाली भी की जा सकती है। देखा, है ना प्रेस वाला बनने में फायदा ही फायदा। तो आप कब बन रहे हैं, प्रेस वाले ?
ReplyDeleteसही बात उठाया है। प्रेस का यही मतलब आज रह गया है।