Saturday, January 30, 2010

'चौथी दुनिया' यानि प्रिन्ट मीडिया का 'इंडिया टीवी'


सलीम अख्तर सिद्दीकी
मोसाद और सीआईए ने हिन्ुस्तान को बर्बाद और टुकड़ों में बांटने के लिए 'स्माइल इंडिया 2015' प्लान बनाया है। इस प्लान के तहत आने वाले समय में देश के नामचीन लोगों के चरित्र हनन, हिन्दु-मुस्लिम दंगों और बड़े लोगों की हत्याओं का दौर शुरु किया जाएगा, जिससे पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल पैदा होगा। हालात 1947 सरीखे हो जाएंगे। देश को 31 भागों में बांटने की साजिश हो रही है। हालात पर काबू पाने के लिए अमेरिका भारत को गुलाम बना लेगा। आदि-आदि। यह भी कि इस काम के लिए सीआईए ने देश के बड़े-बड़े और असरदार लोगों को मुंहमांगी कीमत पर खरीद लिया है।
उपरोक्त बातें किसी सुरेन्द्र मोहन पाठक या वेदप्रकाश शर्मा के जासूसी उपन्यास के कथानक का हिस्सा नहीं हैं। ये सब देश का पहला साप्ताहिक अखबार कहे वाला 'चौथी दुनिया' अपने पिछले तीन अंकों में लिखता आ रहा है। अखबार जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहा है, उससे दहशत और सिहरन पैदा होती है। इन सब बातों को लिखने के लिए अखबार का क्या उद्देश्य है, यह तो अखबार का सम्पादक जानें, हमारा सवाल यह है कि इन सब बातों का आखिर आधार क्या ? जहां तक सीआईए और मोसाद की भारत में दखअंदाजी की बात है तो उसमें नई बात भी कुछ नहीं है। यह विदित ही है कि सीआईए और मौसाद के एजेण्ट किसी-न-किसी रुप में दूसरे देशों में मौजूद रहते ही हैं। सीआईए और मोसाद ही क्यों, क्या रुस की खुफिया एजेंसी केजीबी के अस्तित्व को भारत में नकारा जा सकता है ? अखबार ने जिस तरह से भारत के भविष्य का चित्रण किया है, उससे लगता है कि अखबार का मकसद केवल सनसनी फैलाने के अलावा कुछ नहीं है। चौथी दुनिया' की रिपोर्ट क्या ऐसी नहीं है, जिसमें यह कहा जाता है कि 2012 में दुनिया का अस्तित्व खत्म हो जाएगा ? क्या 'चौथी दुनिया' प्रिंट मीडिया का 'इंडिया टीवी' बनने की ओर बढ़ रहा है ?
यदि किसी अखबार में इस तरह की रिपोर्ट 80 और 90 के दशक में आती तो शायद लोग उस पर यकीन भी कर लेते। क्योंकि उस दौर में भयानक साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। राम मंदिर आंदोनल उग्र रुप लिए हुए था। मंडल कमीशन की वजह से पूरे देश में आग लगी हुई थी। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या भी इन्हीं दशकों में हुई थीं। कोई केन्द्र सरकार स्थिरता से काम नहीं कर सकी थी। देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। चन्द्रशेखर सरकार को देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था। यह वह दौर था, जिसे कहा जा सकता था कि देश अस्थिरता की और बढ़ रहा है। 26/11 तक आतंकवादी हमलों की बाढ़ आई हुई थी। लेकिन बीता 2009 काफी हद तक पूरसकून गुजरा है। ऐसे में 'चौथी दुनिया' की रिपोर्टें गले से नहीं उतरती हैं। यदि रिपोर्ट को सही मान भी लिया जाए तो क्या देश में होने वाले बम धमाके और 26/11 की घटना सीआईए और मोसाद की करतूत थी ? जैसा कि कुछ लोग शक करते हैं, क्या 9/ 11 का हादसा मोसाद की देन था ? क्या साध्वी प्रज्ञा सिंह और कर्नल पुरोहित सीआईए और मोसाद के इशारे पर काम कर रहे थे ? क्या हेडली और तहव्वुर राणा सीआईए के एजेन्ट हैं ?
'चौथी दुनिया' ने इस बात को बहुत प्रमुखता से कहा है कि आने वाले समय में कुछ बड़े सम्पादकों, नेताओं और उच्च अधिकारियों का चरित्र हनन करने के लिए उनकी अश्लील सीडी बनायी जा सकती हैं। तो क्या एनडी तिवारी की अश्लील सीडी इसी सिलसिले की कड़ी है ? क्या भाजपा के बंगारु लक्षमण की रिश्वत लेते बनी सीडी भी सीआईए की करतूत थी ? सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत को बर्बाद करने में सीआईए और मोसाद का क्या फायदा होने वाला है ? अमेरिका तो पहले ही अफगानिस्तान और इराक में फंसा हुआ है। अफगानिस्तान और इराक जैसे कमजोर और छिन्न-भिन्न देशों पर ही उसका बस नहीं चल रहा है। अमेरिका दोनों देशों से किसी भी सूरत में बाहर आने की जुगत में लगा हुआ है। इन दोनों देशों में अमेरिका आतंवाद के खिलाफ जंग में पता नहीं कितने ट्रिलियन डालर झोंक चुका है, जिसके चलते उसकी आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल होने लगी है। भारत बहुत बड़ा देश है। यहां पर अमेरिका की सीआईए क्या कर लेगी ?

1 comment:

  1. सलीम भाई, इसी बात की तरफ मेरे उस्ताद मरहूम इक़बाल राजा ने बहुत पहले इशारा किया था. जब मैने जॉर्डन, लेबनॉन और मिस्र का दोरा किया तो वहाँ के पत्रकारो, राजनेताओ और लोगों ने भी इसी बात पर ज़ोर देकेर कहा था की अमेरिका और इसराएल का अगला निशाना भारत ही है, सबसे सॉफ्ट टारगेट भारत ही हो सकता है क्योंकि यहाँ उनकी पसंद के काम करने वाले एजेंट पहले से ही मोजूद हैं, इस का इक छोटा सा नमूना आप मीडिया और अब तो ब्लॉगवानी पर भी देख सकते हैं, आप कितनी भी प्यार मुहब्बत की बातें कर ले मगर ये लोग आग लगाने के लिए कोई ना कोई मुद्दा पकड़ ही लेते हैं हसीं की बात तो ये है कि इन को खुद नही मालूम की इनके पीछे कोन है बेचारे..... अफ़सोस सद अफ़सोस

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