सलीम अख्तर सिद्दीकी
1965 और 1971 की लड़ाई के बाद से ही पाकिस्तान हमारा दुश्मन रहा है। 1971 की जंग के बाद से ही आने-जाने के रास्ते बंद थे। 1978 में दोनों देशों के बीच आगमन का सिलसिला शुरु हुआ था इसी दौर में क्रिकेट को दोनों देशों के बीच ताल्लुकात बेहतर करने का जरिया माना गया था। लेकिन दोनों देशों के बीच सास-बहु सरीखी नोंकझोंक कभी बंद नहीं हुई। यह पता होने के बाद भी कि पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जिया-उल-हक पंजाब के आतंकवादियों को शह दे रहे हैं, पाकिस्ताान से सम्बन्ध बने रहे। यहां तक हुआ कि क्रिकेट मैच देखने जनरल साहब एक बार जयपुर तशरीफ लाए थे। एक बार दोनों मुल्कों ने मिलकर क्रिकेट का वर्ल्ड कप का भी आयोजन किया था। दिसम्बर 2001 में संसद पर हमले के बाद एक बार फिर दोनों मुल्कों की फौजें आमने-सामने आ गयीं थीं, जो बिना लड़े ही बैरकों में वापस चली गयी थीं। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी साहब बतौर प्रधानमंत्री लाहौर और दिल्ली के बीच बस चलवा चुके थे। एक बार लगा था कि दोनों मुल्कों के बीच मधुर सम्बन्ध कायम हो जाएंगे, लेकिन 26/11 के बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनातनी चल रही है।
आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को नहीं लिया गया। इस पर पाकिस्तान में तीखी प्रतिक्रिया हुई। आईपीएल के कर्ता-धर्ताओं का तर्क है कि 26/11 के कारण पाकिस्तान के खिलाडियों को नहीं लिया गया हैं। यदि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को नीलामी से बाहर ही रखना था तो उन्हें भारत सरकार ने वीजा ही क्यों जारी किया था ? पाकिस्तान 20-20 क्रिकेट का वर्ल्ड चैम्पियन है। ऐसे मे पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल से बाहर रखने पर आईपीएल के रोमांच में न सिर्फ कमी आएगी बल्कि 26/11 के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो खाई पैदा हुई है, उसमें बढ़ोतरी होगी। समझ में यह नहीं आता कि आतंकवाद के बहाने क्रिकेट पर क्यों चोट की जा रही है। क्या पाकिस्तान को क्रिकेट से अलग करके आतंकवाद को खत्म किया जा सकता है ? आईपीएल में पाकिस्तान के खिलाड़ियों का बहिष्कार आतंकवादियों के मंसूबे पूरे करने में सहायता करने के बराबर है। क्योंकि आतंकवादी और उनके आका हर हाल में यह चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच एक बार और जंग हो जाए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का कहना है कि वह इस बात की गारंटी नहीं दे सकते हैं कि आतंकवादी फिर कभी भारत में कोई आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं देंगे। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस बयान का अर्थ यह है कि पाकिस्तान सरकार का भी आतंकवादियों पर कोई बस नहीं रहा है। इसको ऐसे ही समझिए जैसे हमारे कृषि मंत्री यह बयान दें कि मुझे नहीं पता कि दें कि चीनी कब सस्ती होगी। कभी-कभी तो लगता है कि आतंकवाद की आड़ में दोनों देशों के साथ कोई ऐसी अन्तरराष्ट्रीय साजिश की जा रही है, जिससे दोनों देश न तो दोस्त ही बनें और न ही दुश्मन।
एक सवाल और है, जो बार-बारे जेहन में आता है, आखिर भाजपा को पाकिस्तान से ताल्लुक बेहतर रखने में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है ? आखिर भाजपा नेताओं का पाकिस्तान प्रेम का राज क्या है ? विपक्ष में रहते हुए उन्होंने हमेशा ही पाकिस्तान को पानी पी-पीकर कोसा। यह भी बार-बार मांग की गयी कि पाकिस्तान में चल रहे आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों को भारतीय फौज पाकिस्तान में घुसकर तबाह करे। लेकिन जब भी भाजपा के लोग सत्ता में रहे, उन्होंने पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों को तबाह करने के बजाय पाकिस्तान से दोस्ती करने की कवायद की है। 1978 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने ही दोनों देशों के बीच बंद पड़े रास्तें को खुलवाया था। इन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी ने एक तानाशाह जनरल मुर्शरफ को आगरा बुलाया और लाहौर और दिल्ली के बीच चलने वाली बस को भी हरी झंडी भी अटल बिहार वाजपेयी ने ही दिखाई थी। लालकृष्ण आडवाणी साहब कराची में जिनाह की मजार पर मत्था टेकते हैं और जिनाह को सैक्यूलर होने का सर्टीफिकेट दे आते हैं।
सच तो यह है कि पाकिस्ताान के साथ दुश्मनी ही निभानी चाहिए। दोनों को अपने-अपने दूतावास बंद कर देने चाहिए। यदि समझौता एक्सप्रेस से पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में आते हैं और भारत से कुछ लोग भारत के खिलाफ जासूसी करने की ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान जाते हैं तो समझौता एक्सप्रेस को बंद कर देना ही मुनासिब होगा। दोनों देशों की एक कदम आगे और एक कदम पीछे की नीति समझ में नहीं आती है। एक बार तय करें कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन है या दोस्त ?ोस्त ?
महत्वपूर्ण मुद्दा है भारत -पाक सम्बन्धों का भविष्य क्या है?
ReplyDeleteक्या दो पडोसी देश ,जो कभी एक थे, हमेशा के लिये तनाव में जी सकते हैं?
हां,किंतु पहल एकतरफा होने से भी क्या लाभ?
मैं आपकी पोस्ट के अंतिम पैरा से पूर्ण सहमति व्यक्त करता हूं
अगर सभी पाकिस्तानी हिन्दू हो जाये (धर्मान्तरण ) करवा ले तो में भी आप का साथ देने के लिए तयार हूँ | भले ही वो आतंकवादी क्यों न हो ? क्रिकेट में रोमांच तो बाद में आता है |
ReplyDeleteपाकिस्तान से हमारी दोस्ती तो कभी नही हो सकती, तो फ़िर दुशमी क्यो, वो रहे अपने घर मै खूश ओर हम रहे अपने घर मै खुश, लेकिन फ़िर अमेरिका को दो पागल कहा से मिलेगे अपने हथियार बेचने को... अगर अमेरिका बीच मे से दफ़ा हो जाये तो सब झगडे एक दो साल मै खत्म हो जायेगे, भारत पाकिस्तान के
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ReplyDeletesorry this post doesnt deserve my comment.
ReplyDeleteBILKUL SAHI KAHA HAI AAPNE MAIN APKI BAT SE SAHMAT HUN, JAI HIND JAI BHARAT
ReplyDeleteसही कहा भाजपा के नेताओं की वजह से बार बार दोस्ती का हाथ बढ़ाना पड़ता है. वरना कौन चाहता है?
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