सलीम अख्तर सिद्दीकी
तेलांगना के बहाने अलग प्रदेशों की मांग का पिटारा एक बार फिर नए सिरे से खुल गया है। हरित प्रदेश की दबी चिंगारी को हवा देने का काम उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केन्द्र सरकार को इस आशय का पत्र लिखकर कर दिया है कि उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांट दिया जाना चाहिए। हालांकि मायावती के इस कृत्य की पीछे राजनीति साफ नजर आती है। यदि मायावती उत्तरप्रदेश का बंटवारा करना ही चाहती हैं तो उन्हें केन्द्र को पत्र लिखने के बजाय उत्तर प्रदेश विधानसभा में बंटवारे का प्रस्ताव पारित कराककर अपनी ईमानदारी का सबूत देना चाहिए था। मायावती पूर्ण बहुमत में हैं, इसलिए प्रस्ताव पारित होने में भी कोई अड़चन नहीं आने वाली है। हालांकि राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह समय-समय पर हरित प्रदेश की मांग को उठाते रहे हैं। लेकिन लगता नहीं है कि वे हरित प्रदेश की मांग के प्रति ईमानदार हैं।
उत्तर प्रदेश के पुर्नगठन की मांग नयी नहीं है। लन्दन में सन 1931 में हुई एक गोलमेज कांफ्रेंस में उत्तर प्रदेश के पुर्नगठन की मांग की गयी थी। इस कांफ्रेंस में कांग्रेस के महात्मा गांधी, मुस्लिम लीग के मौहम्मद अली जिनाह और हिन्दु महासभा के भाई परमानन्द ने भाग लिया था। आजादी के बाद 1953 में राष्ट्रीय स्तर पर फैजल अली की अध्यक्षता में एक राज्य पुर्नगठन आयोग का गठन किया था। इस आयोग के सदस्यों में ह्दयनाथ कुंजरु तथा के एम पनिक्कर थे। आयोग ने तेलांगना, विदर्भ, बिहार और उत्तर प्रदेश को बांटने की संस्तुति की थी। डा0 भीमराव अम्बेडर ने फैजल अली आयोग की सिफारिशों के आलोक में उत्तर प्रदेश को तीन भागों में बांटने का समर्थन किया था। 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी छोटे राज्यों के निर्माण के लिए अपना समर्थन दिया था। सन 1978 में मोदीनगर के विधायक सोहनवीर सिंह तोमर ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में उप्र के पुर्नगठन के लिए सदन में प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। प्रस्ताव पर चर्चा से पहले ही दुर्भाग्य से केन्द्र ने बनारसीदास मंत्रीमंडल् को भंग कर दिया था। इसी दौरान चौधरी चरणसिंह ने केन्द्रीय मंत्रीमंडल के समक्ष उत्तर प्रदेश के पुर्नगठन का प्रस्ताव रखा, जिसका समर्थन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने भी किया था। यहां भी दुर्भाग्य से इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जनता पार्टी की सरकार ही गिर गयी थी।
उत्तर प्रदेश की आबादी लगभग 15 करोड़। इस प्रदेश का इतना विशालकाय होना ही इसके पिछड़े होने का मुख्य कारण है। इतने बड़े भाग पर नियन्त्रण करना लखनउ के बूते के बाहर हो जाता है। राजधानी का इतना दूर होना पश्चिम उप्र के लोगों के लिए बहुत बड़ा अन्याय है। सरकारी योजनाओं का लाभ भी पश्चिम उप्र के लोगों तक इसलिए नहीं पहुंच पाता क्योंकि वे लखनउ तक आना-जाना वहन नहीं कर सकते हैं। सच बात तो यह है कि सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाले पश्चिम उप्र के साथ सौतेला बर्ताव किया जाता रहा है। इन्हीं सब कारणों से पश्चिम उप्र में इलाहाबाद हाईकोर्ट बेंच की मांग भी बार-बार उठती रहती है। लेकिन क्योंकि लखनउ पर पूरब के लोगों की ज्यादा पकड़ रही है, इसलिए मांग सिरे नहीं चढ़ पाती है। प्रस्तावित हरित प्रदेश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 22 जिले तथा 5 मंडल, मेरठ, आगरा, मुराबाद, बरेली एवं सहारनपुर हैं। इस क्षेत्र की आबादी लगभग 5 करोड़ है। हरित प्रदेश का क्षेत्रफल 2 लाख 30 हजार 411 वर्ग किलोमीटर तथा लम्बाई 1 हजार किलोमीटर है। यदि हरित प्रदेश का निर्माण हो जाता है तो अति उपजाउ यह प्रदेश देश की अति विकसित प्रदेशों में से एक होगा। छोटा राज्य होने से हरित प्रदेश की कानून व्यवस्था चुस्त-दुरस्त तो होगी ही, हाईकोर्ट भी अपना होगा, जिससे न्याय पाने के लिए हजारों रुपया खर्च करके हजारों किलामीटर की यात्रा नहीं करने पड़ेगी।
मेरठ में हरित प्रदेश निर्माण समिति का गठन किया गया है। इस बैनर के तले 21 दिसम्बर को हरित प्रदेश निर्माण के लिए एक विचार-विमर्श गोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस गोष्ठी में प्रत्येक क्षेत्र के लोगों का प्रतिनिधत्व रहा। डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर, व्यापारी और आम नागरिकों ने एक सुर में हरित प्रदेश बनाने के लिए अहिंसत्माक आंदोलन चलाने की मांग की। गोष्ठी में सभी वक्ताओं ने उन कुछ साम्प्रदायिक लोगों के उस दुष्प्रचार को नकार दिया, जिसमें यह कहा जा रहा है कि हरित प्रदेश 'मिनी पाकिस्तान' या 'जाटलैंड' बनकर रह जाएगा। दरअसल, हरित प्रदेश के निर्माण को लेकर समय-समय पर आंदोलन होते रहे हैं। लेकिन वे राजनीति से प्रेरित इतने सतही होते हैं कि आम जनता उनसे जुड़ नहीं पाती। कोई भी आंदोलन तभी कामयाब होता है, जब उससे आम आदमी जुड़ता है। आम आदमी को यह समझाने की जरुरत है कि हरित प्रदेश उसके हित में कैसे है, तभी वह आंदोलन से जुड़ेगा और हरित प्रदेश का निर्माण संभव हो सकेगा। सवाल यह है कि क्या हरित प्रदेश का निर्माण करने का संकल्प लेने वाले ईमानदारी से इसे आगे बढ़ा पायेंगे या इतिहास अपने आप को दोहराएगा ?
170, मलियाना मेरठ।
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good blog umda or jaruri jaankariyo se pariporan ...........shubhkamnaaye
ReplyDeleteDr. anjana bakshi