सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
हार के बाद भाजपा में घमासान मचा हुआ है। सास-बहु के झगड़ो ंकी तरह नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। भाजपा के दो मुस्लिम चेहरों में से एक मुख्तार अब्बास नकवी कह रहे हैं कि ‘मैं वरुण के भाषण की वजह से हारा।‘ नकवी साहब से सवाल किया जा सकता है कि जब वरुण ने मुस्लिम विरोधी बयान दिया था, तब ही आपने अपना विरोध क्यों नहीं दर्ज कराया था ? क्या इसलिए कि तब शायद उन्हें लग रहा होगा कि वरुण के बयान के बाद हिन्दु वोटों का ध्रुवीकरण होगा और वह चुनाव जीत जाएंगे। और यदि नकवी साहब जीत जाते तो क्या तब भी वरुण की ऐसी ही खुली आलोचना करते ? शायद नहीं। अब बात करें जनता दल यू के शरद यादव की। 2004 के चुनाव में शरद यादव ने कहा था कि हम गुजरात दंगों की वजह से चुनाव हारे हैं। अब हालिया चुनाव में अपनी हार का ठीकरा भी नरेन्द्र मोदी के सिर पर फोड़ा है। सवाल यह है कि 2004 की हार से सबक न लेकर आप राजग में क्यों बने हुए थे ? 2009 में तो नरेन्द्र मोदी भाजपा के स्टार प्रचारक थे। तब ही उन्होंने नरेन्द्र मोदी को प्रचार से दूर रखने का दबाव भाजपा पर क्यों नहीं डाला ?
भाजपा में बहस इस बात पर थी कि भाजपा हिन्दुत्व को छोड़े या नहीं ? भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में फैसला हुआ है कि ‘भाजपा न तो हिन्दुत्व छोड़ेगी और न संध।‘ सही भी है। संघ से ही भाजपा है और हिन्दुत्व भी संघ का ही एजेण्डा है। सां की मर्जी के बगैर भाजपा में पत्ता भी नहीं खड़कता। संघ ही भाजपा को दिशा निर्देश देता है कि किस को कब क्या बोलना है और करना है। आडवाणी भी पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मजार पर संघ की मर्जी के बगैर सिर नवा कर नहीं आए होंगे। यदि ऐसा हुंआ होता तो आडवाणी ‘पीएम वेटिंग’ तो दूर भाजपा से ही गायब हो जाते। कोई ताज्जुब नहीं कि सुधीन्द्र कुलकर्णी भी संघ की ही किसी रणनीति के तहत लेख पर लेख लिख रहे हों।
जिस हिन्दुंत्व को भाजपा अपने सीने से लगाए रखना चाहती है, आखिर उस ‘हिन्दुत्व’ की परिभाषा क्या है ? इसका खुलासा आज तक किसी भाजपा के नेता ने स्पष्ट रुप नहीं किया है। लेकिन व्यवहार में भाजपा का हिन्दुत्व मुसलमान और इस्लाम का विरोध भर दिखायी देता है। राममंदिर और रामसेतु जैसे मुद्दे, कांग्रेस सहित दूसरी राजनैतिक पार्टियों को सैकुलरिस्टों का जमावड़ा और मुसलमानों को हज यात्रा पर जाने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को मुस्लिम तुष्टिकरण प्रचारित करना ही भाजपा का हिन्दुत्व है। विडम्बना यह है कि भाजपा मुसलमानों के विरोध का अन्तरराष्ट्रीयकरण तक कर देती है। मसलन, भारत के मुस्लिम और इस्लामी मित्र राष्ट्रों के बजाय वह इसराइल का समर्थन करती नजर आती है। दुनिया में जो देश किसी मुस्लिम देश पर हमला करता है तो भाजपा उस देश को अपना स्वाभाविक मित्र मान लेती है।
मुस्लिम और इस्लाम विरोध की बात यहीं खत्म नहीं होती। इससे भी आगे पवित्र कुरान और हदीस पर भी उंगलियां उठायी जाती हैं। मुसलमानों को सलाह दी जाती है कि कुरान में से अमुक-अमुक आयतों को निकाल दिया जाए। भाजपा के दिल में मुस्लिम औरतों के प्रति बहुत दया-भाव उमड़ पड़ता है। यह प्रचारित किया जाता है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। यह अलग बात है कि हिन्दुत्व के ये पुरोधा पब में घुसकर तालिबानियों की तरह लड़कियों को सरेआम पीटते हैं। मुसलमानों को निर्दयी,, जेहादी और क्रूर प्रचारित किया जाता है। लेकिन खुद गुजरात और कंधमाल करते हैं। अक्सर चुनाव के मौकों पर सघ परिवार की तरफ से पम्पलेट बांटे जाते हैं, जिनमें मुसलमानों और इस्लाम के बारे में भद्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है। शब्दों का जाल बुनने में माहिर भाजपा नेताओं ने ही यह कहना शुरु किया कि ‘यह सही है कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं है, लेकिन हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों है ?’ हिन्दु लड़की का किसी मुसलमान लड़की से प्रेम या शादी करना भाजपा वालों के लिए ‘लविंग जेहाद’ है।
अब भाजपा के पास देश के लिए कोई आर्थिक और सामाजिक एजेंडा है तो नहीं,, जिसको सामने रखकर वोटरों से वोट मांगे जाएं। ले देकर एक मुस्लिम विरोधी मार्का हिन्दुत्व ही है, जिसे हर बार आजमाया जाता है। तालिबानियों की तरह भाजपा को पता नहीं यह बात क्यों समझ नहीं आती कि परिर्वतन कुदरत का नियम है। जनता का जेहन बदल रहा है। उसकी प्राथमिकता रोजी-रोटी है, तालिबान मार्का इस्लाम या भाजपा मार्का हिन्दुत्व नहीं। भाजपा को अब समझ लेना चाहिए कि हर दौर में हर चीज नहीं बिका करती। हिन्दुत्व को बेचकर उसने छह साल सत्ता का सुख भोग लिया। भाजपा मार्का हिन्दुत्व अब बिकाउ माल नहीं है। इस देश का हिन्दु सैक्यूलर है, इसीलिए वह भाजपा को सत्ता से दूर ही रखता है। एक बार फिर भाजपा अपनी ‘जड़ों’ तक जाना चाहती है। शौक से जाए। लेकिन जड़ें तो कब सूख चुकी हैं।
Aur Hinduwon ka virodh secularism hai :)
ReplyDeleteHindustan me bahut minorities hain lekin Hinduon se virodh bus gine chune hi karte hain.
सलीम साहब भाजपा का यदि एकमात्र ये ही एजेंडा होता तो भी मानते की चलो कुछ तो सिद्धांत हैं..मगर आडवानी जी ने जब जिन्ना की कब्र पर मत्था टेका तभी समझ गए थे..की हाथी के दांत ..खाने के और..दिखाने के और..
ReplyDeleteek bahut purana geet yaad aaraha haiनकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे
ReplyDeleteमेरी नजर में भाजपा मुस्लिम विरोधी नहीं , तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों द्वारा अपनाई गई तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ है |
ReplyDeleteऔर इन तत्वों द्वारा तुष्टिकरण का विरोध करने वाले हर शख्स को साम्प्रदायिक करार दे दिया जाता है यही भाजपा व संघ के साथ होता आया है | ये तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें भाजपा की साम्प्रदायिकता का हौवा सिर्फ वोटों का धुर्विकरण बनाने के लिए खडा करते है | और इनकी इस चाल में अल्पसंख्यक आज तक फंसते आये है |
ये मेरे निजी विचार है जरुरी नहीं आप मेरे इन विचारों से सहमत हों |
आपने सही चित्रण किया है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
The very clear-cut distinction is : equal right to all, this is the agenda of BJP. If other parties gives special rights to some other community, then this is called secularism, but BJP want equal rules and right for all.
ReplyDeleteYou didn't presented things with an genuine argument.
मैं इस पोस्ट पर काफ़ी देर से आया हूं...आपका ब्लोग भी पहली बार देखा लेकिन सलीम जी, मैं आपके लेखन का कायल हो गया..काफ़ी अच्छा लिखते है आप...बहुत सही चित्रण किया है आपने...
ReplyDelete