सलीम अख्तर सिद्दीकी
1984 के लोकसभा में चुनाव भाजपा केवल दो सीटें जीतकर मर चुकी थी। केवल अन्तिम संस्कार शेष था। लेकिन राजीव गांधी की अपरिपक्व मंडली ने हिन्दुओं को खुश करने के लिए फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद पर लगे ताले को खुलवाकर बोतल में बंद जिन्न को बाहर निकाल दिया। ताला खुलने के बाद आखिरी सांसें गिन रही भाजपा को जैसे 'संजीवनी' मिल गयी। लालकृष्ण आडवाणी सहित कल्याण सिंह, साध्वी रितम्भरा, उमा भारती, अशोक सिंहल, विनय कटियार, प्रवीण तोगड़िया और न जाने कितने लोगों ने राम मंदिर को ही अपना एकमात्र मुद्दा बना लिया। गली-गली रामसेवकों की फौजें तैयार हो गयीं। नफरत,घृणा और कत्लोगारद का ऐसा माहौल तैयार किया गया कि हिन्दुस्तान का धर्मनिरपेक्ष ढांचा चरमरा कर रह गया। पूरा प्रदेश साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलसने लगा। नतीजा, 1989 के चुनाव में भाजपा की सीटें दो से बढ़कर 88 हो गयीं। भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह की जनता दल की सरकार को बाहर से समर्थन दिया। राम मंदिर आंदोलन अपनी गति से चलता रहा। बेकसूर हिन्दू और मुसलमानों का खून पीता रहा। भाजपा रुपी 'ड्राक्यूला' पनपता रहा। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया। इससे भाजपा बौखला गयी। आडवाणी रथ पर सवार होकर रामरथ लेकर यात्रा पर निकल पड़े। उनका रथ जहां-जहां से गुजरा वहां दहशत और नफरत फैलती चली गयी। आखिरकार भारी खून-खराबे के बाद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर में आडवाणी को गिफ्तार किया। राम रथ के घोड़े की लगाम को खींचकर उसे आगे बढ़ने से रोका। भाजपा ने विरोधस्वरुप जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया। नतीजे में 1991 में मध्यावधि चुनाव हुए। उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार बनी। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन भाजपा की 88 से बढ़कर 120 सीटें हो गयी। भाजपा ने अपनी ताकत बढ़ती देखकर राममंदिर आंदोलन को और ज्यादा तेज कर दिया। आखिरकार वो दिन भी आया, जब रामसेवकों ने पूरे संघ परिवार के संरक्षण में बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया।
1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ताकत बढ़कर 182 हो गयी। भाजपा ने अटल बिहारी के नेतृत्व में सरकार बनाने का दावा पेश किया लेकिन वाजपेयी संसद में बहुमत नहीं जुटा सके लिहाजा मात्र 13 दिन में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1998 में देश ने फिर से मध्यावधि चुनाव का दंश झेला। भाजपा की सीटें 188 हो गयीं। भाजपा ने फिर से केन्द्र में सरकार बनायी, जो केवल 13 महीने ही चल सकी। एक बार फिर देश पर मध्यावध्चिुनाव का भार पड़ा। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें नहीं बढ़ सकीं। वह 188 पर ही टिकी रही। तमामतर कोशिशों के बाद भी पूर्ण बहुमत पाने का भाजपा का सपना पूरा नहीं हो सका। 1999 में भाजपा ने राममंदिर, धारा 370 और समान सिविल कोड जैसे मुद्दों को सत्ता की खातिर कूड़े दान में डाल कर यह दिखा दिया कि वह अब सत्ता से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकती। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा को 2 से 188 सीटों तक लाने का श्रेय आडवाणी को ही जाता है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने में उनकी कट्टर छवि उनकी दुश्मन बन गयी। लेकिन भाजपा के पास अटल बिहारी वाजपेयी के रुप में एक 'मुखौटा' मौजूद था। इसी मुखौटे को आगे करके बार-बार के चुनावों से आजिज आ चुके छोटे-बड़े राजनैतिक दलों का समर्थन लेकर गठबंधन सरकार बनायी। भले ही भाजपा ने तीनों मुद्दों को छोड़ दिया हो, लेकिन संघ परिवार ने पर्दे के पीछे से अपना साम्प्रदायिक एजेंडा चलाए रखा।
फरवरी 2002 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में जो कुछ किया, वह उसी एजेंडे का हिस्सा था। नरेन्द्र मोदी 'हिन्दू सम्राट' हो गए। अब उन्हें 2014 का 'पीएम इन वेटिंग' बताया जाने लगा है। यह संघ परिवार का नया पैंतरा है। वह क्या संदेश देना चाहता है, इसे समझना मुश्किल नहीं है। संघ परिवार को अब वरुण में दूसरे नरेन्द्र मोदी भी दिखायी देने लगे हैं। भाजपा में जो शख्स दूसरे समुदायों के बारे में जितनी अधिक नफरत भरी बातें करता है, भाजपा में उसका कद उतना ही उंचा हो जाता है। उसे चुनावों में 'स्टार प्रचारक' का दर्जा हासिल हो जाता है। वरुण ने पीलीभीत की एक सभा में मुसलमानों के हाथ काटने की बात की तो नरेन्द्र मोदी के बाद अब वरुण भी भाजपा के स्टार प्रचारक हो गए। लेकिन जनता यह देख चुकी है कि वरुण कितने कमजोर दिल के इंसान हैं। माफी मांग कर जेल से बाहर आए हैं। संघ परिवार में माफी मांगने की परम्परा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी ब्रिटिश हुकूमत से माफी मांग कर रिहाई ले चुके हैं। भाजपा के लिए 90 का दशक स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। उस स्वर्णिम काल में भाजपा 188 सीटों से आगे नहीं बढ़ सकी है। अब नरेन्द्र मोदी या वरुण गांधी जैसे स्टार प्रचारक कितने भी गुजरात बनाने या मुसलमानों के हाथ काटने की बात करें, 'भाजपा शाईन' होना मुश्किल ही लगता है। क्या कोई भाजपाई यह बतायेगा कि क्या केवल दूसरे समुदायों के प्रति अनाप-शनाप बोल कर ही वोट हासिल किए जा सकते हैं ? क्या इस देश में मुद्दों का अकाल पड़ गया है ? भाजपा को तो मुसलमानों को एहसानमंद होना चाहिए कि वह उनकी वजह से 'मृत्यू शैया' से उठकर फिर से चलने-फिरने लगी है। मैं तो कभी-कभी यह सोचता हूं कि यदि इस देश में मुसलमान नहीं होते तो भाजपाई तो भूखे ही मर जाते।
इन चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में उलेमा काउन्सिल के सदर ने खुल कर कह दिया - ’भाजपा को हराने का ठेका हमने नहीं लिया । अन्य लोग हराने चाहते हों तो हमें वोट दें ।’ बहरहाल , काउन्सिल के चुनाव लड़ने से कम से चार सीटों पर भाजपा को अकल्पनीय लाभ मिला है । आजमगढ़ में चार ठाकुरों को जिन्दा गाड़ने वाले भाजपा उम्मीदवार रमाकान्त यादव को ठाकुरों ने भी वोट दिए !
ReplyDeleteअहसान तो मान ही रही होगी भाजपा !
अफ़लातून जैसा नाम वैसा काम मुसलमानो का हर गलत काम सही दिखता है तुझे अबे अंधे आख खोल कर देख फ़िर कह
ReplyDeleteभाजपा के विकास की कलई खोलती पोस्ट। इंसानी खून की सियासत करने वालो का चिटठा, सलीम साहब आपने बताया है। इसमें कोई एक तरफा बात नही बल्कि जो सच है वो ही तो कहा गया हैं।
ReplyDeleteअरे सलीम मियां बनने दो ना आडवाणी को पी एम। तुम तो नहा धोकर ही अडडू के पीछे पड़ गये हो। उसने इतना कत्लोआम मचाया। हजारों लोगों को मरवा दिया। आखिर इसी दिन के लिये तो कि एक दिन मैं भी राजा बनूंगा। अगर नही बना तो साला और विनाश मचायेगा। ये अपने अडडू की आखिरी इच्छा है पूरी होने दो।
ReplyDeleteजोरदार लिखते हो, जारी रखो. शायद इसी से मुसलमानों का भला हो जाए.
ReplyDeleteसिद्दकी साहब ,
ReplyDeleteपहले स्पष्ट कर दूं कि ना तो मै भाजपा का "डाई-हार्ड" समर्थक हूँ और न मुसलमानों का कट्टर विरोधी ! ना तो अब्दुल कलाम जैसी हस्तियों के पैर छुने में परहेज है और ना भगवा धारण किये चोर उचक्कों को गाली देने में !
मुसलमानों के विरोध में कुछ लिखता हूँ तो यह मानकर कि इसे पढ़कर मुसलमान अपनी/अपने समाज की खामियों को दूर करने का प्रयत्न करेंगे ! सच्चा मित्र वह होता है जो आपकी खामिया गिनाये ताकि एपी उनको दूर करने का प्रयास कर सके, न कि वह जो सिर्फ वोट बैंक के लिए आपके मुह आगे आपकी झूटी तारीफ करता फिर क्योंकि ये आप और हम अच्छी तरह जानते है कि आपको और हमको यानि हिन्दू-मुसलमानों को इस देश में युग-युगों तक साथ रहना है और हम यह कदापि नहीं चाहेंगे कि जब भी कोई बाहरी देशो के लोग इस देश में आये तो हमें ताने मारे कि किन जंगलियों ( गलत शब्द के लिए क्षमा ) को साथ में पाल रखा है ! बस !
रही बात आपके टोपिक की तो इतना ही कहूँगा कि जो बात आप बीजेपी के लिए कह रहे है वही आप पर भी सामान लागू होती है ! अगर ये हार्ड लायीं हिंदुत्व जैसे चीज़ नहीं होती इस देश में तो मुसलमानों को पूछता कौन ? इसलिए जब भी सोचे लिखे दोनों पह्लुवो को ध्यान में रख कर !
शुक्रिया !
पूजागृह तोड़ने की परम्परा काफ़ी पुरानी है। काश, ब्रिटिश जब आए तो आखिरी सम्राट को यह परम्परा याद आ जाती तो मुगल शासन कुछ दिन और चल जाता।
ReplyDeleteवैसे,भाजपा तो जो है सो है ही,यहाँ कौन किससे कम है सबको पता है। किन्तु भाजपा ने गाली देने को एक दल जो लोगों को दिया उसके लिए भी उसका हमें धन्यवाद करना चाहिए। अन्यथा किसी और दल को यह भाग्य प्राप्त होता।
कोई भारत का खाकर चीन का खयाल रखे, कोई कहे कि भारत के संसाधनों पर हर भारतीय का नहीं किसी विशेष धर्म का पहला अधिकार है। वह सब हमें मान्य है।
खैर,देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है। वैसे सभी ऊँट अपाहिज से हैं।
घुघूती बासूती
आपने लिखा "फरवरी 2002 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में जो कुछ किया,"उम्मीद है मोदी ने ऐसा क्यों किया? इस बात का जवाब भी आप देंगे..
ReplyDeleteAb aap maharashtra main hi dekh lijiye, shivsena aur raj ko jab koi mudda nahi mila to wo bihariyo ko hi gaaliya dene lage,kahan hein DESHPREMI? Kya maharashtra india se alag hain?
ReplyDelete