सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
हिन्दी पत्रकारिता में मुझे जिन लोगों ने प्रभावित किया है, उनमें प्रभाष जोशी, स्वर्गीय उदयन शर्मा साहब, स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर, आलोक तोमर, आलोक मेहता के नाम प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त जब मैंने इंडिया टुडे में शशि शेखर साहब का पाक्षिक कालम पढ़ा तो वह भी मेरी पसन्द में शामिल हो गए थे। वह बेबाक लिखते रहे हैं। लेकिन इधर कुछ दिनों से अमर उजाला में प्रकाशित होने वाले उनके आलेख में वो दम नजर नहीं आ रहा है, जिसका मैं कायल हूं। 13 अप्रैल के अमर उजाला में भाजपा के पीएम इन वेटिंग कहे जा रहे लालकृष्ण आडवाणी का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है। साक्षात्कार अमर उजाला के शशि शेखर साहब ने लिया है। साक्षात्कार पढ़कर कहीं से नहीं लगा कि यह उन्हीं शशि शेखर ने लिया है, जिनकी लेखनी का मैं हमेशा कायल रहा हूं। पढ़कर लगा कि जैसे शशि आडवाणी साहब का न सिर्फ बचाव कर रहे हैं, बल्कि उनकी कट्टर हिन्दू नेता की छवि को नजर अंदाज करके उन्हें ओबलाइज कर रहे हैं। ऐसा लगने की वजहूवात थीं। जब आडवाणी साहब की बात हो तो अस्सी के दशक में उनके द्वारा चलाया गया राम मंदिर आंदोलन को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि राम मंदिर आन्दोलन के चलते देश में आग लग गयी थी और हिन्दुत्व के नाम पर नफरत फैलायी गई। शहर दर शहर दंगे हुऐ। हजारों बेगुनाह मारे गए। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की दूरियां बढ़ गयी थीं। भाजपा के दो से 180 सीट पर लाने का श्रेय आडवाणी को ही जाता है। लेकिन देश ने इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकाई, इसे सभी जानते हैं। पता नहीं क्यों शशि साहब ने राम मंदिर आंदोलन का जिक्र तक नहीं किया। न ही उनसे गुजरात नरसंहार पर कोई सवाल किया। न ही यह पूछा गया कि वह नरेन्द्र मोदी का क्यों बचाव करते हैं। यह सवाल भी नहीं किया कि राम मंदिर के नाम पर क्यों बार-बार नफरत फैलाने का काम किया जाता है। आडवाणी साहब से यह भी पूछा जाना चाहिए था कि मजबूत और निर्णायक सरकार की बात करने वाले आडवाणी साहब जब सरकार में थे तो उन्होंने कंधार विमान अपहरणकर्ताओं के सामने घुटने टेक कर खतरनाक पाकिस्तानी आतंकवादियों का क्यों रिहा कर दिया था ? क्या ऐसी ही मजबूत सरकार होती है ? आडवाणी साहब से शश्ि जी यह भी पूछते कि सत्ता में आने के बाद सबसे पहले वे अफजल गुरु को फांसी देंगे या अजमल कसाब को ? जब एनडीए की सरकार थी, तब देश में कितने आतंवादी हमले हुऐ यह भी पूछा जाना चाहिए था। पूरे साक्षात्कार में शशि साहब आडवाणी के प्रति नरमी बरतते नजर आए। ऐसा लगा जैसे कोई तीखा सवाल करते ही आडवाणी साहब शशि जी को जहाज से नीचे फेंकने का हुक्म दे देते। या फिर ऐसा कुछ होगा कि यह साक्षात्कार गिव इन टेक के सिद्वान्त पर लिया गया हो। आखिर आजकल के पत्रकार भी तो राज्यसभा में जाने को लालायित रहते ही हैं। कई पत्रकार राज्यसभा के शोभा बढ़ा चुके हैं। कुछ आज भी बढ़ा रहे हैं। स्वर्गीय चन्दूलाल चंद्रराकर, राजीव शुक्ला, मीम अफजल, चंदन मित्रा आदि ऐसे ही पत्रकारों में हैं। यदि शशि शेखर की भी कोई ऐसी ही इच्छा हो तो इसमें बुरा क्या है। लेकिन क्या राज्यसभा में जाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है ? यह कैसी पत्रकारिता है शशि शेखर साहब !
हिन्दी पत्रकारिता में मुझे जिन लोगों ने प्रभावित किया है, उनमें प्रभाष जोशी, स्वर्गीय उदयन शर्मा साहब, स्वर्गीय राजेन्द्र माथुर, आलोक तोमर, आलोक मेहता के नाम प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त जब मैंने इंडिया टुडे में शशि शेखर साहब का पाक्षिक कालम पढ़ा तो वह भी मेरी पसन्द में शामिल हो गए थे। वह बेबाक लिखते रहे हैं। लेकिन इधर कुछ दिनों से अमर उजाला में प्रकाशित होने वाले उनके आलेख में वो दम नजर नहीं आ रहा है, जिसका मैं कायल हूं। 13 अप्रैल के अमर उजाला में भाजपा के पीएम इन वेटिंग कहे जा रहे लालकृष्ण आडवाणी का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है। साक्षात्कार अमर उजाला के शशि शेखर साहब ने लिया है। साक्षात्कार पढ़कर कहीं से नहीं लगा कि यह उन्हीं शशि शेखर ने लिया है, जिनकी लेखनी का मैं हमेशा कायल रहा हूं। पढ़कर लगा कि जैसे शशि आडवाणी साहब का न सिर्फ बचाव कर रहे हैं, बल्कि उनकी कट्टर हिन्दू नेता की छवि को नजर अंदाज करके उन्हें ओबलाइज कर रहे हैं। ऐसा लगने की वजहूवात थीं। जब आडवाणी साहब की बात हो तो अस्सी के दशक में उनके द्वारा चलाया गया राम मंदिर आंदोलन को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि राम मंदिर आन्दोलन के चलते देश में आग लग गयी थी और हिन्दुत्व के नाम पर नफरत फैलायी गई। शहर दर शहर दंगे हुऐ। हजारों बेगुनाह मारे गए। हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की दूरियां बढ़ गयी थीं। भाजपा के दो से 180 सीट पर लाने का श्रेय आडवाणी को ही जाता है। लेकिन देश ने इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकाई, इसे सभी जानते हैं। पता नहीं क्यों शशि साहब ने राम मंदिर आंदोलन का जिक्र तक नहीं किया। न ही उनसे गुजरात नरसंहार पर कोई सवाल किया। न ही यह पूछा गया कि वह नरेन्द्र मोदी का क्यों बचाव करते हैं। यह सवाल भी नहीं किया कि राम मंदिर के नाम पर क्यों बार-बार नफरत फैलाने का काम किया जाता है। आडवाणी साहब से यह भी पूछा जाना चाहिए था कि मजबूत और निर्णायक सरकार की बात करने वाले आडवाणी साहब जब सरकार में थे तो उन्होंने कंधार विमान अपहरणकर्ताओं के सामने घुटने टेक कर खतरनाक पाकिस्तानी आतंकवादियों का क्यों रिहा कर दिया था ? क्या ऐसी ही मजबूत सरकार होती है ? आडवाणी साहब से शश्ि जी यह भी पूछते कि सत्ता में आने के बाद सबसे पहले वे अफजल गुरु को फांसी देंगे या अजमल कसाब को ? जब एनडीए की सरकार थी, तब देश में कितने आतंवादी हमले हुऐ यह भी पूछा जाना चाहिए था। पूरे साक्षात्कार में शशि साहब आडवाणी के प्रति नरमी बरतते नजर आए। ऐसा लगा जैसे कोई तीखा सवाल करते ही आडवाणी साहब शशि जी को जहाज से नीचे फेंकने का हुक्म दे देते। या फिर ऐसा कुछ होगा कि यह साक्षात्कार गिव इन टेक के सिद्वान्त पर लिया गया हो। आखिर आजकल के पत्रकार भी तो राज्यसभा में जाने को लालायित रहते ही हैं। कई पत्रकार राज्यसभा के शोभा बढ़ा चुके हैं। कुछ आज भी बढ़ा रहे हैं। स्वर्गीय चन्दूलाल चंद्रराकर, राजीव शुक्ला, मीम अफजल, चंदन मित्रा आदि ऐसे ही पत्रकारों में हैं। यदि शशि शेखर की भी कोई ऐसी ही इच्छा हो तो इसमें बुरा क्या है। लेकिन क्या राज्यसभा में जाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है ? यह कैसी पत्रकारिता है शशि शेखर साहब !
ye mahoday kisi jamane men
ReplyDeletepatrkaar huaa karte the...
ab kya hen...ye aapka lekh bata hi rha hai...
आज तो ऐसा लगा की अडवानी जी का अच्छा विज्ञापन लिखा शशी शेखर जी ने .
ReplyDeleteis jamaane me aisa bhi hota hai..achchhe achchhe log bhatak jaate hai ..
ReplyDeleteअब चुनाव से पहले झंडें और बेनरों की तरह से पत्रकार भी खरीदें जाते हैं।
ReplyDeleteगलती आप की है जनाब। आप सियार को शेर समझते रहे। उच्च पदों की प्राप्ति के लिए चाटुकारिता जरूरी है।
ReplyDeleteatul Maheshwari ek zamane mein kahta tha ki aise gunde ko nahi le sakta akhbaar mein. aaj wo vahan malikana andaj mein hai.
ReplyDeleteVaise jab seculerism ka dabav tha to wo secular tha aaj nanga daur hai to wo bhi nanga hai
सलीम भाई इधर कुछ दिनों से मैंने काफी कुछ देखा जब से चुनाव का माहोल गरम हुवा तो पत्रकार बन्धुवों की निकल पड़ी है हर पी.सी.के बाद लाइन में खड़े विदाई का इन्तिज़ार करते ये बंधू आपको हर जगह मिल जायेंगे और इन्ही में से कुछ कल के शशि शेखर जैसे भी होंगे अब तो पत्रकारिता पूरी तरह से व्यावसायिक हो चुकी है......और कमल से मिलने के लिए कीचड़ में तो उतरना ही होगा.....?
ReplyDeleteआपका हमवतन भाई ......गुफरान....अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद