Thursday, November 13, 2008

फौज को साम्प्रदाकिता के कीड़े से बचाएं

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
मालेगांव बम धमाकों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफतारी के बाद, इस कांड में नये-नये खुलासों का सिलसिला अभी थमा नहीं है। प्रत्येक दिन होने वाला खुलासा चिंताजनक ही नहीं खतरनाक भी है। 11 नवम्बर को कानपुर के संत अमृतानंद को हिरासत में लिया गया है। बम धमाकों की साजिश में मेजर और कर्नल रैंक के फौजी अफसरों की कथित संलिप्तता सामने आने के बाद तो सिहरन पैदा होती है। साम्प्रदायिक दंगों के दौरान सिविल पुलिस और प्रांतीय सशस्त्र बलों पर एक समुदाय पर ज्यादती करने के आरोप लगते रहे हैं। इन आरोपों के चलते ही साम्प्रदायिक दंगों में प्रांतीय सशस्त्र बलों के स्थान पर फौज को तैनात करने की मांग की जाती रही है। फौज ने प्रांतीय सशस्त्र बलों से बाहर हुऐ साम्प्रदायिक दंगों पर काबू भी पाया है। भारतीय फौज का चरित्र सैक्यूलर रहा है। चन्द फौजी अफसरों के मालेगांव धमाकों में शामिल होने के आरोपों के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि पूरी भारतीय फौज में साम्प्रदायिकता का कीड़ा लग गया है। लेकिन फौज के जितने भी हिस्से में साम्प्रदायिकता का कीड़ा लगा है, उस हिस्से की पहचान करके, उसे निकालना भी जरुरी है। यह पता चलना ही चाहिए कि सैक्यूलर फौज में साम्प्रदायिकता का कीड़ा कौन लगा रहा है ? फौजियों को बरगलाकर बम धमाकों में शरीक करने में उन साम्प्रदायिक हिन्दू संगठनों का बराबर नाम आ रहा है, जो अपने को राष्ट्रवादी कहते नहीं थकते। आतंकवाद को मुसलमानों से जोड़कर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले संघ परिवार के नेता अब सफाई देते घूम रहे हैं कि साध्वी प्रज्ञा बेकसूर है। गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी की भूमिका की आलोचना करने पर मानवाधिकार आयोग को ÷आतंकवादी अधिकार आयोग' बताने वाले संघ परिवार के नेता साध्वी के मामले को मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग में ले जाने की बात कर रहे हैं। चलिए संघ परिवार के नेताओं को यह तो लगा कि मानवाधिकार आयोग आतंकवादी अधिकार आयोग नहीं है।
भारत के संविधान में प्रत्येक नागरिक को अपने उपर लगे आरोप का बचाव करने का पूरा अधिकार है। लेकिन जब किसी बम धमाके में मुस्लिम आतंकवादी पकड़े जाते हैं तो संविधान की यह कहकर धज्जियां उड़ाई जाती रही हैं कि आतंकवादियों को अपना बचाव करने का अधिकार नहीं है। उन्हें कानूनी सहायता नहीं मिलनी चाहिए। देश की कई ÷बार एसोसिएशन' यह ऐलान कर चुकी हैं कि आतंकवादियों का केस कोई भी वकील नहीं लड़ेगा। यहां तक कहा गया कि आतंकवादियों को बिना ट्रायल के ही सरेआम फांसी दे देनी चाहिए। बटला हाउस एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग तथा आतंकवादी होने के आरोप में पकड़े गये जामिया के छात्रों की कानूनी मदद के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति मुशीरुल हसन के आगे आने पर हाय तौबा मचाने वाला संघ परिवार, साध्वी और उसके साथियों की मदद की बातें क्यों कर रहा है। क्यों कानूनी मदद के लिए बैंकों में एकाउंट खोले जा रहे हैं। क्यों अब बाल ठाकरे यह कह रहे हैं कि एटीएस साध्वी मामले में बाज आए, वरना खून-खराबा हो जायेगा। यह सब लिखने का मतलब यह नहीं है कि साध्वी और उसके साथियों को कानूनी मदद नहीं मिलनी चाहिए या उन्हें अपना बचाव करने का अधिकार नहीं है। गिला इस बात का है कि संघ परिवार आतंकवाद जैसी राष्ट्ररीय और गम्भीर समस्या पर दोहरे मापदंड क्यों अपना रहा है ? क्यों वह आतंकवाद का वर्गीकरण करके समस्या को उलझा रहा है ? क्यों आतंकवाद का भी साम्प्रदायिकरण कर रहा है ?
मैंने एक लेख में यह शंका जाहिर की थी कि कहीं ऐसा तो नहीं सिमी, इंडियन मुजाहिदीन और हुजी की के साथ ही कोई और भी संगठन बम धमाकों को अंजाम नहीं दे रहा है। यह शंका इसलिए थी कि पाकिस्तान जाने वाली समझौता एक्सप्रेस, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, मालेगांव की एक मस्जिद और अजमेर की दरगाह और अन्य कई शहरों में हुऐ बम धमाकों में सौ से अधिक लोग मारे गए थे। मरने वाले सभी मुसलमान थे। मालेगांव बम धमाकों के खुलासे के बाद शंका सही साबित हुई। अब एटीएस कर्नल पुरोहित पर समझौता एक्सप्रेस में हुऐ बम धमाकों में शामिल होने का शक जाहिर कर रही है। 11 नवम्बर को केरल के चेरुवनचेरी में बम बनाते समय हुऐ धमाके में आरएसएस के दो कार्यकताओं की मौत की भी जांच जरुरी है। महाराष्ट्र सहित सभी राज्यों की एटीएस को मुशीरुल हसनों की मांगों, बाल ठाकरों की धमकियों तथा सभी कथित सेक्यूलर और सामप्रदायिक राजनैतिक दलों की बयानबाजियों की परवाह नहीं करते हुऐ जांच को निष्पक्षता से आगे बढ़ाते रहते रहना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आतंकवादी ने इस्लाम का चेहरा लगा रखा है या हिन्दुत्ववादी का। आतंकवादियों की पहचान होना जरुरी है। यदि आतंकवादियों की सही-सही पहचान हो जायेगी तो आतंकवाद पर काबू पाने में आसानी होगी। मुस्लिम उलेमा समय-समय पर आतंकवाद को कतई गैरइस्लामी बता कर इसे जेहाद नहीं फसाद बता चुके हैं। इसी प्रकार अब वक्त आ गया है कि हिन्दू संत भी आगे आकर संघी मार्का हिन्दुत्व का विरोध करें।
170 मलियाना, मेरठ।

4 comments:

  1. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
    ---
    आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
    ---
    अमित के. सागर
    (उल्टा तीर)

    ReplyDelete
  2. सही बात...आतंकवादी घटनाओं की निष्पक्ष जांच तो होनी ही चाहिए...

    ReplyDelete