Monday, April 22, 2013

अनूठा है साइबर संसार


सलीम अख्त सिद्दीकी

साइबर संसार भी अनूठा है। कोई बा
त शेयर करो, तो कहीं की कहीं पहुंच जाती है। अब देखिए न। ‘दैनिक जनवाणी’ में मेरा रह रविवार एक कॉलम चलता है ‘तमाशबीन’। इसके जरिए मैं समाज की विसंगतियां उजागर करता रहता हूं। अखबार में प्रकाशित होने के बाद मैं इसे बपने ब्लॉग पर शेयर करता हूं। इसके बाद यह कहां-कहां पहुंच जाता है, इसका पता तब चलता है, जब वह कहीं ओर नजर आता है। मैंने अपने ब्लॉग पर पिछले सप्ताह ‘ये हमारे-तुम्हारे बच्चे तो नहीं?’ शीर्षक से पोस्ट डाली। उस पोस्ट को ‘100 फ्लावर्स’ ब्लॉग ने उठा लिया। वहां से ‘हिंदुस्तान’ने अपने ‘साइबर संसार’ में आज प्रकाशित किया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। ‘ब्लॉग इन मीडिया डॉट कॉम’ने यह बता दिया कि यह पोस्ट आज के हिंदुस्तान में प्रकाशित हुई है। वाकई है न साइबर संसार अद्भुत 

Sunday, April 21, 2013

मजहब पर भारी समाज

सलीम अख्तर सिद्दीकी
सुबह के लगभग सात बजे थे। मैं अभी सोकर नहीं उठा था। दरवाजे पर दस्तक हुई। बाहर निकल कर देखा, तो मेरे मोहल्ले के कुछ ‘मौअजिज’ लोग खड़े थे। उनमें से कुछ हज कर आए थे और कुछ जाने की तैयारी में थे। कुछ ऐसे भी थे, जो कई साल से इस्लाम की दावत दे रहे थे और इस काम के लिए दुनियाभर में घूमते थे। उन्होंने मुझसे दरियाफ्त किया कि मोहल्ले की कुछ समस्याओं के लिए इलाके के पार्षद के यहां जाना है। पार्षद दलित हैं तथा हमारे घर से कुछ ही दूरी पर उनका मकान है। सुबह-सुबह जाने का मकसद यही था कि वह घर पर ही मिल जाएंगे। सभी पार्षद के घर पहुंचे। उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से सबका इस्तकबाल किया। बैठे हुए थोड़ी ही समय हुआ कि एक छोटी बच्ची गिलास में पानी लेकर हाजिर हुई। सभी ने एक-एक करके पानी के लिए मना कर दिया। अकेले मैंने ही पानी के गिलास की ओर हाथ बढ़ाया। पानी पीते हुए मेरी नजर अपने एक साथी पर पड़ गई। वह मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे कह रहे हों कि ‘यह क्या कर रहे हो।’ मैं उनकी नजरों को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि एक टेÑ में चाय, नमकीन और बिस्कुट आ गए। पार्षद ने सभी से चाय लेने का आग्रह किया। लेकिन, सभी ने कोई न कोई बहाना बना इंकार कर दिया। पार्षद के चेहरे पर व्यंग्यात्मक भाव आए। पार्षद ने मेरी ओर देखा। मैंने ट्रे से चाय का कप उठा लिया। बाकी चाय के कप ट्रे में रखे रहे। किसी ने नमकीन और बिस्कुट की ओर भी हाथ नहीं बढ़ाया। पार्षद ने संबंधित समस्याएं सुनीं और उन्हें दूर करने का आश्वासन दिया। थोड़ी देर बाद पार्षद से चलने की आज्ञा मांगी, तो उन्होंने कहा, ‘मैं भी आपसे कुछ कहना चाहता हूं।’ सभी ने उनकी ओर सवालिया नजरों से देखा। पार्षद ने कहना शुरू किया, ‘जिस धर्म से आप हैं, मैंने उसका थोड़ा-बहुत अध्ययन किया है। मुझे हजरत मुहम्मद साहब की वह बात बहुत अच्छी लगती है, जब उन्होंने एक हब्शी गुलाम को खरीदकर उस समय गले लगाया था, जब कोई उनके पास जाना भी नहीं चाहता था। वह गुलाम हजरत बिलाल थे। मेरा यही अनुरोध है कि कम से कम इस्लाम के बुनियादी उसूलों पर समाज की कुरीतियों का बोझ डालकर उन्हें दबाइए मत।’ किसी के पास कोई जवाब नहीं था। बात में पता चला कि उनमें से कई को यही पता नहीं था कि हजरत बिलाल कौन थे?

Sunday, April 14, 2013

‘बपतिस्मा’ की खुशी में आज शाम की बीयर मेरी तरफ से


सलीम अख्तर सिद्दीकी
वह शहर का एक ऐसा पॉश इलाका था, जहां पर कई नामी पब्लिक स्कूल थे। बढ़ती गर्मी के बीच उस इलाके से गुजर रहा था, तो प्यास की वजह से गला सूखने लगा। मैंने पानी की तलाश में इधर-उधर निगाह दौड़ाई, लेकिन उस कंक्रीट के जंगल में कहीं हैंडपंप तक नहीं नजर आया। मैं एक दुकान पर पानी की बोतल लेने के लिए रुका। बोतल लेकर उसे खोला और मुंह से लगाया ही था कि दुकान के सामने पांच-छह मोटर साइकिलें आकर रुकीं। सभी धड़धड़ाते अंदाज में दुकान में घुसे। दुकान काफी बड़ी थी, जहां बैठने के लिए कुर्सियां मेज लगी हुई थी। छात्र नामी पब्लिक स्कूल के छात्र थे। उस स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला दिलाने के लिए ‘दीवानगी’ थी। स्कूल का रिजल्ट शतप्रतिशत रहत था। इसकी वजह यह थी कि वह सिर्फ टेलेंटिड छात्रों का दाखिला ही लेता था। पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए वहां कोई जगह नहीं थी। गरीब बच्चे वहां पढ़ नहीं सकते थे, क्योंकि वहां के खर्च उठाना उनके बस की बात नहीं थी। यानी उस स्कूल में इतनी काबिलियत नहीं थी कि वह पढ़ाई में कमजोर बच्चों को किसी काबिल बना सके। अमीर लोग स्कूल के दावों की जांच किए बगैर स्कूल संचालक की हर शर्त पूरी करते थे। एक होड़ थी और अभिजात्य वर्ग उसमें शामिल था।
बहरहाल, जो छात्र बाइक पर आए थे, उनकी की उम्र से लगता था कि वे 11वीं या 12वीं के छात्र लग रहे होंगे। दुकानदार को जैसे पता था कि उन्हें क्या चाहिए। छात्रों के कुछ कहने से पहले ही दुकानदार ने महंगी सिगरेट का एक पैकेट उनकी ओर बढ़ा दिया। सभी ने अपने-अपने लिए पैकेट में से एक-एक सिगरेट निकाली। एक छात्र ने बारी-बारी से सभी की सिगरेट सुलगाई। एक छात्र ऐसा भी था, जो शायद सिगरेट नहीं पीता था। उसका हाथ खाली देखकर एक छात्र ने कहा, ‘अबे! यह क्यों सिगरेट नहीं पी रहा है?’ दूसरे छात्र ने सिगरेट न पीने वाले छात्र का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘तू जानता नहीं, यह अपने स्कूल में ‘भाई साहब’ के नाम से मशहूर है।’ सभी ने ठहाका लगाया। लड़का झेंप गया। तभी एक छात्र अपनी सिगरेट लेकर आगे बढ़ा, ‘आज इसका ‘बपतिस्मा’ करते हैं।’ इतना कहकर उसने सिगरेट उसके मुंह से लगा दी। छात्र ने नानुकर की तो एक छात्र बोला, ‘अबे! नखरे मत कर। तेरा बपतिस्मा हो जाएगा, तो आज सभी को कोल्ड ड्रिंक मेरी तरफ से।’ यह प्रस्ताव सुनकर सभी उससे सिगरेट में कश लगाने की जिद करने लगे। उस छात्र ने थोड़े अनमने ढंग से सिगरेट में दो-तीन कश लगाए और खांसता हुआ बाहर चला गया। सभी छात्रों ने जोरदार तरीके से ‘हुर्रे’ बोला। कोल्ड ड्रिंक की बोतलें खुलने लगीं। वह छात्र दोबारा दुकान में घुसा। अब उसने खुद एक छात्र के हाथ से सिगरेट लेकर कश लगाए। तभी छात्रों में से एक की आवाज आई, ‘यह तो बहुत जल्दी सैट हो गया। इसके बपतिस्मा की खुशी में आज शाम की बीयर मेरी तरफ से।’ दुकान में बीयर पिलाने की बात करने वाले छात्र के पक्ष में नारे लगने लगे। जरा सोचिए, इनमें हमारे-तुम्हारे बच्चे तो नहीं हैं?