सलीम अख्तर सिद्दीकी वह एक ऐसे एनजीओ का कार्यक्रम था, जो बच्चों के उत्थान के लिए काम करता था। मैं कार्यक्रम में पहुंचा, तो वहां जो वक्ता थे, उनको देखकर दिमाग में फौरन ही यह सवाल कौंधा था कि अपनी फैक्ट्रियों में बच्चों का शोषण करने वालों का यहां क्या मतलब? बाद में पता चला था कि पूरे कार्यक्रम का खर्चही उन फैक्ट्री मालिकों ने उठाया था। मकसद यही रहा होगा कि एनजीओ उनकी फैक्टरी में आकर न झांकें। कार्यक्रम में ऐसे बच्चों को लाया गया था, जो उस स्कूल में पढ़ते थे, जिन्हें एनजीओ चलाता था। मुख्य वक्ता के रूप में ऐसा उद्योगपति था, जिसकी फैक्ट्री में सैकड़ों बच्चे काम करते थे। उसने माइक संभालते ही बच्चों के शोषण पर जमकर आंसू बहाए और तालियां बटोरीं। मैं हैरान परेशान उन तालियां बजाने वालों के चेहरे देख रहा था, जिन्हें खुद भी उसकी असलियत मालूम थी। कार्यक्रम में कईचेहरे ऐसे भी थे, जो कई गंभीर आरोपों के चलते विवादों में रहे थे। मुख्य वक्ता उद्योगपति अपना ‘उद्बोधन’ समाप्त करके तालियों के बीच अपनी कुर्सीकी ओर बढ़ रहा था, तो एनजीओ के अध्यक्ष उसे सवालिया नजरों से देख रहे थे। शायद उद्योगपति ने उनसे ऐसा कोईवादा किया था, जिसे उन्हें यहां बताना था। उद्योगपति अपनी कुर्सीपर जाकर बैठा। एनजीओ अध्यक्ष बैचैनी से कुर्सीपर पहलू बदलने लगे। थोड़ी देर बाद अध्यक्ष महोदय कुर्सीसे उठे और उद्योगपति के कान में जाकर कुछफुसफुसाया। उद्योगपति के चेहरे से लगा, जैसे उसे ऐसा कुछयाद आ गया है। उसने गर्दन से हामी भरी। अध्यक्ष के चेहरे पर इत्मीनान के भाव उभरे और वह अब आराम से अपनी कुर्सी पर जाकरबैठ गया। अब वह दूसरे वक्ता को बोलते हुए देख रहाथा, जो बाल कल्याण विभाग का अधिकारी था, लेकिन बच्चों से ज्यादा अपना कल्याण करने के लिए जाना जाता था। उसके बोर भाषण से बचने के लिए मैंने अपनी नजरें इधर-उधर दौड़ाईं। मुझे लगा वहां मौजूद बच्चों में से कुछकम हैं। मैंने उनकी तलाश में नजरें इधर-उधर दौड़ाईं। बराबर के एक कमरे में कुछ बच्चे मेज-कुर्सीबिछाने में लगे थे। एक 8-10 साल की बच्ची पोंछा लगा रही थी। अध्यक्षीय भाषण के उद्योगपति को दोबारा माइक दिया गया और उन्होंने एनजीओ को एक लाख रुपये अनुदान देने की घोषणा की। हॉल तालियों से गूंज उठा। संचालक ने जलपान ग्रहण करने का ऐलान किया। सभी बराबर वाले कमरे की ओर चले। एनजीओ अध्यक्ष जोश में जैसे ही कमरे में घुसे, एक बच्चा, जिसके हाथ में पेस्ट्री से भरी प्लेट थी, उनसे टकरा गया। अध्यक्ष महोदय का कीमती सूट पेस्ट्री की क्रीम से खराब हो गया था। अध्यक्ष महोदय का एक जोरदार तमांचा उस बच्चे के गाल पर पड़ा और तमांचे की आवाज से कमरा गूंज गया। अब मेरा वहां रुकना मुमकिन नहीं था।
Saturday, March 2, 2013
तमांचे की गूंज
सलीम अख्तर सिद्दीकी वह एक ऐसे एनजीओ का कार्यक्रम था, जो बच्चों के उत्थान के लिए काम करता था। मैं कार्यक्रम में पहुंचा, तो वहां जो वक्ता थे, उनको देखकर दिमाग में फौरन ही यह सवाल कौंधा था कि अपनी फैक्ट्रियों में बच्चों का शोषण करने वालों का यहां क्या मतलब? बाद में पता चला था कि पूरे कार्यक्रम का खर्चही उन फैक्ट्री मालिकों ने उठाया था। मकसद यही रहा होगा कि एनजीओ उनकी फैक्टरी में आकर न झांकें। कार्यक्रम में ऐसे बच्चों को लाया गया था, जो उस स्कूल में पढ़ते थे, जिन्हें एनजीओ चलाता था। मुख्य वक्ता के रूप में ऐसा उद्योगपति था, जिसकी फैक्ट्री में सैकड़ों बच्चे काम करते थे। उसने माइक संभालते ही बच्चों के शोषण पर जमकर आंसू बहाए और तालियां बटोरीं। मैं हैरान परेशान उन तालियां बजाने वालों के चेहरे देख रहा था, जिन्हें खुद भी उसकी असलियत मालूम थी। कार्यक्रम में कईचेहरे ऐसे भी थे, जो कई गंभीर आरोपों के चलते विवादों में रहे थे। मुख्य वक्ता उद्योगपति अपना ‘उद्बोधन’ समाप्त करके तालियों के बीच अपनी कुर्सीकी ओर बढ़ रहा था, तो एनजीओ के अध्यक्ष उसे सवालिया नजरों से देख रहे थे। शायद उद्योगपति ने उनसे ऐसा कोईवादा किया था, जिसे उन्हें यहां बताना था। उद्योगपति अपनी कुर्सीपर जाकर बैठा। एनजीओ अध्यक्ष बैचैनी से कुर्सीपर पहलू बदलने लगे। थोड़ी देर बाद अध्यक्ष महोदय कुर्सीसे उठे और उद्योगपति के कान में जाकर कुछफुसफुसाया। उद्योगपति के चेहरे से लगा, जैसे उसे ऐसा कुछयाद आ गया है। उसने गर्दन से हामी भरी। अध्यक्ष के चेहरे पर इत्मीनान के भाव उभरे और वह अब आराम से अपनी कुर्सी पर जाकरबैठ गया। अब वह दूसरे वक्ता को बोलते हुए देख रहाथा, जो बाल कल्याण विभाग का अधिकारी था, लेकिन बच्चों से ज्यादा अपना कल्याण करने के लिए जाना जाता था। उसके बोर भाषण से बचने के लिए मैंने अपनी नजरें इधर-उधर दौड़ाईं। मुझे लगा वहां मौजूद बच्चों में से कुछकम हैं। मैंने उनकी तलाश में नजरें इधर-उधर दौड़ाईं। बराबर के एक कमरे में कुछ बच्चे मेज-कुर्सीबिछाने में लगे थे। एक 8-10 साल की बच्ची पोंछा लगा रही थी। अध्यक्षीय भाषण के उद्योगपति को दोबारा माइक दिया गया और उन्होंने एनजीओ को एक लाख रुपये अनुदान देने की घोषणा की। हॉल तालियों से गूंज उठा। संचालक ने जलपान ग्रहण करने का ऐलान किया। सभी बराबर वाले कमरे की ओर चले। एनजीओ अध्यक्ष जोश में जैसे ही कमरे में घुसे, एक बच्चा, जिसके हाथ में पेस्ट्री से भरी प्लेट थी, उनसे टकरा गया। अध्यक्ष महोदय का कीमती सूट पेस्ट्री की क्रीम से खराब हो गया था। अध्यक्ष महोदय का एक जोरदार तमांचा उस बच्चे के गाल पर पड़ा और तमांचे की आवाज से कमरा गूंज गया। अब मेरा वहां रुकना मुमकिन नहीं था।
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माचा मचिया मंच है, बोरा धरती धूल |
ReplyDeleteमहाजनों के लिए ही, बच्चे बगिया फूल |
बच्चे बगिया फूल, मूल में स्वार्थ छुपाये |
रहा सकल हित साध, किन्तु परमार्थ कहाए |
नन्हें मुन्हें बाल, प्यार से कहते चाचा |
इक छोटी सी भूल, लगाता चचा तमाचा ||
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ReplyDeleteधन्यवाद
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unke nam bhi khol dete to behtar tha . जबरदस्त कटाक्ष आभार छोटी मोटी मांगे न कर , अब राज्य इसे बनवाएँगे .” आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
यही आज की हकीकत है
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