Wednesday, February 19, 2014

कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं


सलीम अख्तर सिद्दीकी
2014 के लोकसभा चुनाव बहुत अहम हो गए हैं। यदि गौर से देखा जाए, तो एक मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की कोशिश है कि ये चुनाव सांप्रदायिक आधार पर लड़े जाएं। यही वजह है कि अपने कई सीनियर लीडर की अनदेखी करते हुए भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया। यह बताने की जरूरत नहीं कि मोदी की सोच क्या है? दरअसल, आगामी लोकसभा चुनाव धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायिक ताकतों के बीच होना है। देशवासियों पर यह अहम जिम्मेदारी आयद हो गई है कि वे देश को सांप्रदायिक शक्तियों के हाथों में जाने से रोकें। नरेंद्र मोदी भले ही फिलहाल सांप्रदायिक बयानों से बच रहे हैं, लेकिन उनकी मंशा यही है कि जिस तरह से उन्होंने गुजरात में मुसलमानों को हाशिए पर रख रखा है, देश की सत्ता पर काबिज होकर देश के सभी मुसलमानों को सबक सिखाया जाए। सवाल यह नहीं है कि गुजरात में 2002 के बाद दंगा हुआ या नहीं? सवाल यह है कि 12 सालों में मुसलमानों को किस हैसियत में रखा गया है। दंगा तो होकर गुजर जाता है, लेकिन किसी को राज्य या देश की मुख्यधारा से काट देना बहुत खतरनाक है।
दरअसल, आगामी लोकसभा चुनाव में सभी अल्पसंख्यक वर्गों की अहम जिम्मेदारी यह बनती है कि वे देश में ऐसी सरकार आने से रोकें, जो फासिस्ट विचारधारा की हो। जिसका अतीत भी हम देख चुके हों। मैं यह नहीं कहता अल्पसंख्यक किस धर्मनिरपेक्ष पार्टी को को वोट दें, लेकिन एक सवाल जरूर करूंगा कि क्या कांग्रेस का कोई विकल्प है? मेरा जवाब तो यही है कि नहीं है। इसकी वजह यह है कि देश में गैर कांग्रेस सरकार के नाम पर दो प्रयोग हुए। एक 1977 में जनता पार्टी का और दूसरा 1989 में जनता दल का। जनता पार्टी और जनता दल दोनों ही एक स्थिर सरकार देने में बुरी तरह नाकाम रहे। और फिर जो लोग जनता पार्टी या जनता दल में थे, उनमें भी ज्यादातर वे थे, जो कभी न कभी कांग्रेसी रहे थे। वह चाहे मोरारजी देसाई हों, चरण सिंह हों या वीपी सिंह। आज जो ताकतें सत्ता में आने के लिए बेचैन हैं, वे भी देश पर छह साल तक देश की सत्ता पर काबिज रहीं, लेकिन वे भी अंतत: नाकाम रहीं और 2004 में देश की जनता ने एक बार फिर देश की सत्ता कांग्रेस को सौंपने में ही भलाई समझी। 2009 में भी कांग्रेस और अधिक सीटें लेकर आई। आज प्रायोजित रूप से 1984 के सिख विरोधी दंगों का यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि उनमें कांग्रेसियों का हाथ था, लेकिन सच यह है कि उनमें संघ परिवार के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। एक सच यह भी है कि देश में जितने भी सांप्रदायिक दंगे हुए हैं, उनकी जांच में यही निष्कर्ष निकला कि उनमें आरएसएस के कार्यकर्ता शामिल थे। यह भी निकलकर आया कि  देश में हिंदुत्व आतंकवाद भी आरएसएस की सरपरस्ती में परवान चढ़ा। 
देश की जमीनी हकीकत कांग्रेस ही जानती है, इसलिए वह मनरेगा लेकर आती है। खाद्य सुरक्षा बिल पास कराती है। इसलिए मुझे तो लगता है की तारीख में कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस ही एक स्थिर सरकार दे सकती है।

2 comments:

  1. है कांग्रेस का विकल्प. सिंहासन खाली करो आ रहा है आम आदमी

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