Thursday, May 2, 2013

चुनाव नतीजे तय करेंगे मुशर्रफ का मुस्तकबिल

सलीम अख्तर सिद्दीकी
जब पाकिस्तान के पूर्व जनरल और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के जहाज ने कराची एयरपोर्ट पर लैंड किया था, तो अधिकतर लोगों का कयास था कि शिकार खुद चलकर जाल में आ फंसा है। बाद के दिनों में जिस तरह से उनके सभी नामांकन पत्र खारिज किए गए और एक अदालत ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए और वह भागकर अपने फार्म हाउस में जा छिपे, उसके बाद तो यकीन कर लिया गया है कि शिकार वाकई जाल में फंस चुका है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? मुशर्रफ सेना के जनरल रहे हैं। उनके पास थिंक टैंक है। वह ऐसे ही दौड़कर पाकिस्तान नहीं आ गए हैं। आज जो कुछ उनके साथ हो रहा है, उसके बारे में उन्होंने कई-कई बार सोचा होगा। ऐसा तब भी होता, जब और कुछ समय बाद आते। ठीक चुनाव के पहले पाकिस्तान आना उनकी रणनीति का हिस्सा है। वह ऐसा नहीं करते तो उन्हें अभी अगले चुनाव तक और इंतजार करना पड़ता। इस वक्फे में पाकिस्तान किस करवट बैठता, कोई नहीं जानता। 
मुशर्रफ की वापसी में अमेरिका व सऊदी अरब की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। मीडिया रिर्पोटें बताती हैं कि मुशर्रफ की वापसी से पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के खास नेताओं और नवाज शरीफ को सऊदी अरब बुलाया गया था और इच्छा जाहिर की थी कि मुशर्रफ के राजनीतिक धारा में लौटने में रोड़े न अटकाएं जाएं। अमेरिका और सऊदी अरब ऐसे देश हैं, जिनकी नाफरमानी कोई भी पाकिस्तान सरकार नहीं कर सकती। लेकिन वहां की न्यायपालिका ने वह कर दिया, जो सरकार भी नहीं करना चाहती थी। इसे उसकी प्रतिशोध की भावना भी कहा जा सकता है।  
मुशर्रफ सेना में लोकप्रिय रहे हैं। उन्हें सेना ने जरूर विश्वास दिलाया होगा कि यदि उनके साथ ज्यादती की जाती है, तो वह चुप नहीं बैठेगी। कई रिटायर्ड पाकिस्तानी जनरलों ने चेतावनी दी भी है कि अगर न्यायपालिका ने उनके पूर्व जनरल का का अपमान किया, तो इसकी प्रतिक्रिया हो सकती है। पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल (रिटायर्ड) मिर्जा असलम बेग ने भी साफ कहा है कि ‘खास स्तर’ से नीचे जाने के बाद सेना मुशर्रफ के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान सेना में कम से कम नौ सैन्य अधिकारी ऐसे हैं, जिन्हें मुशर्रफ ने ही प्रमोशन दिया था। ये कुछ संकेत ऐसे हैं, जो बताते हैं कि मुशर्रफ अकेले नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान में उनकी लोकप्रियता बिल्कुल भी नहीं है। वहां की प्र्रगतिशील अवाम में वह ऐसे शासक के रूप में जाने जाते हैं, जिसने फौजी तानाशाह होते हुए थी जनरल जिया-उल-हक के विपरीत धार्मिक कट्टरपन की जगह आधुनिक समाज को तरजीह दी। पाकिस्तान में प्रगतिशील लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है, जो धार्मिक उन्माद में जीना नहीं चाहते। भले ही मुशर्रफ के नामांकन रद्द कर दिए गए हों, लेकिन उनकी आल पाकिस्तान मुसलिम लीग चुनाव मैदान में है। उम्मीद की जा रही है कि उसके उम्मीदवारों को समर्थन मिलेगा। मुशर्रफ की जिस तरह से बेइज्जती की जा रही है, उसके बाद तो उनकी पार्टी को सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीदें भी हैं।
मुशर्रफ की गिरफ्तारी से चुनाव पर तो असर पड़ेगा ही, चुनाव के बाद पैदा होने वाले हालात भी असरअंदाज होने की उम्मीद है। पाकिस्तान में त्रिशंकु असेंबली के कयास लगाए जा रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी मुत्तेहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) किंग मेकर की भूमिका में हो जाएगी। मौजूदा असेंबली में एमक्यूएम के 25 सदस्य हैं। अबकी बार भी इससे कम सदस्य नहीं होंगे। इसकी वजह यह है कि कराची और हैदराबाद मुहाजिर बहुल क्षेत्र हैं और सबका वोट एकमुश्त एमक्यूएम को जाता है। इस सूरत में वह नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुसलिम लीग (एन) और आसिफ जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी से सौदेबाजी करने की हैसियत में होगी। जनरल मुशर्रफ को मुहाजिर होने के नाते एमक्यूम का पूरा समर्थन हासिल है। वह उस पार्टी को समर्थन दे सकती है, जो जनरल मुशर्रफ से तमाम केस वापस लेने की गारंटी दे सके। खुद मुशर्रफ की पार्टी आल पाकिस्तान मुसलिम लीग को भी कुछ सीटें मिल जाती हैं तो  काम और ज्यादा आसान हो जाएगा। जब पाकिस्तान में ‘मिस्टर टेन परसेंट’ से मशहूर आसिफ अली जरदारी, जो खरबों रुपयों की लूट के आरोप में जेल बंद थे, वहां से सीधे राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहुंच सकते हैं, तो जनरल मुशर्रफ के केस भी वापस हो सकते हैं। सत्ता के लिए दुश्मन से दोस्त और दोस्त से दुश्मन बनने का सिलसिला बहुत पुराना है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि मुशर्रफ की गिरफ्तारी के बाद भी उनका खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। असली खेल तो चुनाव के बाद शुरू होगा। दरअसल, चुनाव ही मुशर्रफ का तुरप का पत्ता है। इसमें बस एक खामी यह है कि वह पत्ता इक्का नहीं है। यानी यदि हंग असेंबली नहीं आई, तो उनकी तुरप पिट भी सकती है। ऐसा हुआ, तो उनका हश्र कुछ भी हो सकता है। शायद जुल्फिकार अली भुट्टो जैसा? लेकिन अमेरिका, सऊदी अरब और फौज उन्हें बचा भी सकती है। बहरहाल, मुशर्रफ के मुस्तकबिल का फैसला चुनाव के नतीजे तय करेंगे।

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