- का मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र। रात के लगभग दस बजे हैं। देर रात तक गुलजार रहने वाले इस क्षेत्र की एक चाय की दुकान पर छह-सात लोग नई बनी विधानसभा सीट पर हुए मतदान के रुझन को लेकर माथापच्ची करने में मशगूल हैं। सबका एक एजेंडा है, एक खास उम्मीदवार किसी भी हालत में नहीं जीतना चाहिए, भले ही उस पार्टी का उम्मीदवार जीत जाए, जिसे हराने के लिए वे आज तक वोटिंग करते आए हैं। की खबर को एक आदमी पढ़कर बाकी लोगों को सुना रहा है। खबर के मुताबिक वह उम्मीदवार दौड़ में कहीं नहीं है, जिसे वह हराना चाहते हैं। सबके चेहरे पर इत्मीनान झलकता है।
उनमें से एक आदमी चाय वाले को आवाज देकर कहता है, ‘भैया, पांच चाय छह जगह देना।’ एक सिगरेट सुलगा लेता है। वे फिर से वोटिंग के हिसाब-किताब में मशगूल हो जाते हैं। थोड़ी देर बाद एक और शख्स वहां पहुंचता है। उसे देखकर उनमें से एक आदमी चाय को सात जगह कर देने का आग्रह चाय वाले से करके नवआगुंतक की ओर मुखातिब होकर पूछता है, ‘क्या खबरें हैं चुनाव की?’ उस आदमी के चेहरे पर थोड़े असमंजस के भाव हैं। वह कहता है, ‘हमारे अस्सी प्रतिशत वोट तो उसे नहीं पड़े, लेकिन दूसरे समुदाय के उसके समर्थकों ने जमकर वोट डाले हैं, समझ नहीं आ रहा क्या होगा? मुङो तो वही जीतता लग रहा है।’ सबके चेहरे लटक जाते हैं। चाय वाला उनके सामने चाय के गिलास रख गया है। सब खामोशी से चाय की चुस्कियां लेने लगे हैं। एक आदमी खामोशी तोड़ते हुए कहता है, ‘बिना हमारे वोट के थोड़े ही जीत जाएगा वह?’ एक आदमी तल्खी से कहता है, ‘लेकिन हमारे वोट भी तो बिरादरीवाद के चक्कर में बंटे हैं।’ एक और अपनी टांग फंसाते हुए कहता है, ‘उसकी बिरादरी के वोट भी तो बंटे हैं, हिसाब बराबर हो जाएगा।’ उनमें से एक और आवाज उभरती है, ‘और शहर सीट पर क्या हुआ है?’ उसके सवाल का आता है, ‘अरे, शहर को छोड़ो, यह बताओ कि वह हार रहा है या नहीं?’ बहुत देर तक उनमें सवाल-जवाब होते रहे। आंकड़े लगाए जाते रहे। हर बार बात अगर-मगर और हालांकि पर अटक जाती थी। बहुत देर बाद भी वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे। इस बीच कई बार चाय का दौर चला। एक आदमी बोला, ‘दो दिन बाद पता चल जाएगा, क्यों मगजमारी करते हो? यह तो तय है कि उसकी पार्टी की सरकार नहीं बना रही है।’ एक आदमी ने बहुत तल्खी से कहा, ‘सरकार तो नहीं आएगी, लेकिन वह पाला बदलकर सरकार के साथ आ सकता है, इसलिए उसका हारना जरूरी है।’
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