Sunday, February 12, 2012

दीन-ईमान, जरूरत के गणित के साए में

सलीम अख्तर सिद्दीकी

हाजी जी ने फोन करके कहा था कि मैं मगरिब की नमाज के बाद उनके घर आ जाऊं। विधानसभा का चुनाव लड़ रहा एक दमदार उम्मीदवार उनके घर आने वाला है। हमारे हाजी जी आजकल इलाके के ‘मुअजिज’ लोगों में शुमार किए जाते हैं। अब से लगभग दस साल पहले आम आदमी की हैसियत से भी नीचे थे। बाप-दादा की दस बीघा जमीन गजों में तब्दील होकर बिकनी शुरू हुई, तो पैसे के साथ रुतबा भी बढ़ता चला गया। पैसा आया तो जुमे के जुमे नमाज पढ़ने वाला शख्स एक दिन हज भी कर आया और हाजी जी हो गए। प्रोफाइल में हाजी जोड़ने का चलन भी आजकल कुछ ज्यादा ही हो गया है। मैं तयशुदा वक्त पर पहुंच गया था। उम्मीदवार अभी नहीं आया था। इंतजार करतेकर ते ईशा की अजान भी हो गई। उम्मीदवार पूरे दलबल के साथ बाद नमाज ईशा के आए।

उम्मीदवार भी हाजी ही थी। हाजी जी की हॉलनुमा बैठक में इलाके के कुछ और मुअजिज लोगों के साथ उम्मीदवार ने अपनी बात रखी और वोट देने की अपील की। ‘गैर मुअजिज’ लोग बाहर से झंककर नेता जी के दीदार करके मन मसोस रहे थे। सभी मुअजिज लोगों ने उम्मीदवार को जिताने का संकल्प लिया। उनका कहना था कि यहां की वोट तो हमारे ही हाथ में हैं, जहां कहेंगे, वहीं डालेंगे। बाहर खड़े गैर मुअजिज लोग, जो उम्मीदवार की शानदार गाड़ियों के इर्दगिर्द जमा थे, परे हट गए।

उम्मीदवार ने उन लोगों से बात तक करना पसंद नहीं की।

दो दिन बाद फिर हाजी जी का फोन आया। फिर यही कहा गया कि नेताजी घर से आ रहे हैं, शाम को जल्दी आ जाऊं।

मैं अबकी बार थोड़ी देर से पहुंचा था। नेताजी तशरीफ ला चुके थे। हाजी जी की बैठक में जो लोग बैठे थे, वे दो दिन पहले लोगों से थोड़ा जुदा थे। हां, इतना जरूर था कि इलाके के कुछ वे मुअजिज लोग भी थे, जो दिन पहले थे। अबकी बार दूसरी पार्टी से लड़ने वाला एक और कद्दावर उम्मीदवार समर्थन मांगने आया था। हाजी जी ने उम्मीदवार की शान में कसीदे पढ़ने शुरू किए, तो मुझ समेत कई लोग उन्हें टुकर-टुकर देखने लगे।

हाजी जी ने उम्मीदवार को पूरा यकीन दिलाया कि इलाके के वोट आपको ही मिलेंगे, बिल्कुल भी फिक्र न करें। नाश्ते के बाद नेता जी विदा हो गए, तो मैंने हाजी जी से कहा, ‘यह क्या है, कल तक आप दूसरे को वोट दिलाने का भरोसा दिला रहा थे और आज इसे, कुछ दीन-ईमान है या नहीं आपका?’ हाजी जी ने कहा, ‘मियां सब कुछ गया तेल लेने। टक्कर इन दोनों में ही है। इन्हीं में से कोई एक जीतेगा। जो जीतेगा, पांच साल के लिए उसी के हो जाएंगे। नेता भी तो ऐसा ही करते हैं।

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