सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
अयोध्या विवाद के संभावित फैसले पर मुझे झटका तब लगा, जब मेरे एक दोस्त की पन्द्रह साल की बेटी का एक एसएमएस मिला। एसएमएस में लिखा था- 'बाबरी मस्जिद का फैसला आने वाला है। दुआ कीजिए कि फैसला मुसलमानों के हक में हो। इस एसएमएस को अपने मुसलिम भाईयों को फॉरवर्ड करें।' इस बात का मतलब यह है कि अयोध्या फैसले की सुरसराहट उन बच्चों में भी हो गयी है, जिन्होंने 1992 के बाद दुनिया देखी है।
सन 1949 में जब एक साजिश के तहत अयोध्या बाबरी मसजिद में राम लला की मूर्तियां रख दी गयीं थीं, तब से लेकर 1 फरवरी 1986 तक इसके मालिकाना हक का मुकदमा फैजाबाद की अदालत में चल रहा था। कुछ इक्का-दुक्का लोगों को ही इस बारे में पता था कि इस तरह का कोई मुकदमा भी चल रहा है। लेकिन जब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में अचानक फैजाबाद की अदालत ने 1 फरवरी 1986 को सन 1949 से ताले में बंद विवादित स्थल का ताला खोलकर पूजा पाठ करने की इजाजत दी तो पूरे देश में साम्प्रदायिक तनाव फैल गया था। तब पूरे देश का पता चला था कि ऐसा भी कोई मामला है। एक अदालती विवाद को संघ परिवार ने इतनी हवा दी थी कि पूरा देश साम्प्रदायिकता की आग में झुलस गया था। इस विवाद के चलते कितने लोग मारे गए। कितनी सम्पत्ति को जला डाला गया, इसका लेखा-जोखा शायद ही किसी के पास हो। इस नुकसान के अलावा जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ था, वह देश का धर्मनिरपेक्ष ढांचे का चरमरा जाना था। इस विवाद की आग में केवल संघ परिवार ने ही रोटियां नहीं सेंकी थीं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सपा जैसे कुछ क्षेत्रीय दलों ने भी इस विवाद को सत्ता पाने की सीढ़ी बनाया था। इस विवाद के चलते भाजपा देश पर 6 साल शासन कर गयी तो मुलायम सिंह यादव तथा लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं ने भी सत्ता का मजा लूटा। इस विवाद ने देश की राजनीति की दशा और दिशा बदल दी थी लेकिन विवाद आज भी ज्यों का त्यों है।
बाबरी मसजिद विध्वंस को बीस साल होने को आए हैं, नई पीढ़ी को नहीं पता था कि फैजाबाद की अदालत में बाबरी मसजिद बनाम राममंदिर के मालिकाना हक का भी कोई मुकदमा चल रहा है। पिछले पखवाड़े से अखबारों में अयोध्या के सम्भावित फैसले की खबरें छपने लगी हैं, तब से हमारे बच्चे पूछने लगे हैं कि यह अयोध्या विवाद क्या है? क्या फैसला आने वाला है? हम उनको सारी बातें उसी तरह बताते हैं, जिस तरह हमारे बुजुर्ग विभाजन की त्रासदी सुनाया करते थे। जिन लोगों ने विभाजन की त्रासदी झेली है, वे उस वक्त कहा करते थे कि ऐसा कभी न हो, जैसा अब हुआ है। अस्सी और नब्बे के दशक में हम यह कहते थे कि अल्लाह कभी ऐसी त्रासदी देश में फिर कभी न हो। अब, जब अयोध्या विवाद का फैसला आने वाला है तो अस्सी और नब्बे के दशक की त्रासदी की दुखद यादें ताजा हो रही हैं। फैसला किसके हक में आएगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन फैसला जिसके भी खिलाफ आएगा, क्या वह उसे सहजता से स्वीकार कर लेगा ? दुर्भाग्य से इस सवाल का जवाब नहीं में है। संघ परिवार तो पहले ही यह ऐलान कर चुका है कि उसे किसी भी हालत में बाबरी मसजिद के हक में फैसला स्वीकार्य नहीं होगा। हालांकि मुसलिम पक्ष के कुछ नेता यह कहते रहे हैं कि उन्हें अदालत का कोई भी फैसला मंजूर होगा, लेकिन मुसलिम वोटों के सौदागर क्या कुछ कर दें, कुछ नहीं कहा जा सकता है। अब तो वैसे भी मुसलिम वोटों के लिए गला काट प्रतिस्पर्धा हो रही है। इस बात से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिन कितने दुरुह हो सकते हैं।
कुछ मुसलिम नेता अनौपचारिक बातचीत में यह कहते रहे हैं कि बाबरी मसजिद पर अपना दावा छोड़ दें। लेकिन दिक्क्त यह है कि ये नेता सार्वजनिक रुप से इसके उलट बात करते हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें अपनी सियासत डूबती नजर आने लगती है। कुछ लोगों का यह मानना है कि बाबरी मसजिद से दावा छोड़ने का मतलब संघ परिवार का हौसला बढ़ाने वाला काम होगा। उनकी राय में संघ परिवार मथुरा और काशी में वितंडा खड़ा कर देगा। उनका मानना है कि अयोध्या पर डटकर खड़ा रहने से संघ परिवार पर अंकुश लगेगा। ऐसा सोचने वालों की बात सही हो सकती है। लेकिन अब तो इतनी हद हो गयी है कि इस विवाद का कोई तो हल निकालना ही पड़ेगा। क्या देश की जनता हर दस-बीस साल बाद इस विवाद के भय के साए में रहने को अभिशप्त रहे ? सच तो यह है कि इस विवाद को सिर्फ और सिर्फ मुसलमान ही हल कर सकते हैं। इस विवाद के हल के लिए मुसलिमों का वह नेतृत्व सामने आए, जो वोटों की राजनीति से दूर हो और उदार हो। मेरा मानना है कि यदि फैसला बाबरी मसजिद के विपक्ष में आए तो मुसलिम नेतृत्व उसे सहर्ष स्वीकार करे और फैसले को चैलेन्ज नहीं करे। यदि फैसला बाबरी मसजिद के हक में भी आए तो मुसलमान बाबरी मसजिद से अपना दावा छोड़ने के लिए कवायद करें। मुसलमानों को इसके लिए मानसिक रुप से तैयार करें। मुसलिम उलेमा इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यदि मुसलमान ऐसा कर पाए तो यह साम्प्रदायिक सद्भाव की नायाब मिसाल होगी और साम्प्रदायिक ताकतों के मुंह पर करारा तमाचा होगा।
saleem sahab main apki bat ka swagat karta hoon . isliye nahin ki main hindu hoon. isliye ki apki
ReplyDeletebebak bat hi asli hal hai .
अगर हिन्दू ओर मुस्लिम दोनो ही अपने अपने खुदा को सच्चे मन से मानते है तो उस की रजा मै दोनो ही इस जगह पर अपना हक छोड दे ओर दोनो मिल कर यहां कुछ ऎसा बनाये जो मानव के इंसानओ के काम आये, ना कि हिन्दु मुस्लिम के काम आये,
ReplyDeleteSalim Sahab
ReplyDeleteAb aap ki baten bhi haq nahi rahin ,,,,,,,,aur batil ke khilaf nahin bolti hain,,,,waise aap ko bhi pata hai ke ye haq kiska hai,,,
salim saheb aapki baten achchhi lagi, ise main apne weekly news papar me prakashit kar raha hu, yadi aapko etraz ho to mere mo.no. 7860754250 par mana kar sakte hain.
ReplyDeleteharish
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