Friday, August 13, 2010

उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगों की आहट

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
बहुत दिनों की खामोशी के बाद संघ परिवार राख हो चुके राममंदिर मुद्दे में आग लगाने की कोशिश करेगा। अब आरएसएस ने मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी ली है। इसी 16 अगस्त से संघ परिवार पूरे देश में बड़े पैमाने पर कार्यक्रम शुरु करने का ऐलान किया है। सवाल यह है कि आखिर संघ ने अभी क्यों मंदिर निर्माण का राग अलापना शुरु किया है ? बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्म भूमि विवाद का फैसला सितम्बर के मध्य में आ सकता है। इसी के मद्देनजर संघ परिवार ने अपना कार्यक्रम तय किया है। संघ परिवार एक माह तक इस मुद्दे को गर्माएगा। इस बीच अदालत का जो भी फैसला आएगा, उसकी रोशनी में संघ परिवार अपनी उग्र हरकतें शुरु करेगा। उदाहरण के लिए, मान लीजिए फैसला संघ परिवार के हक में आया तो वह उसको सहज नहीं लेगा, बल्कि उसको 'हिन्दुत्व' की जीत के रुप में प्रचारित करेगा। गली-गली विजयी जलूस निकाले जाएंगे। मुसलमानों को चिढ़ाने और उकसाने वाले नारे लगाए जाएंगे। जबरदस्त आतिश बाजी की जाएगी। इन हरकतों का क्या परिणाम होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। यदि फैसला बाबरी मस्जिद के हक में आया तो संघ परिवार उग्र आन्दोलन शुरु करेगा। इसका नतीजा क्या होगा इसका अंदाजा लगाना और भी ज्यादा आसान है। संघ परिवार यही कहता रहा है कि आस्था का फैसला अदालत नहीं कर सकती। उत्तर प्रदेश सरकार को भी साम्प्रदायिक दंगों की आहट लग रही है। इसीलिए उसने सभी जिला प्रशासन को एलर्ट रहने के लिए कहा है।
उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा सिर्फ उग्र हिन्दु साम्प्रदायिक संगठनों से ही नहीं है। यह अंदेशा मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वाले उन राजनैतिक दलों से भी है, जो आजकल मुसलमानों के नाराजगी चलते मुस्लिम समर्थन पाने के लिए छटपटा रहे हैं। हालांकि आरएसएस ने कहा है कि 16 अगस्त से शुरु होने वाले कार्यक्रमों में भाजपा की कोई भूमिका नहीं होगी, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा संघ परिवार का अभिन्न अंग है। कहने के लिए संघ परिवार में कई तरह के संगठन हैं, लेकिन सबका एजेण्डा समान ही है। इसलिए यह महज कहने की ही बात है कि भाजपा कार्यक्रमों से दूर रहेगी। क्योंकि भाजपा को आज भी यही लगता है कि राममंदिर ही उसकी नैया को दोबारा पार लगा सकता है।
'बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी', इस हालत में नहीं है कि वह कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर सके। उसका वजूद अब लगभग खत्म हो चुका है। शायद इसीलिए 'बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी' के संयोजक और अदालत में बाहैसियत एक वकील मुसलमानों की तरफ से पैरवी कर रहे जफरयाब जिलानी कहते हैं कि 'हम बाबरी मस्जिद पर मामले पर मुकदमा लड़ रहे हैं। हमें आंदोलन चलाने की कोई जरुरत नहीं है'। 'बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी' के संस्थापक चैयरमैन रह चुके जावेद हबीब का भी जफरयाब जिलानी की तरह यही कहना है कि 'विहिप के प्रस्तावित आंदोलन के जवाब में कोई आंदोलन चलाने का हमारा कोई इरादा नहीं है'। जावेद हबीब तो एक कदम आगे जाकर मसले का हल अदालत से बाहर जाकर बातचीत से करने पर जोर देते हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि आज की तारीख में बाबरी मस्जिद के नाम पर आंदोलन करने के लिए मुसलमानों की न तो इच्छा है और न ही उनके पास कोई संगठन है। उत्तर प्रदेश का मुसलमान फिलहाल चुप है। जो भी मुस्लिम नेतृत्व है, वह अदालत का फैसला, चाहे जो भी हो, मानने की बात करता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अब मुसलमान बाबरी मस्जिद से आगे की सोचने लगा है। राममंदिर-बाबरी मस्जिद आन्दोलन के चलते मुसलमानों ने बहुत कुछ खोया है। उन्हें एहसास हो गया है कि किसी भी सूरत में नुकसान उनका ही होता है। धर्मनिरपेक्षता और मुसलमानों का हमदर्द होने का स्वांग रचने वाले राजनैतिक दलों को फायदा होता है। इधर, अब संघ परिवार से मुसलमानों ने डरना छोड़ दिया है। मुसलमानों ने देख लिया है कि भाजपा भी उनके वोटों के लिए ऐसे ही लार टपकाती है, जैसे अन्य राजनैतिक दल टपकाते हैं। हिन्दुओं का एक बहुत बड़ा वर्ग भाजपा के साथ इसलिए लगा था कि वह अपने आप को एक अलग तरह की पार्टी बताती थी। लेकिन उस वर्ग ने भी देखा कि भाजपा के नेता भी उतने ही भ्रष्ट और नाकरा है, जितने अन्य दलों के नेता हैं।
इन हालात में भी यदि संघ परिवार सोचता है कि राममंदिर मुद्दे में फिर से जान डाली जा सकती है तो यही का जाएगा कि वह मूर्खों की जन्न्त में रहते हैं। सवाल यही है कि क्या राख के ढेर में आग लगायी जा सकती है ? हालात तो यह कह रहे हैं कि संघ परिवार को को मुंह की खानी पड़ेगी। अभी पिछले पखवाड़े विहिप के फायर ब्रांड कहे जाने वाले प्रवीण भाई तोगड़िया मेरठ आए थे। नब्बे के दशक में प्रवीण भाई तोगड़िया के बयानों से आग लग जाती थी। लेकिन 2010 में मेरठ के लोगों ने उन्हें बुरी तरह से नकार दिया। उनके कार्यक्रम में मुट्ठी भर लोग ही जमा थे। जो वक्ता थे, वो ही श्रोता भी थे। इन हालात में अंदाजा लगाया जा सकता है कि राममंदिर मुद्दे में जान डालना कितना टेढ़ा काम है। लेकिन यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि भले ही संघ परिवार के पास आज की तारीख में मंदिर मुद्दे को गरमाने के लिए जन समर्थन न हो लेकिन संघ परिवार मुद्दे को गर्माने की पूरी कोशिश करेगा। इस कोशिश में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को खतरा तो हो ही सकता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार यदि फूंक-फुंक रख रही है तो वह सही कर रही है। उसे पता है कि इस मुद्दे पर उसके किसी भी गलत फैसले से उसका हश्र भी भाजपा और कांग्रेस जैसा हो सकता है।

2 comments:

  1. संघ परिवार का तो काम ही हमेशा देश मे आग लगाना और मुसलमानों का उत्पीड़न करना रहा है जो वह आज़ादी पहले से आज तक कर रहे है संघ परिवार देश के संविधान को कुछ नही समझता और लगातार अदालत की अवमानना की बात करता है

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  2. nice article....

    Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....

    A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...

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