Sunday, April 18, 2010

एक दिन का दारोगा एक दिन में ही हुआ हलकान



सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
किस की किस्मत कब और कैसे बदल जाए कुछ पता नहीं चलता। मेरठ शहर के सराय खैर नगर निवासी जिस बालकराम प्रजापति का कल तक कोई नहीं जानता था, चार दिन से मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। वजह, मेरठ के डीआईजी अखिल कुमार ने उन्हें एक दिन के लिए एक पुलिस चौकी का इंचार्ज बनने की चुनौती दी और बालक राम ने चुनौती मंजूर कर ली। हुआ यूं था कि 'मानव समाज कल्याण सेवा समिति' नाम से एक संस्था चलाने वाले और निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले 58 साल के समाजसेवी बालकराम प्रजापति ने 15 अप्रैल को डीआईजी से मिलकर पुलिस व्यवस्था सुधारने और जनता के बीच पुलिस की इमेज सुधारने की बात की थी। डीआईजी का कहना था कि जिन हालात में पुलिस काम करती है, उन हालात में ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता है। बालकराम प्रजापति उनकी बात से संतुष्ट नहीं थे। डीआईजी ने बालकराम को यह देखने के लिए कि पुलिस किन हालात में काम करती है। पुलिस के सामने किस प्रकार की दुश्वारियां आती हैं। पुलिस जनता के सामने किस तरह से पेश आती है, एक दिन के लिए एक पुलिस चौकी का इंचार्ज बनाने की पेशकश कर दी। बात के धनी और कुछ कर गुजरने की चाहत रखने वाले बालकराम ने 17 अप्रैल की सुबह दस बजे से और 18 अप्रैल की सुबह दस बजे तक पिलोखेड़ी पुलिस चौकी का इंचार्ज बनना स्वीकार कर लिया।
बालकराम प्रजापति की सोच समाजवादी है। 'मानव सेवा समाज कल्याण समिति' नाम से एक गैर सरकारी संगठन चलाते हैं। बहुत ही ईमानदार आदमी हैं। इसीलिए खटारा स्कूटर पर चलते हैं। वे मल्टीनेशनल कम्पनियों के सख्त खिलाफ हैं। बंगला देश के अर्थशास्त्री युनूस अली से दिल्ली में लम्बी वार्ता कर चुके हैं। अस्सी के दशक में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से भी मिल चुके हैं। हालांकि उनके एक दिन का चौकी इंचार्ज बनने से पहले डीआईजी साहब को फोन करके किसी ने बताया कि बालकराम एक बार जेल जा चुके हैं। उनके पड़ोसी इरशाद अली इस बात का पुरजोर खंडन कहते हुए कहते हैं कि 'उनके बारे में इस तरह की अफवाह उनके विरोधी इसलिए फैला रहें है, ताकि वे चौकी इंचार्ज नहीं बन सकें।' डीआईजी साहब ने बालकराम के साथ एक ज्यादती कर दी। उन्हें उस पुलिस चौकी का इंचार्ज बनाया गया, जिस में शिकायतकर्ताओं की सुबह से शाम तक लाइन लगी रहती है। इस पुलिस चौकी के अर्न्तगत आने वाले मौहल्लों में सट्टा, जुआ, ब्याजखोरी और लड़ाई झगड़ा आम बात है। मेरठ का मशहूर 'कमेला' भी इसी चौकी के अन्तर्गत आता है। बालकराम को लीगल अधिकार भी नहीं दिए गए थे। ऐसा शायद सम्भव भी नहीं था।
17 अप्रैल को बालकराम प्रजापति सुबह अपने पुराने बजाज चेतक स्कूटर से पुलिस चौकी जाने के लिए निकले। स्कूटर की पैट्रोल की टंकी में झांक कर देखा तो टंकी लगभग खाली थी। पहले 20 रुपए का पैट्रोल डलवाने की सोची। फिर पूरा एक लीटर पैट्रोल डलवाया गया। सफारी सूट पहनकर जाने की इच्छा रखते थे, लेकिन सफारी सूट नहीं था। बहरहाल, ठीक नौ बज के पचास मिनट पर बालकराम ने पुलिस चौकी में प्रवेश किया और जाते ही इंचार्ज की कुर्सी सम्भाल ली। जैसा कि अपेक्ष्ित था, फौरन ही बालकराम के सामने शिकायतों का अम्बार लग गया। एक महिला की शिकायत थी कि पुलिस जबरन उसके पति को उठा लायी है। पुलिस ने घर में भी तोड़फोड़ की। एक और महिला का कहना था कि पुलिस उसके बेटे को पुलिस उठा लाई है। एक शिकायत में कहा गया कि स्कूटर चोरी की रिपोर्ट लिखने 500 रुपए मांगे गए। मजे की बात यह रही कि थोड़ी ही देर में बालकराम की भी भाषा बदल गयी। वह भी पुलिस की भाषा बोलने लगे। उन्होंने लोगों को अपने कर्त्तव्य निभाने की सलाह दी। इसी दौरान बालकराम ने एक दम्पति के आपसी मनमुटाव को उन्होंने दूर करके दम्पति को घर वापस भेज दिया। बालकराम ने क्षेत्र का दौरा भी किया। रात को दबिश डालने भी पुलिस के साथ गए। इतनी गनीमत रही कि पुलिस उन्हें अपने साथ यह दिखाने नहीं ले गयी कि पुलिस 'एनकाउंटर' कैसे करती है।
एक दिन का चौकी इंचार्ज बनने पर बालकराम को पता चल ही गया कि पुलिस को चौबीस घंटे भागना-दौड़ना पड़ता है। कम संसाधन और विपरीत परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। उन्हें मानना पड़ा कि पुलिस वालों को भी आराम की जरुरत होती है। एक दिन का दारोग बालकराम एक दिन में ही 'हलकान' हो गया। बालकराम को यह भी पता चला कि शिकायतकर्ता फौरन यह चाहता है कि जिसकी शिकायत लेकर वह आया है, उसको पुलिस बस फौरन बिना की जांच के लॉकअप में डाल दे। बालकराम के इल्म में यह भी आया कि कुछ शिकायतें झूठी भी होती हैं। हालांकि ऐसा होता भी है कि पुलिस किसी एक पार्टी से पैसा खाकर झूठे मुकदमे लिखती है। बालकराम जानते होंगे कि जो थानेदार अपनी चौकी या थाने में रिश्वत लेने नहीं देता, ईमानदारी से काम करता है, उस थानेदार के मातहत ही जल्दी से जल्दी उसका बोरिया बिस्तर बंधवाने की जुगत में लग जाते हैं। पुलिस वाले अक्सर अपने सीनियर के बारे में कहते हुए मिल जाते हैं- 'साला ना खुद खाता है ना हमें खाने देता है, पता नहीं कब दफान होगा यहां से।' बालकराम एक दिन के लिए चौकी इंचार्ज बने थे। एक दिन में वह कोई बदलाव ला पाते यह मुमकिन नहीं था। बालकराम ही क्यों, एक दिन में कोई भी कुछ नहीं कर सकता है। सच तो यह है कि कई सालों तक भी कोशिश की जाए तो इस सड़े-गले 'सिस्टम' को कोई नहीं तोड़ सकता। क्योंकि पुलिस और पब्लिक इस सिस्टम के इतने आदी हो चुके हैं, इसमें इतना रम चुके हैं कि यही सही 'सिस्टम' लगने लगा है। अपनी एक रिपोर्ट में आनंद नारायण मुल्ला यह कह चुके हैं कि 'पुलिस संगठित अपराधियों का गिरोह है।' अपराधियों के इस गिरोह को इसलिए ढील दी जाती है, ताकि राजनीतिज्ञ और सरकारें अपने हित में इस गिरोह का इस्तेमाल कर सकें। पुलिस में सुधार के लिए कई आयोग बने, लेकिन उनकी रिपोर्ट पर कभी भी अमल नहीं किया गया। भारत में आज भी 1861 में बना पुलिस एक्ट ही चलता है। ब्रिटिश हुकूतम ने इस एक्ट को 1857 के गदर के बाद भारतीयों पर जुल्म और ज्यादती करने के लिए लागू किया था। आजादी के बाद हमारे देश के नेता इस एक्ट को खत्म करने को तैयार नहीं है।
इस एक दिन के तमाशे के पीछे डीआईजी साहब की क्या मंशा होगी, यह तो वही जानते होंगे। इस तरह के ड्रामे 'नायक' सरीखी फिल्मों में ही हो सकते हैं। फिल्म में कलाकार एक लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट पर काम करते हैं। लेकिन यहां बालकराम ने अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखी। हो सकता है कि डीआईजी को 'नायक' फिल्म से ही यह सब ड्रामा करने की प्रेरणा मिली हो। कुछ भी हो बालकराम प्रजापति चार दिन में ही 'आम' से 'खास' आदमी तो हो ही गए हैं। एक बार कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने राज्य के एक भिश्ती को एक दिन का बादशाह बना दिया था। उस भिश्ती ने उसी दिन चमड़े का सिक्का चलाया था। इसी तरह मेरठ के इतिहास में भी यह दर्ज हो गया है कि बालकराम प्रजापति एक दिन के पुलिस चौकी इंचार्ज बने थे। लेकिन भिश्ती की तरह बालकराम के हाथ खुले नहीं थे, बंधे हुए थे।

4 comments:

  1. Pulish ka kam pulish hi kare to accha rahata hai. magar ye jarur hai ki pulish dusari party se paisa le kar ke jurm karne se nahi chukati.

    Magar ye bhi jaruri hai ki Pulish aur aam admi ke beech sadhbhav lana bhi jaruri hai.

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  2. एक हिटलर ही इस देश को सही रास्ते पर ला सकता है...

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  3. राज भाटिया जी की बात को आगे बढ़ाया जाए तो लगता है कि अब एक तानाशाह आए राज करने

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