Saturday, February 27, 2010

सत्ता के मद में चूर 'हाथी' का तांडव

सलीम अख्तर सिद्दीकी
'हाथी' की सवारी कर रहे दो नेताओं ने राजनीति के साथ ही आपस में रिश्तेदार बनने का फैसला लिया। 24 फरवरी को बसपा के सांसद कादिर राणा के बेटे और वरिष्ठ बसपा नेता मुनकाद अली की बेटी की शादी की रस्म मेरठ के एक बड़े रिसोर्ट में पूरी की जा रही थीं। हालांकि इस्लाम में शादी की रस्म इतनी छोटी होती है कि उसे पांच आदमियों के बीच मात्र आधा घंटे में ही निपटाया जा सकता है। लेकिन दोनों नेतओं ने इतना आडम्बर किया कि मेरठ में दो दिन तक अफरा-तफरी का माहौल रहा। शादी में इतने लोगों ने शिरकत की कि मेरठ-दिल्ली रोड पर यातायात रोक दिया गया। मीलों लम्बा जाम लगा। जाम में फंसे लोग त्राहि-त्राहि कर बैठे। लोगों ने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि आम आदमी की नुमाइन्दगी करने का दावा करने वाले नेता ही अपनी शान-ओ-शौकत दिखाने के लिए आम आदमी को परेशानी में डाल दें ? क्या इन्हें यह नहीं पता कि जाम में फंसे लोगों को कितना कष्ट होता है ? बच्चे प्यास से बिलबिला जाते हैं। मरीज वक्त पर अपनी दवा नहीं ले सकता। शहर में आने के बाद दूर-दराज जाने वालों के लिए वाहन उपलब्ध नहीं हो पाता। किसी युवा का इंटरव्यू छूट जाता है। क्योंकि सत्तारुढ़ पार्टी के नेताओं के बच्चों की शादी थी इसलिए पूरा प्रशासन व्यवस्था में जुटा हुआ था। बात यहीं खत्म हो जाती तो भी गनीमत थी। मुनकाद अली ने शादी की रस्म को भी चापलूसी का जरिया बना दिया। क्योंकि मायावती लखनउ में जगह-जगह हाथियों की मूर्तियां स्थापित कर रहीं हैं, शायद इसी से प्रेरणा लेकर मुनकाद अली ने 11 जीते-जागते हाथियों को ही शादी स्थल पर खड़ा करके चापलूसी की एक महान मिसाल पेश कर दी।
बात यहीं खत्म हो जाती तो फिर भी ठीक था। एक हाथी सुबह से भूखा था। हाथी को शायद या तो यह बुरा लगा कि सब इंसान तो लजीज खानों का मजा ले रहे हैं, लेकिन मुझ बेजुबान जानवर को सुबह से भूखा रखा हुआ है। और शायद यह बुरा लगा कि एक गरीब मुल्क के अमीर नेता कैसे शाही शादियों पर बेशुमार दौलत खर्च करके गरीबों के नमक पर छिड़क रहे हैं। शायद यह बुरा लगा हो कि 'सरकार' भी इन्हीं नेताओं की जी-हजूरी में लगी हुई है। तभी तो जैसे ही एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की गाड़ी हूटर बजाती हुई शादी स्थल पर आयी, हाथी के सब्र का बांध टूट गया। हाथी ऐसा बिफरा की उसने उत्पात मचाना शुरु कर दिया। कई दर्जन आलीशान गाड़ियों को अपने पैरों तले कुचल डाला। सूंड से उठाकर गाड़ियों को सड़क पर पटक दिया। चारों ओर अफरा तफरी मच गयी। हाथी शायद मानवतावादी था, इसलिए उसने इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाया। हाथी अगले दिन तक काबू में नहीं आया। दिल्ली और लखनउ से हाथी को काबू में करने के लिए विशेषज्ञ बुलाए गए, तब कहीं जाकर हाथी के उत्पात को रोका जा सका।
हादसे के बाद जिस तरह की शर्मनाक बातें हुईं, उन्हें सुन और देखकर पक्का यकीन हुआ कि नेताओं का नैतिक पतन ही नहीं हुआ है, बल्कि वे मुंह तक 'कीचड़' में धंस चुके हैं। इस कीचड़ में कादिर राणा और मुनकाद अली जैसे नेता इतने लिथड़ चुके हैं कि उनका चेहरा ही पहचान में नहीं आता। दावा वे आम आदमी की सेवा का करते हैं लेकिन उनके चेहरों के पीछे सामंती चेहरा छिपा है। मुनकाद अली ने फरमाया कि 'मैंने तो हाथी को पागल नहीं किया है, जो इसके लिए मैं जिम्म्ेदारी लूं।' यह ठीक है मुनकाद ने हाथी को पागल नहीं किया, लेकिन उनसे यह सवाल तो किया ही जा सकता है कि किस 'पागल' ने उनको हाथियों की नुमाईश लगाने की सलाह दी थी ? हाथियों को लाकर शादी की कौनसी रस्म अदा की जा रही थी ? अब क्योंकि मामला सत्तारुढ़ पार्टी के नेताओं का था, इसलिए मुनकाद अली को शासन-प्रशासन ने भी कुछ नहीं कहा। यहां भी केवल हाथी के मालिक को ही पकड़कर जेल भेज दिया गया। थाने में जो एफआईआर लिखायी गयी है, उसमें इस बात का जिक्र नहीं है कि हाथी वहां क्यों आया था ? किसने बुलाया था ? यहां भी गरीब मार ही पड़ी। यह उस सरकार की हरकतें हैं, जो अपने आप को 'दलित' की सरकार कहती है। 'दलित' सरकार के नेताओं ने सामंतों को भी पीछे छोड़ दिया है। सच तो यह है कि मेरठ में 24 और 25 फरवरी को जो कुछ हुआ, वह एक भूखे हाथी का तांडव नहीं, सत्ता के मद में चूर 'हाथी' का तांडव था। एक भूखे हाथी के तांडव से पूरा शासन-प्रशासन कांप गया था, लेकिन उस दिन को याद करिए, जब देश का 'भूखी जनता' रुपी हाथी तांडव मचाने निकलेगा। तब इन 'सामंती' नेताओं को उस 'हाथी' से कौन बचाएगा ?

3 comments:

  1. भाई सिद्दीकी जी,
    बहुत अच्छा। एकदम सटीक। सुपठनीय।

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  2. "एक भूखे हाथी के तांडव से पूरा शासन-प्रशासन कांप गया था, लेकिन उस दिन को याद करिए, जब देश का 'भूखी जनता' रुपी हाथी तांडव मचाने निकलेगा। तब इन 'सामंती' नेताओं को उस 'हाथी' से कौन बचाएगा ? "

    बिलकुल सही कहा आपने.
    होली की शुभकानाएं.....

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  3. Bhukha hathi tandav machane laga hai. Chhatisgadh me 75 CRPF ke jawan uska ek bada shikar the. Abhi jane kitne garib aur shikar banege. Jald hi ye hathi aalishan gadiyon ko apna nishana banae to theek hoga, varna nirdosh aur garib CRPF/SPO vale hi apni jan dete rahenge.

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