Thursday, February 11, 2010

मातोश्री जिनाह हाउस और महाराष्ट्र बना वजीरिस्तान

सलीम अख्तर सिद्दीकी
देश के बंटवारे के जिम्मेदार माने जाने वाले मौहम्मद अली जिनाह की रिहाईश जिनाह हाउस मुंबई मैं है, तो महाराष्ट्र को देश से अलग करने की साजिश रचने वाले बाल ठाकरे का निवास 'मातोश्री' भी मुंबई मैं ही है। ऐसा लगता कि मातोश्री जिनाह हाउस बन गया है और महाराष्ट्र को बालठाकरे ने पाकिस्तान का वजीरिस्तान बना दिया है। वजीरिस्तान में भी तालिबान के सामने पाकिस्तान सरकार की नहीं चलती है तो महाराष्ट्र में शिवसेना की समानान्तर सरकार काम कर रही है। यदि महाराष्ट्र में सरकार नाम की कोई चीज होती तो 'माय नेम इज खान' जरुर रिलीज होती। मल्टीप्लेक्स मालिकों को सरकार पर भरोसे के बजाय शिवसेना की दहशत ज्यादा है। तभी मल्टीप्लेक्स मालिकों ने 'माय नेम इज खान' को दिखाने से मना कर दिया है। अशोक चव्हाण की बेशर्मी देखिए कि वह कहते हैं कि मल्टीप्लेक्स मालिकों का माय नेम इज खान नहीं दिखाने का उनका निजि फैसला है। फिल्म नहीं दिखाने का फैसला शिवसेना की जीत और सरकार की शर्मनाक हार है। ऐसे ही जैसे वजीरिस्तान में तालिबान के सामने पाकिस्तान की सरकार घुटने टेक देती है।
शाहरुख खान ने यह अच्छा किया कि अमिताभ बच्चन की तरह 'मातोश्री' के आगे सिर नहीं झुकाया। बाल ठाकरे की तानाशाही का डटकर मुकाबला करने के लिए पूरा देश उनके साथ आ गया है। सच तो यह है कि अमिताभ बच्चन जैसे लोगों ने ही बाल ठाकरे के भाव बढ़ाएं हैं। जब मुंबई में रह रहे उत्तर भारतीय लोग अमिताभ बच्चन और शरद पवार जैसों को 'मातोश्री' में जाकर सिजदा करते समय की तस्वीरें देखते होंगे मो उनका मनोबल और ज्यादा टूटता होगा। उनके दिल में यह बात जरुर आती होगी कि जब इतने बड़े लोगों को 'मातोश्री' के आगे सिजदा करना पड़ता है तो उनकी तो औकात ही क्या है। इसलिए वह मनसे और शिवसेना के गुंडों का मुकाबला करने के बजाय उनके सामने सिर झुका देते हैं या अपने गांव वापस आ जाते हैं। शाहरुख खान ने शेर की मांद में हाथ डालने की जुर्रत की है तो उत्तर भारतीयों की हिम्मत में भी इजाफा जरुर हुआ होगा।
दरसअल, शिवसेना, मनसे, कांग्रेस और एनसीपी ने राजनीति की बिसात पर देश की एकता और अखंडता को दांव लगा दिया है। महाराष्ट्र को एक साजिश के तहत देश से काटने की जमीन तैयार की जा रही है। सभी पार्टियां महाराष्ट्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए जोड़-तोड़ कर रही हैं। इनकी लड़ाई में आम आदमी पिस रहा है। मीडिया में यह तो आता है कि किस पार्टी ने किस पार्टी या व्यक्ति पर निशाना साधा, यह नहीं आता कि आम आदमी क्या चाहता है। एक आदमी, जो देश के दूर-दराज इलाकों से अपना पेट पालने के लिए मुंबई आया है, उसकी क्या दशा है ? उसे कौन शिवसेन या मनसे के गुंडों से बचाएगा। कांग्रेस के युवराज मुंबई में बिंदास घूमकर आ गए। खबर बनी कि राहुल ने शिवसेना के मुंह पर तमांचा मार दिया है। यह याद रखिए कि राहुल 'युवराज' हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार है। वह महाराष्ट्र में तो क्या देश के किसी भी कोने में बिंदास घूम सकते है। लेकिन इलाहाबाद के किसी राम खिलावन की टैक्सी पर मनसे या शिवसेना के गुंडे हॉकियों से हमला कर देते हैं या उसके घर का सामान सड़क पर फेंक देतें है, उसका बचाने कौन आता है ? सब कुछ सहकर भी वह मुंबई छोड़ने को तैयार नहीं है। शाबाशी तो राम खिलावन को मिलनी चाहिए, राहुल गांधी को नहीं। जिस दिन राम खिलावन मुंबई की सड़कों पर बिंदास घूमेगा उस दिन लगेगा कि राहुल का मुंबई की लोकल रेल में बिंदास घूमना कामयाब रहा।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री आदेश देते हैं कि मुंबई के टैक्सी चालकों को मराठी लिखना-पढ़ना अनिवार्य है। उनके इस बयान के बाद उन्हें मुख्यमंत्री क्यों बने रहना चाहिए ? जब एक प्रदेश का मुख्यमंत्री ही भाषावाद फैलाएगा तो शिवसेना और मनसे की नाक में नकेल कौन डालेगा ? मुख्यमंत्री भी उस कांग्रेस पार्टी का, जो अपने आप को भाषावाद और क्षेत्रवाद से अलग मानती है। यूपीए सरकार के केन्द्रीय मंत्री शरद पवार 'मातोश्री' इसलिए जाते हैं ताकि बाल ठाकरे को इस बात के लिए मना सकें कि आईपीएल में आस्ट्रेलिाई खिलाड़ियों को खेलने दें। कितनी हैरत की बात है कि 'सरकार' उस आदमी के पास चलकर जा रही है, जो अपने आप को न केवल कानून से अलग समझता है, बल्कि देश को भाषा और क्षेत्र के नाम पर एक और विभाजन की ओर ले जाना चाहता है। अब ऐसी सरकार के लिए आम आदमी तक क्या संदेश जाएगा ? यही न कि बाल ठाकरे की हैसियत सरकार से भी बड़ी है। ऐसी सरकार के रहते आम आदमी अपनी सुरक्षा के लिए किस के पास जाए ?
राज ठाकरे की महाराष्ट्र निर्माण सेना पता नहीं महाराष्ट्र का किस तरह से निर्माण करना चाहती है ? लेकिन उसने विधान सभा में अपने तेरह विधायकों को जिताकर अपने निर्माण की प्रक्रिया तो शुरु कर ही दी है। लेकिन यहां यह याद रखना जरुरी है कि मनसे के जो तेरह विधायक जीत कर आए हैं, उसमें कांग्रेस का भी बड़ा योगदान है। क्योंकि कांग्रेस शिवसेना को कमजोर करने के लिए मनसे को मौन समर्थन देती रही है। इसलिए महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, इसके लिए कांग्रेस को बरी नहीं किया जा सकता है। महाराष्ट्र की सरकार मनसे को कुचलने की मंशा नहीं रखती है। वह बालठाकरे परिवार की लड़ाई में अपना हित साध रही है। इधर, मनसे की बढ़त से बौखलाई शिवसेना के सुप्रीमो बालठाकरे ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है। तभी तो वह शाहरुख के पीछे बेमतलब ही हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं। यह दोगली बातें नहीं हैं और तो क्या हैं, बालठाकरे तो दाउद इब्राहीम के साढू जावेद मियांदाद को 'मातोश्री' में बुलाकर उनकी खातिर तवाजों करें, लेकिन शाहरुख खान को इतना हक नहीं है कि वह आईपीएल-3 में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खिलाने का समर्थन कर सकें। शाहरुख की फिल्म 'माय नेम इज खान' को महाराष्ट्र में रिलीज न होने देना उनके 'मानसिक संतुलन' खो देने की पुष्टि करती है।

2 comments:

  1. एक दम सही कहा है। यह सब देश को तोड़ने का काम ही कर रहें है। येे लोग सचमुच तालीबानी है।

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