Monday, October 26, 2009

महाराष्ट्र में खून-खराबे की आहट

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस जीत गयी हो, लेकिन कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र चुनौती बनने जा रहा है। यह सच है कि कांगेस को तीसरी बार सत्ता में लाने का श्रेय राजठाकरे को भी है। 13 सीट जीतकर राजठाकरे की महत्वाकांक्षा को पंख लग जाएंगे। अपने चाचा बाल ठाकरे से मराठा मानुष की अस्मिता का मुद्दा छीनकर राजठाकरे ने जो 13 सीटें हथियाई हैं, उन्हें वे 130 करने में वही हथकंडा अपनाएंगे, जिस हथकंडे से 13 सीटें हासिल की हैं। आज राज ठाकरे शिवसेना को सत्ता से दूर रखने में कामयाब हुए हैं, कल वह हर हाल में सत्ता का स्वाद चखना जरुर चाहेंगे। राजठाकरे जैसे लोगों के पास जनता में अपनी पैंठ बढ़ाने के लिए कोई आर्थिक या सामाजिक एजेंडा तो है नहीं, जिसे आगे बढ़ाकर वे जनता में अपनी स्वीकार्यता बढ़ा सकें। मंहगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकता नहीं है। कभी याद नहीं पड़ता कि शिवसेना ने इन मुद्दों पर कोई आन्दोलन किया हो। अब इन मुद्दों से वोट भी कहां मिलते हैं। वोट तो क्षेत्रीयता और धर्मिक भावनाओं को भुनाकर मिलते हैं। मराठी अस्मिता ही इनके लिए सब कुछ है। जैस नरेन्द्र मोदी के लिए गुजरात की अस्मिता ही सब कुछ हो गयी है। भले ही देश की अस्मिता दांव पर लग जाए लेकिन मराठी और गुजराती अस्मिता को आंच नहीं आनी चाहिए। नफरत और खून-खराबा ही राजठाकरों और नरेन्द्र मोदियों का एकमात्र एजेंडा है। बाल ठाकरे ने भी यही किया था। राजठाकरे ने भी यही किया, कर रहे हैं और आगे भी करेंगे।
शिवसेना बाल ठाकरे उस घायल बूढ़े शेर की तरह हो गए हैं, जो कमजोर हो गया है, जिसके दांत भी नहीं है। लेकिन वह दहाड़ रहा है। जंगल में आग लगाने की बात तो करता है, लेकिन कर कुछ नहीं सकता। ऐसा लगता है घायल होने के साथ ही उनका दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया है। तभी तो वे 'सामना' में घृणास्पद और छिछोरी और उल-जलूल भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। जैसी भाषा बालठाकरे इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे देखते हुए तो उन्हें जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए था, लेकिन वे बालठाकरे हैं। उनका कोई कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इस देश में कानून तो आम आदमी रुपी मेमने के लिए है, जिसकी जब चाहे गर्दन मरोड़ दी जाए। बालठाकरे ने हमेशा ही एक निर्मम तानाशाह जैसा बर्ताव किया है। बालठाकरे वैसे भी हिटलर जैसे तानाशाह को अपना रोल मॉडल मानते रहे हैं। लेकिन क्या उन्हें यह नहीं पता कि हिटलर ने भी खुदकशी करके कायरता का परिचय दिया था ? क्या वे सद्दाम हुसैन का हश्र भी भूल गए हैं ? सच यह है कि एक तानाशाह के डर की वजह से सब हां में हां मिलाते हैं, तो वह यह समझता है कि उसकी प्रजा उसकी बहुत इज्जत करती है। जबकि सच्चाई यह होती है कि बेबस जनता तानाशाह के कमजोर होने का इंतजार करती है। बालठाकरे के साथ भ्ी ऐसा ही हुआ। जनता ने दिखा दिया कि वही सबसे बड़ी ताकत है। सभी तानाशाह अन्दर से कमजोर और डरपोक हुआ करते हैं। बालठाकरे मराठियों के बारे में कह रहे हैं कि मराठियों ने उन्हें धोखा दिया है। पीठ में खंजर घोंपा है। बाल ठाकरे से सवाल किया जाना चाहिए कि क्या एक लोकान्त्रिक देश की जनता को एक ही परिवार को शासन करने के लिए वोट देते रहना चाहिए ? यदि वे वोट नहीं दें तो गद्दार कहलाएं। क्या महाराष्ट्र या मुंबई ठाकरे परिवार की बपौती है ?
कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। मराठी वोटों के वर्चस्व के लिए चाचा-भतीजा में तलवारें खिंच गयी है। दोनों अपनी-फौजों को तैयार कर रहे हैं। बकौल चाचा बालठाकरे, 'उन्होंने हार के फूलों को संजो कर रखा है। यही फूल अंगोर बनेंगे।' चाचा के इन शब्दों का मतलब कोई अक्ल का अंधा भी निकाल सकता है। इधर, भतीजा राजठाकरे उत्साहित है। इस उत्साह में उनकी ब्रिगेड कब उत्तर भारतीयों को निशाना बनायी, यह देखना दिलचस्प होगा। इतना तय है कि मुंबई की सड़कों पर उत्तर भारतीयों पर एक बार फिर कहर टूटने वाला है। अमिताभ बच्चन जैसे बड़े लोग तो राजठाकरे या बालठाकरे की डयोढी पर जाकर सिर नवा आएंगे और बचे रहेंगे्र। लेकिन उन इलाहबादियों और बिहारियों का क्या होगा, जो दो जून की रोटी का जुगाड़ करने मुंबई जाते हैं। उन्हें चाचा-भतीजे के ताप से कौन बचाएगा ? महाराष्ट्र सरकार ने अतीत में ही राजठाकरे का क्या बिगाड़ लिया था, जो अब बिगाड़ेगी। तो क्या महाराष्ट्र का 'भिंडरावाला' ऐसे ही उत्पात मचाता रहेगा ? क्या आपको महाराष्ट्र में खून-खराबे की आहट सुनाई नहीं दे रही ? मुझे तो दे रही है।

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