Wednesday, September 2, 2009

विभाजन से मुसलमानों का ही नुकसान हुआ है

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
जसवंत सिंह की किताब के बहाने पाकिस्तान के तथाकथित कायद-ए-आजम मौहम्मद अली जिनाह (सही शब्द जिनाह ही है, जिन्ना नहीं) एक बार फिर चर्चा के विषय बने हुए हैं। जिनाह की चर्चा हो और भारत विभाजन का का जिक्र न हो यह सम्भव नहीं है। क्या विभाजन जिनाह की जिद ने कराया ? क्या नेहरु और पटेल विभाजन के जिम्मेदार थे ? क्या अंग्रेजों ने भारत को कमजोर करने के लिए भारत को विभाजित करने की साजिश की थी ? इन सब सवालों पर बहस होती रही है और होती रहेगी। इन सवालों का कभी ठीक-ठीक जवाब मिल पाएगा, यह कहना मुश्किल है। असली सवाल यह है कि विभाजन की त्रासदी किसने सबसे ज्यादा झेली और आज भी झेल रहे हैं। सच यह है कि विभाजन की सबसे ज्यादा मार भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के ही हिस्से में आयी है। वे तीन हिस्सों में बंट गए। बंटने के बाद भी जिल्लत से निजात नहीं मिली। जिन उर्दू भाषी मुसलमानों ने पाकिस्तान को अपना देश मानकर हिन्दुस्तान से हिजरत की थी, वे आज भी पाकिस्तानी होने का सर्टिफिकेट नहीं पा सके हैं। उन्हें आज भी महाजिर (शरणार्थी) कहा जाता है। पाकिस्तान के सिन्धी, पंजाबी और पठान महाजिरों को निशाना बनाते रहते हैं। महाजिरों को रॉ का एजेन्ट और हिन्दुओं की नाजायज औलाद तक कहा जाता है। सरकारी नौकरियों में महाजिरों के साथ भेदभाव आम बात है। अब महाजिर कहने लगे हैं कि उन्होंने मौलाना अबुल कलाम की बात न मानकर गलती की थी।
इसी तरह कभी पश्चिम पाकिस्तान कहे जाने वाले हिस्से के निवासियों ने (सिन्धी, पंजाबी और पठान) ने पूर्ची पाकिस्तान (अब बंगलादेश) के बंगाली मुसलमानों को हमेशा ही पाकिस्तानी नहीं, बल्कि 'भूखे बंगाली' की नजर से देखा। जैसे भारत में 'बिहारी' एक गाली बन गया है, इसी तरह पाकिस्तान में 'बंगाली' गाली के रुप में प्रचलित है। 1970 के आम चुनाव में बंगालियों को चुनाव में बहुमत मिलने के बावजूद सत्ता से बेदखल रखा। सत्ता मांगने पर बंगालियों पर जुल्म की इंतहा कर दी गयी। नतीजे में बंगलादेश वजूद में आया। यानि भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान तीन हिस्सों में बंट गए। मौहम्मद अली जिनाह की 'टू नेशन थ्योरी' धराशयी हो गयी। इस्लाम के नाम पर बना मुल्क सिन्धियों, पंजाबियों, पठानों और महाजिरों में तब्दील हो गया।
भारत में रह गए मुसलमानों को तो कदम-कदम पर जिल्ल्त झेलने पड़ती है। विभाजन के बाद से ही भेदभाव के चलते सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिशत गिरना शुरु हुआ तो कभी भी रुका नहीं। आज हालत यह है कि प्रतिशत नगण्य रह गया। 1980 के दशक तो यही कहा जाता रहा कि जब मुसलमानों को अलग देश दे दिया गया है तो मुसलमान भारत में क्यों रह रहे हैं ? भारत में मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी गई गुजरी हो गयी। दलितों को तो आरक्षण देकर संभाल लिया गया, लेकिन मुसलमानों को केवल वोट देने वाली भेड़ों में तब्दील कर दिया गया। वोट लेने के बाद मुसलमानों को इसी तरह लावारिस छोड़ दिया जाता है, जैसे भेड़ के शरीर से उन उतारकर जंगलों में छोड़ दिया जाता है। मुसलमानों का दिल बहलाने के लिए 'सच्चर समिति' का गठन किया जाता है, लेकिन जब उस पर अमल का वक्त आता है तो रिपोर्ट को बहस-मुबाहिसों में उलझाकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। साम्प्रदायिक दंगे मुसलमानों की नियति बन गए हैं। आतंकवादी होने का ठप्पा चस्पा भी कर दिया गया है। जसवंत सिंह ने अपनी किताब में सही लिखा है कि देश के मुसलमानों को दूसरे ग्रह का प्राणी समझा जाता है। इस पर तुर्रा यह है कि संघ परिवार हर समय चिल्लाता रहता है कि देश में मुसलमानों का तुष्टिकरण किया जा रहा है। हमारी समझ में आज तक यह नहीं आया कि यह तुष्टीकरण क्या बला है ? देश की सरकारों ने मुसलमानों के लिए ऐसा क्या कर दिया कि मुसलमानों की तुष्टी हो गयी है। सच्चाई यह है कि अधिकतर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में कोई सरकारी स्कूल नहीं होता। कोई सरकारी या निजि बैंक अपनी शाखा नहीं खोलना चाहता। सरकारी अस्पताल नहीं होते। मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरी नहीं है। यानि मुसलमान बुनियादी चीजों तक से महरुम हैं। ऐसे में किस तरह से मुसलमानों का तुष्टीकरण हो गया ? हां, इतना जरुर है कि राजनैतिक दल मुसलमानों के वोट लेने के लिए उनकी हिमायत में दो-चार शब्द बोलकर इमोशनल ब्लैकमेल करते रहते हैं। इसे संघ परिवार मुसलमानों का तुष्टीकरण कहकर प्रचारित करता है।
अब सवाल यह है कि भारत अखंड रहता तो क्या होता। भारत अखंड रहता तो पाकिस्तान नहीं होता। पाकिस्तान नहीं होता तो तीन-तीन जंग नहीं करनी पड़ती। रक्षा बजट बहुत कम होता। आतंकवाद नहीं होता। जाली करेंसी नहीं होती। चीन तिब्बत को नहीं हड़पता। बाबरी मस्जिद शहीद नहीं होती। देश में गुजरात जैसे भयंकर साम्प्रदायिक दंगे नहीं होते। होते तो एकतरफा नहीं होते। मुसलमानों की सत्ता में बराबर की भागीदारी होती। सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की एक बड़ी संख्या होती। एक ही क्रिकेट टीम होती, जो हर बार वर्ल्ड कप जीतती। हाकी में भारत की सबसे मजबूत टीम होती। साहित्यकारों और शायरों की बहुत बड़ी संख्या होती। उर्दू का भी बोलबाला होता। सबसे बड़ी बात भाजपा का वजूद नहीं होता।
कहीं ऐसा तो नहीं कि लालकृष्ण आडवाणी ने जिनाह के मजार पर जाकर यह कहा हो कि 'जिनाह भैया, तुम थे, तो आज हम भी हैं।' आज भले ही संघ परिवार अखंड भारत का नारा लगाता हो लेकिन सच यह है कि खंडित भारत से सबसे ज्यादा फायदा हिन्दु साम्प्रदायिक ताकतों ने उठाया और नुकसान मुसलमानों के हिस्से मे आया। यदि संघ परिवार को रियलिटी शो 'सच का सामना' की हॉट सीट पर बैठाकर यह सवाल किया जाए कि 'क्या खंडित भारत ही आपके हित में है ? इसका जवाब देने में संघ परिवार के छक्के छूट जाएंगे। यदि हां कहता है तो मुसीबत और ना कहेगा तो पॉलीग्राफ मशीन बोल उठेगी, 'यह जवाब सच नहीं है।'

11 comments:

  1. भारत में यदि मुसलमानों को कोइ अवसर नहीं मिला, तो किसी ने अवसर लेने के लिये रोका भी नही, अपने अन्दर काबलियत पैदा करते नहीं दुसरों को दोष देते हैं।

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  3. कम से कम देश के बुद्दिजीवी वर्ग से ये अपेक्षा की जाती है कि वे जाति धर्म से उपर उठ कर राष्टीय अखंडता एवं हिन्दु मुस्लिम एकता की बात करें!

    हिन्दू को क्या मिला और मुसलमान को क्या ये मुद्दा बहस का नही हुज्ज्त का है जो समझदारों का काम नही है!

    आपका लेख देखा,लगा आप से कहूँ ,अगला ब्लाग लिखने से पहले थोडा तालीम लें ,आपके काम आयेगी!क्योकी लगता है आपको नही पता फ़क्रुद्दीन अली अहमद और ए.पी.जे.अबुलकलाम जैसे तमाम लोगों की इस देश मे क्या जगह रही है और कितना सम्मान है!

    क्या आप ने अपनी बात ठीक से रखी है?

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  4. "उम्दा सोच" से सहमत |

    "लेकिन मुसलमानों को केवल वोट देने वाली भेड़ों में तब्दील कर दिया गया। वोट लेने के बाद मुसलमानों को इसी तरह लावारिस छोड़ दिया जाता है"

    लेकिन इसके जिम्मेदार कोई और नहीं खुद मुसलमान है जो इन मौका परस्त नेताओं के बहकावे में आकर वोट देने वाली भेड़े बने हुए है |
    जब तक मुसलमान धार्मिक आधार पर एक होकर वोट बैंक बने रहेंगे तब तक उनका इसी तरह शोषण किया जाता रहेगा | वो चाहे कभी कांग्रेस हो ,मुलायम हो, मायावती हो या वामपंथी हो | ये मुसलमानों को अपने फायदे के लिए भाजपा व संघ से डराकर लामबंद करते रहेंगे और उनके वोट बैंक का फायदा उठाते रहेंगे |
    जब तक हम धार्मिक व जातिगत आधार पर वोट देते रहेंगे | हमारी इस कमजोरी का फायदा ये नेता उठाते रहेंगे | इसके सन्दर्भ में अभी राजस्थान के लोकसभा चुनाव का एक उदहारण देता हूँ |

    राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर जोधपुर लोकसभा सीट परिसिमिन के चलते राजपूत बहुत हो गयी ,यहाँ राजपूत परम्परागत तौर पर कांग्रेस के खिलाफ वोट देते है | जोधपुर गृह नगर होने के नाते यहाँ की सीट मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा से जुड़ गयी और इस सीट को जितने के लिए अशोक गहलोत जोधपुर के पूर्व महाराजा की बहन जो हिमाचल की महारानी है को यहाँ चुनाव लड़वाने हेतु ले आये | महारानी के आते ही जातिवाद के चलते यहाँ के सभी राजपूतों ने कांग्रेस को वोट दे महारानी को जीता दिया | कहने का मतलब राजपूतों का जातिगत आधार पर वोट देने की कमजोरी को अशोक गहलोत ने अपनी एक चाल चल कर भुना लिया |
    यही मुसलमानों के साथ होता है |

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  5. बड़े उम्दा घोड़े दौड़ाये हैं आपने… हमेशा की तरह सारा दोष संघ परिवार पर मढ़ा… खूब रही। ये न होता तो ये होता, ये होता तो ऐसा न होता आदि-आदि…। अब लगता है कि कश्मीर की धारा 370 से लेकर आंध्रप्रदेश सरकार के 5% धार्मिक आरक्षण तक के तुष्टिकरण के बारे में एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी…। भाई साहब जैसा कि अनिल त्यागी ने कहा है, दूसरों को दोष देने की बजाय मुस्लिमों को खुद अपनी गिरहबान में झाँकना चाहिये…

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  6. ये बात मैं पहले भी कई बार पढ़ चुकी हूं, लेकिन किसी मुस्लिम को अखंड भारत को वापस बनाने की मांग करते नहीं देखा बल्कि कश्मीरियों के मुस्लिम होने के नाम पर अलग देश या पाकिस्तान में मिलने की मांग करते ही देखा है।

    अगर मुस्लिम समझते हैं कि विभाजन से मुस्लिमो को नुकसान हुआ है या विभाजन गलत था तो फिर जैसी विभाजन के समय मुस्लिमों ने आंदोलन चलाया वैसा आन्दोलन जोड़ने के लिये चलाइये फिर देखियेगा कि हिंदुओं की कैसा समर्थन मिलेगा और कैसी सच्ची धर्मनिरपेक्षता कायम होगी।

    मुस्लिमों से निवेदन कि वो जोरदा प्रदर्शन कर इस बात पर आन्दोलन करें, उनको कोई रोक नहीं रहा है।

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  7. "विभाजन से मुसलमानों का ही नुकसान हुआ है"

    अच्छा मजाक कर लेते हैं। आपको तो हिन्दी में लतीफे लिखना चाहिये।

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  8. बेवकूफी करेंगे, अपने हितों को देश हित से उंचा समझेंगे तो नुकशान तो उठाना ही पडेगा !

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  9. भारतीय मुसलमानों के साथ दूसरे ग्रह के प्राणी जैसा बर्ताव किया जाता है। देश का बंटवारा जिन्ना नहीं , बल्कि नेहरू की वजह से हुआ था।

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  10. मेरी यह त्रासदी रही है कि मुझे संघ परिवार वाले हिन्दु विरोधी कहते हैं तो मुस्लिम साम्प्रदायिक लोग मुस्लिम विरोधी कहते हैं। जब मैं नन्दीग्राम और सिंगूर मामले में वामपंथियों की आलोचना करता हूं तो मेरे वामपंथी दोस्त नाराज हो जाते हैं। क्योंकि मैं एक मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हूं इसलिए फासिस्ट ताकतों का हमेशा से ही विरोध्ी रहा हूं। मेरा पक्ष हमेशा ही मजलूमों के साथ रहा है। मजलूम किस धर्म या जाति का है मुझे इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि संघ परिवार एक फासिस्ट संगठनों का परिवार है, जो केवल दूसरे धर्म के लोगों को धमकाने और उन्हें नेस्तानाबूद करने की बातें करता है। इसी तरह इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठन केवल इस्लाम का परचम फहराने के नाम पर बेकसूर लोगों को अपना निशाना बनाते है। बहुत से लोग कहते हैं कि मेरी कलम कश्मीरी पंडितो, बंगलादेश के हिन्दुओं और गोधरा कांड के बारे में क्यों नहीं चलती ? इस संदर्भ में मेरा कहना है कि मैंने सब के बारे में लिखा है। अब किसी ने उन्हें नहीं पढ़ा है तो मेरा कोई कसूर नहीं है। गोधरा कांड जिसने भी किया वो एक ऐसा घिनौना कार्य था, जिसकी किसी भी सूरत में हिमायत नहीं की जा सकती, लेकिन उससे भी ज्यादा वीभत्स गुजरात का वो कत्लेआम था, जो स्वाभाविक प्रतिक्रिया के नाम के नाम पर किया गया। ऐसे ही जैसे 1984 में सिखों के साथ किया गया था। तब भी राजीव गांधी ने सिखों के कत्लेआम को यह कहकर सही ठहराया था कि 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती कांपती ही है।' दोनों ही कत्लेआम का एक और काला पक्ष सरकार की भूमिका थी। वेब मीडिया में तो आए मुझे एक साल भी नहीं हुआ है। लेकिन प्रिन्ट मीडिया में सालों से लिखता रहा हूं। मेरे आलोचकों से दरख्वास्त है कि मेरे ब्लॉग haqbaat.blogspot.com पर जाकर मेरी पुरानी पोस्टें पढ़े, तब मेरे बारे में कोई राय कायम करें। यहां में यह भी साफ कर दूं कि संघ का विरोध करना हिन्दुओं का विरोध करना नहीं है, क्योंकि संघ पूरे देश के हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता। ऐसे ही तालिबान की कारगुजारियों का विरोध करना इस्लाम का विरोध नहीं है। मैं इस्लाम का मानने वाला हूं। जब से मैंने लिखना शुरु किया है, तब से लेकर आज तक हिन्दुओं की ही नहीं किसी भी धर्म की आस्था पर कभी चोट नहीं की। इस्लाम ने ही मुझे यह शिक्षा दी है कि 'किसी धर्म को भी बुरा मत कहो।'

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  11. सलीम अख्तर जी ,
    यहाँ आपको व्यक्तिगत तौर पर हम किसी विचारधारा का विरोधी नहीं समझ रहे है | हाँ यदि आपके विचारों से हमें कोई असहमति होगी तो अपना विरोध जरुर दर्ज करेंगे |इसे आप भले ही अपनी आलोचना समझे या हमारी असहमति | साथ ही आपकी जिस बात से सहमति होगी उसका समर्थन भी करेंगे |

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