Friday, August 14, 2009

देश को दूसरी आजादी की सख्त जरुरत है

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
15 अगस्त। आजादी का दिन। आज के ही दिन ब्रिटिशों की गुलामी से देश आजाद हुआ था। आज के दिन सरकारी और गैर सरकारी लोग जश्न-ए-आजादी को मनाते हैं। लम्बे-लम्बे और उबाउ भाषण दिए जाते हैं। कुछ लोगों के लिए यह महज छुटृटी का दिन होता है। इत्तेफाक से 15 अगस्त शनिवार की हो तो बल्ले-बल्ले हो जाती है। लगातार दो छुटिृटयां मिलती है। अबकी बार तो और भी ज्यादा मजा आएगा। तीन लगातार छुटिृटयां मिल रही हैं क्योंकि देश आजादी की तारीख से एक दिन पहले श्रीकृष्ण का भी जन्मदिन है। यानि छुट्टियों का पूरा पैकेज। तीन दिन की मौज-मस्ती। मौज-मस्ती करने वाला वही वर्ग है, जिसका कभी आजादी की लड़ाई से कोई ताल्लुक नही रहा यानि पूंजीपति वर्ग। यह वर्ग मुगल दौर में भी सत्ता के साथ था। अंग्रेजों के दौर-ए-हुकूमत में भी अ्रंग्रेजों के साथ खड़ा था। यही वर्ग देश आजाद होने के बाद सत्ता पक्ष के साथ ही खड़ा नजर आता है। विडम्बना यह है कि यही वर्ग आज अपने आप को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी और देशभक्त कहता है। 15 अगस्त को होने वाले कार्यक्रम के प्रायोजक इसी वर्ग के होते हैं। जिन्होंने देश की आजादी की खातिर जानें कुरबान कीं, उनके वारिसान कहीं किसी गंदी गली में मर-खप गए। जो कुछ बचे होंगे वे भी कहीं नारकीय जीवन बिता रहे होंगे।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने कहा था कि 'आजादी का मतलब यह नहीं है कि सत्ता गोरे अंग्रेजों के हाथों से निकलकर काले अंग्रेजों के हाथों में चली जाए।' भगत सिंह ने कितना सही कहा था। ऐसा ही हुआ भी। आज भले ही गोरे अंग्रेज हमारे देश पर राज नहीं कर रहे हों, लेकिन ये काले अंग्रेज गोरे अंग्रेजों से कम निर्दयी नहीं हैं। सत्ता में वहीं लोग आते हैं, जो कभी अंग्रेजों के चापलूस और जरखरीद गुलाम थे। जिन्होंने आजादी की दीवानों की मुखबरी करके 'सर' और 'रायबहादुर' का खिताब हासिल किया। जिन लोगों ने अंग्रेजों कोेे 'माफीनामा' देकर रिहाई पायी, वही लोग 'सत्ता' की सबसे बड़ी कुर्सी पर विराजमान हुए।
सही मायनों में 15 अगस्त 1947 को देश की सत्ता एक जालिम ने दूसरे जालिम के हाथों में सौंपी थी। देश की जनता इसी भ्रम मे जश्न मना रही थी कि अब देश आजाद है। एक ऐसी सरकार होगी, जो जनता की सरकार होगी। सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होगी। सबको भरपेट रोटी मिलेगी। सबको काम मिलेगा। सबकी इज्जत महफूज रहेगी। सबको न्याय मिलेगा। अन्याय का खात्मा होगा। जनता को क्या पता था कि वह मृगमरीचिका की शिकार हो गयी है। जनता मृगमरीचिका से उबरी तो उसे सबसे बड़ा झटका तो यही लगा कि देश के सभी कानून कायदे तो वहीं हैं, जो अंग्रेजों के थे। आजाद देश की पुलिस भी वही थी, जो अंग्रेजों का हुक्म बजाती थी। यहां तक की जनता की पीठ पर कोड़े बरसाने वाला कारिन्दा भी तो वही कम्बख्त था, जो अंग्रेजों के हुक्म से देश की निरीह जनता की पीठ पर कोडे+ बरसाता था।
मुनाफाखोर, जमाखोर और मिलावटखोर भी वही थे, जो अंग्रेज साहब बहादुर की तिजोरियां नोटों से भर देते थे। देश आजाद होने के बाद यही लोग नेताओं की तिजोरियां भरने लगे। देश की जनता को मुनाफाखोरों, जमाखोरों और मिलावटखोरों के हाल पर छोड़ दिया गया। रही सही कसर देश की जनता को धर्मवाद, जातिवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद में बांटकर पूरी कर दी गयी। हद यहां तक हो गयी कि देश को आजादी दिलाने वाले योद्वाओं को भी धर्म और जाति में बांट दिया गया। भगत सिंह को ही लीजिए। कम्यूनिस्टों और आरएसएस में बहस होती रहती है कि भगत सिंह कम्यूनिस्ट थे या धार्मिक थे। यह दोनों यह नहीं जानते कि महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि भगत सिंह किस विचाारधारा को मानते थे, महत्वपूर्ण बात यह है कि भगतसिंह की पहचान उनके किस कर्म से है। सच यह है कि उनकी पहचान सिर्फ और सिर्फ भारत की आजादी दीवाने के रुप में होती है, जो मात्र 23 साल की उम्र में देश की खातिर शहीद हो्र गया। यह अलग बात है कि वे यदि जिन्दा रहते तो किस विचारधारा को आत्मसात करते। इतना जरुर कयास लगाया जा सकता है कि भगतसिंह का रुझान कम्यूनिस्ट विचारधारा की ओर तो हो सकता था, संघी विचारधारा की ओर कतई नहीं, क्योंकि भगतसिंह ने हमेशा ही साम्प्रदायिकता को देश के लिए घातक बताया था। वे हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। यह भी सच है कि कम्यूनिस्टों और आरएसएस का आजादी की लड़ाई में कभी कोई योगदान नहीं रहा। अब दोनों ही यह साबित करने में लगे रहते हैं कि जंग-ए-आजादी के सिपाही उनकी विचारधारा को मानने वाले थे।
बहरहाल, कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश तो आजाद हुआ, लेकिन जनता आज भी गुलाम है। वह गुलाम है, भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की। लोकतन्त्र के नाम पर नीम तानाशाहों की जनता एक सरकार से तंग आकर दूसरी सरकार को चुनती है, लेकिन शासक तो बदलता है, निजाम नहीं बदलता। यानि सत्ता एक जालिम के हाथ से निकलकर दूसरे जालिम के हाथों में चली जाती है। इस देश का प्रधानमन्त्री जब यह कहता है कि सूखे की वजह से आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ सकती है, तब प्रधानमंत्री मुनाफाखोरों और जमाखोरों की मदद करते नजर आते हैं। तभी तो प्रधानमंत्री के बयान के एक दिन बाद ही खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ जाते हैं। ऐसे में देश की जनता अपने आप को असहाय और यतीम समझने लगती है, खासकर कमजोर वर्ग के लोग चिंताग्रस्त हो जाते हैं। मुनाफाखोरों और जमाखोरों को केन्द्र और राज्य सरकारों की चेतावनी के बाद जमाखोर और मुनाफाखोर महज मुस्कराकर रह जाते होंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि सरकारों के अहलकारों को चांदी का जूता मारकर अपना पालतू कुत्ता बनाया जा सकता है। अब ऐसे में देश की जनता देशभक्ति के गीत गुनगुनाए तो भी कैसे ? आजाद देश की हालत देखकर एक पूरी पीढ़ी यही कहते हुए इस दुनिया से विदा हो गयी कि इससे तो अं्रग्रेजों का राज अच्छा था। यदि सरकारें नहीं चेतीं तो वह दिन दूर नहीं, जब खुद जनता मुनाफाखोरों और जमाखोरों से सड़कों पर निपटेगी। यदि ऐसा हुआ तो इन्हीं सरकारों की पुलिस जनता की सीनों पर गोलियां चलाने से नहीं चूकेंगे। क्या अब वक्त नहीं आ गया है देश को दूसरी आजादी की सख्त जरुरत है ? सरकारें इस मुगालते में न रहें कि जनता के सब्र का प्याला नहीं छलकेगा ? मत भूलिए कि रोटियां आदमी को दीवाना बना देती हैं और दीवाना कुछ भी कर सकता है।

9 comments:

  1. आपकी भावनाओं से सहमत हूँ।

    सघन समस्या सागर सा है।
    संशय समुचित समाधान में।
    सकल सोच का सार है साथी।
    संशोधन हो संविधान में।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ReplyDelete
  2. बिल्‍कुल सहमत हूं आपसे .. आजादी कहीं भी दिखती नहीं !!

    ReplyDelete
  3. सोच का नज़रिया और आपका दर्द वाज़िब है

    ReplyDelete
  4. सलीम भाई, बंदा भी meerut का ही है. ख़ाक छानते-छानते नॉएडा आ गया है. बहुत छोटा था आपके अख़बारों को भेजे पत्र पढ़ा करता था. अभी हाल में udhyanji की याद को लेकर आपकी सक्रियता के बारे में पढ़ा. हमेशा आपसे कुछ प्रेरणा मिली. आज़ादी के दिन से मैंने भी अपना ब्लॉग शुरू किया है- deshnama उस पर आपका कमेन्ट ज़रूर चाहूँगा. वैसे अब ब्लॉग के ज़रिये आपसे मुलाकात का सिलसिला चलता रहेगा. मेरे ब्लॉग का लिंक है-http://www.deshnama.blogspot.com/
    -खुशदीप सहगल

    ReplyDelete
  5. सलीम भाई, हौसला-अफजाई के लिए तहे-दिल से शुक्रिया. meerut जब भी आऊंगा, आपसे ज़रूर मिलूँगा.

    ReplyDelete
  6. रोटियां आदमी को दीवाना बना देती हैं और दीवाना कुछ भी कर सकता है।

    वाह जी क्या बात कही है ....!!

    सशक्त आलेख .....!!

    ReplyDelete
  7. halat kuch aise hi ban raha hai.
    aapne bilkul thik likha hai.
    raj kumar sahu
    janjgir

    ReplyDelete
  8. jis parivartan ki aaj sabse jyada jaroorat mehsus ho rahi hai use laane ke liye hum nikal chuke hain aasha hai aap sabhi ka margdarshan aur saath milega.
    Pawan
    www.projectvijay.blogspot.com

    ReplyDelete