Wednesday, August 5, 2009

'हां, भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
इमरान हाशमी का आरोप है कि की मुंबई की एक हाउसिंग सोसायटी ने उसे इसलिए मकान नहीं दिया कि वह मुसलमान हैं। इस पर तर्रा यह कि अब इमरान हाशमी के खिलाफ ही कानूनी कार्यवाई की जा रही है। इमरान हाशमी प्रकरण के बहाने इस बहस को फिर से चर्चा में ला दिया है कि क्या भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि हां, भारत में मुसलमानों के साथ पक्षपात होता है। मैं खुद इसका भुक्तभोगी हूं। अब से लगभग चार साल पहले मेरठ के एक कॉम्प्लेक्स में मुझे ऑफिस बनाने के लिए दुकान किराए पर इसलिए नहीं दी गयी थी क्योंकि मेरा नाम सलीम अख्तर सिददीकी था। हालांकि दुकान मालिक से सभी बातें तय हो गयीं थी, लेकिन जब एग्रीमेंट के लिए नाम और पता लिखा जाने लगा तो दुकान मालिक के रवैये में फौरन बदलाव आ गया। वह कहने लगा कि मैं अपने बेटे से सलाह कर लूं हो सकता है कि उसने किसी और से बात कर ली हो। मैं समझ चुका था क्या हो गया है। मैं दोबारा पलट कर वहां नहीं गया। लेकिन सुखद बात यह रही कि दूसरी जगह एक हिन्दू ने यह कहकर मुझे अपनी दुकान फौरन दे दी कि मुझे हिन्दु-मुसलमान से कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि यह छोटी -छोटी बातें हैं, लेकिन दिल का ठेस तो पहुंचाती ही हैं। बात सिर्फ मकान या दुकान की ही नहीं है। सरकारी नौकरियों में पक्षपात किया जाता है। सरकारी विभागों में मुसलमानों का काम जल्दी से नहीं हो पाता। हां, रिश्वत देकर जरुर हो जाता है। कई बैंकों ने अलिखित रुप से नियम बना रखा है कि मुसलमानों को कर्ज नहीं देना है। देहरादून में गांधी रोड पर एक जैन धर्मशाला है। उसके नोटिस बोर्ड पर साफ लिखा है कि किसी गैर हिन्दू को कमरा नहीं दिया जाएगा।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच चल रहा था। मैं अपने कुछ हिन्दु दोस्तों के साथ मैच देख रहा था। मैच बहुत ही रोमांचक हो चला था। पाकिस्तान को हिन्दुस्तान ने शिकस्त दे दी थी। हिन्दुस्तान के मैच जीतते ही सभी के साथ मैं भी उछल पड़ा। सभी ने मुझे ऐसे देखा, जैसे अजूबे हो गया हो। एक ने कटाक्ष किया सलीम तुझे तो इस बात का गम मनाना चाहिए कि पाकिस्तान हार गया है। यानि ऐसा मान लिया गया है कि हिन्दुस्तान का हर मुसलमान पाकिस्तान परस्त ही हो सकता है। देश में कुछ फिरकापरस्त लोगों ने खेल के मैदान को भी जंग का मैदान बना दिया है। मुसलमान से यह उम्मीद रखी जाती है कि सचिन के आउट होने पर उन्हें अपनी रोनी सूरत ही बनानी है। आफरीदी की जिस उम्दा गेंद पर सचिन आउट हुआ है, उस गेंद की तारीफ करना मुसलमान के लिए देशद्रोह से कम नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है कि एक भारतीय मुसलमान एक अच्छे खेलने वाले पाकिस्तानी खिलाड़ी की तारीफ नहीं कर सकता ?
आजादी के बाद बदतरीन मुसलिम विरोधी दंगों के जिम्मेदारों को आज तक सजा नहीं दी गयी। दंगों के दौरान मरता भी मुसलमान है। मुसलमानों के घरों को आग लगा दी जाती है। उसके बाद गिरफतार भी मुसलमानों को ही किया जाता है। शोर शराबा होने पर इतना जरुर होता है कि न्यायिक जांच आयोग का झुनझुना मुसलमानों को पकड़ा दिया जाता है। सालों साल जांच के नाम पर ड्रामा होता है। रिपोर्ट आती है तो उस पर कभी अमल नहीं होता । 1993 के मुंबई बम धमाकों के कसूर वारों को तो सजा सुना दी गयी, लेकिन बाबरी मस्जिद का ध्वस्त होने के बाद मुंबई के मुस्लिम विरोधी दंगों के कसूरवार आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। क्या ये मुसलमानों के साथ ज्यादती नहीं है ? 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा से 44 मुसलमानों को एक ट्रक में भरकर मुरादनगर की गंगनहर पर ले जाकर गोलियों से भून कर नहर में बहा दिया जाता है। लेकिन जिम्मेदार पीएसी के अफसर न सिर्फ आराम के नौकरी करते हैं, बल्कि उनका प्रमोशन भी कर दिया जाता है। गुजरात में एक मुख्यमंत्री की शह पर मुसलमानों का कत्लेआम होता है और वह मुख्यमंत्री बना रहकर पीड़ितों को धमका कर जांच को प्रभावित भी करता है। ये तो मात्र कुछ उहारण हैं, वरना मुसलमानों के कत्लेआम का सिलसिला बहुत लम्बा है।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। मुसलमानों के बारे में ऐसे-ऐसे मिथक गढ़ दिए गए हैं, जो सच लगने लगे हैं। मसलन, मुसलमान गंदे होते हैं। जालिम होते हैं, आतंकवादी होते हैं। इनके मौहल्लों में नहीं जाना चाहिए, ये लोग हिन्दुओं को काटकर फेंक देते हैं। मुसलमान बिजली की चोरी करते हैं। चोर उच्चके होते हैं। क्या वास्तव में ऐसा है ? यह सही है कि मुसलिम मौहल्ले गंदे होते हैं। लेकिन इसका कसूरवार कौन है ? कसूरवार वे नगर निकाय हैं, जिनके सफाई कर्मचारी सालों साल भी मुस्लिम मौहल्लों की सुध नहीं लेते। वे जाना भी नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें पता है कि मुसलमानों की सुनता कौन है। और फिर उनके दिल में यह बैठा रखा है कि मुसलमान जालिम होते हैं, काट कर फेंक देते हैं। कर्मचारी यही बहाना बना कर ऐश की काटते हैं। पाश कालोनियां, जो अधिकतर हिन्दुओं की होती हैं, चमचमाती रहती हैं। उन कालोनियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अच्छी भली सड़क को दोबारा बना दिया जाता है। मुसलिम मौहल्लों की सड़कों की हालत हमेशा ही खस्ता रहती है। पॉश कही जानी वाली कालोनियों में भले ही चोरी की बिजली से एसी चलाए जाते हों, लेकिन बिजली चोर का तमगा मुसलमानों पर लगा दिया गया है।
चोर उच्च्के किस धर्म या जाति में नहीं होते हैं। अधिकतर चेन लुटेरे मुसलमान नहीं, दूसरे लोग होते हैं। यदि कोई मुसलमाना साइकिल चुराता हुआ पकड़ा जाता है तो उसकी जमकर पिटाई होती है। यदि चोर हिन्दू है तो उसको दो-चार थप्पड़ मारकर छोड़ दिया जाता है। नकली घी और दवाईयां, बनाने वाले, बड़े घोटाले करने वाले, मिलावटी सामान बेचने वालों की संख्या मुसलमानों से कहीं ज्यादा गैर मुंस्लिमों की होती है। पकड़े जाने पर इनको कोई कुछ नहीं कहता क्योंकि उस पर व्यापारी होने का लाइसेंस होता है। यह तो अच्छा है कि पक्षपात के चलते सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिशत नगण्य है, वरना भ्रष्टाचार का ठीकरा भी मुसलामानों के सिर पर ही फोड़ा जाता।
अब सवाल है कि पक्षपात कहां नहीं होता ? भारत में ही दलितों को हमेशा हाशिए पर डाले रखा गया। मुंबई में उत्तर भारतीयों को हिकारत की नजर से देखा जाता है। बाल ठाकरे की शिवसेना तो मुसलमानों को हरे सांप कहती है। शहरों में कई कालोनियां ऐसी होती हैं, जो विशेष जाति की होती हैं। मसलन, वैश्यों की कालोनी में किसी गैर वैश्य को प्लॉट या मकान नहीं दिया जाता। सरकारी नौकरियों में हमेशा से ही अलिखित रुप से ब्र्राहमणों का आरक्षण रहा। जिस गांव में जिस जाति का प्रभाव होता है, उस गांव में दूसरी जातियों के साथ भेदभाव होता है। हिन्दुस्तान का तो मुझे पता नहीं, पाकिस्तान में शिया सुन्नियों को मकान किराए पर नहीं देते तो सुन्नी शियाओं को। पाकिस्तान के शहर कराची के एफबी एरिया में ब्लॉक 20 शिया बहुल है तो उसके सामने ब्लॉक 17 सुन्नी बहुल है। दोनों ब्लॉकों को एक सड़क अलग करती है। वो सड़क जैसे सरहद का काम करती है। मैंने कुछ वक्त कराची में गुजारा है। ब्लॉक 17 में मेरे मामू रहते हैं। वहां रहते हुए कुछ शिया मेरे बहुत अजीत दोस्त बन गए थे। मेरे रिश्तेदारों को इस बात पर ही ऐतराज होने लगा था कि मेरे दोस्त शिया क्यों है। मुझे कहा गया कि श्यिा लोग अच्छे नहीं होते। सुन्न्यिों को जो कुछ खाने को देते हैं, उसमें पहले थूक देते हैं। मुझे शियाओं से कभी कोई परेशानी नहीं हुई। पाकिस्तान में महाजिरों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इराक में कुर्दों के साथ क्या कुछ नहीं हुआ। अपने आप को सभ्य कहने वाले यूरोपियन मुल्कों में अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव आम बात है। आस्टे्रलिया मे तो भारतीय छात्रों के साथ ज्यादती कल की ही बात है। इसलिए इमरान हाशमी साहब ऐसा होता है। ऐसी बातों को दिल पर नहीं लेना चाहिए। कहीं न कहीं कोई न कोई भेदभाव का शिकार हो रहा है और होता रहेगा।

14 comments:

  1. सलीम जी नमस्कार

    मै आज पहली बार आपके ब्लोग पे आया अच्छा भी लगा, किन्तु आप ने कुछ बात ऐसी कह दी जो की सही नही है। आप इमरान हाशमि की बात करते हो मै आपसे जानना चाहुगां कि क्या आपको नही लगता कि उन्होने इस बात को आगे बढाने के लिए अपने धर्म का सहारा नही लिया, अगर मकान मालिक ने आपको अपना मकान बेचने से इंकार कर दिया तो आप उसे धर्म से जोङकर देखने लगे, जो की सरासर गलत है।
    आप कहते है कि आपके साथ पक्षपात हो रहा है, लेकिन आप ये क्यो नही मानते जो कुछ आपको हिन्दुसतान मे मिला, क्या वे सब हक पाकिस्तान मे रह रहे हिन्दु को मिला, यहां तक वहां के मुसलमानो को भी इतनी आजादी नही मिलती है, और ये बात आपको भी मालुम है।
    मै कोई मुस्लिम विरोधी नही हुं, और ना ही इस पक्ष मे हूं, । आप कहते है कि आपको शक की नजर से देखा जाता है, मै भी इस बात को सही नही मानता , लेकिन सलीम जी बुरा ना मानना आखिर आप लोगो को शक की निगाह से देखा जाता है तो उसका कारण तो आपको पता होगा,
    इक कहावत है ना गेहुँ के साथ घून भी पीस जाता है। आप अपने जगह हिन्दुं को रखके देखिये आपको कारण पता चल जायेगां।

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  2. सलीम जी नमस्ते,

    आप कि बात से मै सहमत् नही हूँ । भारत देश मे मुसलिम आदर के साथ देखा जाता है । यहाँ पर हिन्दुओ से ज्यादा मुसलिम् को हर तरह से भारत सरकार दृारा फिसल्टी दी जाती है ।

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  3. साम्प्रदायिकता देश की अस्मिता के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। यह देश इसी के कारण अनेक बार और अनेक वर्षों तक पराधीन रहा है। साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय भावना के उदय होने में सबसे बड़ा अवरोध है। साम्प्रदायिकता से देश की स्वतंत्राता के लिए बहुत बड़ा संकट है। जब साम्प्रदायिकता की महामारी इतनी विकराल एवं भयावह है तो इसका निदान अवश्य ही खोजा जाना चाहिए। इसके निदान के लिए हमें इसके कारणों की खोज करना चाहिए और इसके प्रसारण के जो कारण हैं उन पर कारगर प्रतिबंध लगाये जाने चाहिए।

    saleem khan
    swachchhsandesh.blogspo.com

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  4. मिथिलेश, दोस्‍त बुरा मत मानिएगा लेकिन आपकी बातें उन्‍हीं चीजों को दोहरा रही हैं जो दशकों से हमारे देश में प्रचारित कर दी गई हैं। जरा तथ्‍यों की रो‍शनी में खुले दिमाग से देखने की कोशिश करेंगे तो हकीकत सामने आ जाएगी। पहली बात तो यह कि आप पाकिस्‍तान से गलत तुलना कर रहे हैं। हमारे देश में जनवाद वहां से ज्‍यादा है। वहां कट्टरपंथी ताकतों की दखल ज्‍यादा है। लेकिन भारत में मुसलमानों की कोई बहुत अच्‍छी स्थिति नहीं है। सच्‍चर कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि आम मुसलमान आबादी बहुत खराब हालात में जी रही है। कुछ लोगों के धर्म का बेजा इस्‍तेमाल करने और राजनीति के खेल की वजह से इस आम आबादी के लिए हमारा नजरिया नहीं बदलना चाहिए। राजनीति का शिकार एक हथकण्‍डे से अगर गरीब मुसलमान होता है तो दूसरे हथकण्‍डे से गरीब हिन्‍दू भी हो रहा है। दरअसल यह खेल ही हमें बांटने का है। जरूरत है हम इस खेल को समझे और असली बंटवारे यानी अमीर-गरीब के बीच की लड़ाई में अपना पक्ष तय करें। आपस में लड़ना सिर्फ हुक्‍मरानों के फायदे में होगा।

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  5. मुसलमानों के साथ हम भेदभाव क्यूँ न करें? हम तो हिन्दुओं के साथ भी करते हैं कभी जाति के नाम पर कभी गरीब के नाम पर। अमीरों में तो कोई भेदभाव नहीं।
    हाशमी जो कर रहे हैं वो राजनीति है या मार्केटिंग। अब तक उन्हें यह भेदभाव क्यूँ नहीं दिखा? वह तो पहले भी था।

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  6. ठीक है न सलीम साहब आपका मुसलमान होकर यह लिखना बिलकुल जायज है ,
    आखिर यह सब ( रोजेदारों के साथ भेदभाव ) हो तो रहा ही है |

    भाई वो क्या है न कि हमने भी यह सब अल्लाह के बन्दों से सीखना शुरू कर दिया है , अब आप लोगों ( रोजेदारों )
    को हम भी उतना ही हक और मान सम्मान दिया करेगे जो दार- उल -इस्लाम की ( ५७ देश जो कि एक स्वयम्भू पैगम्बर के कानून से संचलित होते हैं ) पाक सरजमीं पर गैर मुस्लिमों को दिया जाता है
    , तब बराबरी की बात सामने आएगी |

    क्यों ठीक है ना ?

    :P

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  7. आपने इमरान हाशमी का उदाहरण दिया, लेकिन वह अकेली मिसाल नहीं है… जब अज़हरुद्दीन सट्टेबाजी में फ़ँसा तब चिल्लाया कि मैं मुसलमान हूँ इसलिये फ़ँसाया, शबाना आज़मी भी एक बार शिकायत कर चुकी हैं… हिरन मामले में जब जेल जाने की नौबत आई तो तुरन्त सलमान ने "जालीदार सफ़ेद टोपी" लगा ली, यहाँ तक कि संजय दत्त ने भी कह दिया कि मुझे जेल में इसलिये पीटा गया कि मैं नरगिस की औलाद हूं… अब आप खुद ही सोचिये… क्या मुसलमानों के मन में यह भाव नहीं है कि "कोई न कोई अदृश्य वोट बैंक की ताकत" उसे बचाने आगे आयेगी (और आती भी है, कभी कांग्रेस के रूप में कभी सपा के रूप में कभी मीडिया के रूप में), बस जोर-जोर से गुहार लगाना है कि मैं मुस्लिम हूं इसलिये भेदभाव हो रहा है… यह कैसी मानसिकता है…।
    ताज़ा खबर यह है कि दिलीप कुमार को भारत रत्न दिये जाने की मांग की जा रही है, आप यकीन जानिये कि यदि नहीं मिला तो यही कहा जायेगा कि मुसलमान हैं इसलिये नहीं दिया…। यानी प्यार-दुलार, सम्मान, धन-दौलत मिले, मंत्री बनें, राष्ट्रपति बनें, तब तक मुसलमान नहीं हैं, लेकिन जैसे ही…

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  8. ए पी जे अबुल कलाम
    डाक्टर जाकिर हुसैन
    बरकतुल्लाह खान
    शाहरुख़ खान
    आमिर खान
    नवाब पटौदी
    इरफान खान
    युसूफ पठान
    इरफान पठान
    फिरोज़ खान
    अमजद खान
    सलीम- जावेद
    शबाना आजमी
    आमिर खान
    सलमान खान
    सैफ अली खान
    इम्तियाज़ अली
    जहीर खान
    सोहेल खान
    ए आर रहमान
    जगदीप
    जावेद जाफरी
    उस्ताद जाकिर हुसैन
    उस्ताद सुलतान खान
    शमशाद बेगम

    लिस्ट और भी लम्बी पर.. पर शर्म आने के लिए इतने ही नाम काफी है..

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  9. कुश ने जितने नाम गिनाएं उसे देखने के बाद इस तरह की हिमाकत भी मत कीजिएगा. कुछ कहने लिखने से पहले चार बार सोचिए फिर बोलिए, सब गंभीरता से लेंगे...

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  10. आपने अंत में लिखा कि भेदभाव कहां नहीं होता... मुझे लगता है आपको सकारात्मक सोच दिखानी चाहिये.. अपना नजरिया है.. आपको ग्लास आधा खाली दिखाई देता है या आधा भरा..

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  11. इस पोस्ट पर आए कई कमेन्ट ही मूर्खता और धूर्तता सका भरे हैं. पकिस्तान में हिन्दुओं के साथ बर्ताव का आईना दिखाकर आप अपने घिनौनेपन को जेनुइन ठहराना चाहते हैं. बेशक हिन्दुस्तान का मुसलमान लगातार आइसोलेशन की तरफ धकेला जां रहा है. यह भी सही hai ki दलित और अति पिछडी जातियों के साथ भी सवर्ण हिन्दू यही सुलूक करते हैं. साम्प्रदायिकता और छुआछूत की अगुआई यही सवर्ण समाज करता है. यही देश द्रोही तबका खुद को देशभक्त कहता है.

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  12. धीरेश ने पर्याप्‍त जवाब दे दिया है....

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  13. comment likhne wale sab chirkut log hain
    ab uper walon ki satik jawab mil gya hoga
    achha likha hai salim Sb..........

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