Thursday, February 19, 2009

पाक का वजूद खत्म होना भारत के लिए खतरा


यह कबूल करने के बाद कि 26/11 की साजिश पाकिस्तान की सरजमीं पर रची गयी थी, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने यह माना कि पाकिस्तान को तालिबान से खतरा है और पाकिस्तान अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिका और पाकिस्तान ने 1979 में रुस के कब्जे के बाद रुसी फौजों से लड़ने के लिए तालिबान का जो भस्मासुर पाला-पोसा था, वह भस्मासुर पाकिस्तान के वजूद के लिए ही खतरा बन गया है। पाकिस्तान की मदद से ही अमेरिका ने तालिबान को हथियारों से मालामाल किया था और तालिबान रुसियों से लड़े थे। रुस को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा। रुसी सेना अपने जो हथियार अफगानिस्तान में छोड़ कर भागी थी, उन पर तालिबान का कब्जा हो गया। अमेरिका ने यूज एंड थ्रो की नीति पर चलते हुऐ अपना मतलब निकल जाने के बाद खंडहर में तब्दील हो चुके अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया। एक वक्त वह भी आया कि पाकिस्तान में अमेरिका के सहयोग से आतंकियों की जो खेप तैयार हुई थी, उसकी कमान न सिर्फ पाकिस्तान के हाथों से निकल गयी बल्कि वे हथियार, जो जेहाद के नाम पर आतंकवादियों के हाथों में पकड़ाये गए थे, उन का रुख उन्हीं लोगों की हो गया, जो उनके पोषक रहे हैं। 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर पहले अफगानिस्तान पर हमला किया और उसके बाद दुनिया की सभी अपीलों और दलीलों को खारिज करके झूठी और मनघढ़ंत सूचनाओं को आधार बनाकर इराक पर हमला किया। लेकिन आतंकवाद खत्म नहीं हुआ, बल्कि आतंकवादियों को नए तर्क और बहाने मुहैया हो गए। अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ तथाकथित जंग आज भी जारी है। लेकिन आतंकवाद कम होने के बजाय बढ़ता चला गया। यह कहा जा सकता है कि केवल किसी देश पर हमला बोल कर आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा होता तो अफगानिस्तान और इराक पर हमले के बाद आतंकवाद खत्म होने के बजाय बढ़ता नहीं।अब सवाल यह है कि वजूद खोते पाकिस्तान पर यदि तालिबान का कब्जा हो गया तो क्या होगा ? यह सवाल हवा में नहीं है। इस सवाल के पीछे तथ्य हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि तालिबान ने अफगानिस्तान के एक बड़े हिस्से और अफगानिस्तान की सीमा से लगे पाकिस्तान के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है। पाकिस्तान के स्विटजरलैंड कहे जाने वाली स्वात घाटी में तालिबानियों का वर्चस्व है। स्कूल, कॉलेज, हैयर सैलून, म्यूजिक शॉप आदि तालिबान के फरमान के बाद बंद कर दिए गए हैं। अब तो यह खबर भी आयी है कि तालिबान ने लड़कों को भी स्कूलों में पढ़ने पर रोक का फरमान जारी कर दिया है। पाकिस्तान ने तालिबान के सामने हथियार डालते हुऐ स्वात घाटी सहित एक बड़े भाग में इस्लामी कानून लागू करने की मंजूरी दे दी है। तालिबान का इस्लाम कैसा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। पाकिस्तान और अमेरिका की मदद से तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता का स्वाद चख चुके हैं। उन्हें सत्ता का चस्का लग चुका है। वे अब किसी भी कीमत पर दोबारा सत्ता चाहते हैं। अब तालिबान की नजर पाकिस्तान को कब्जाने की है। पाकिस्तान की फौज पर तालिबान भारी पड़ रहे हैं। या कह सकते हैं कि पाकिस्तान की फौज तालिबान से हमदर्दी के चलते अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रही है। इस बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तान की आईएसआई और फौज का एक बड़ा हिस्सा तालिबान से हमदर्दी रखता है और पाकिस्तान में वही होता है, जो आईएसआई और फौज चाहती है। फौज कभी नहीं चाहती कि पाकिस्तान में लोकतन्त्र मजबूत हो। इसलिए लोकतन्त्र के नाम पर चुनकर आने वाले पाकिस्तानी हुक्मरानों का जोर कभी भी फौज पर नहीं चल सका है।खुदा न करे यदि पाकिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया तो सबसे अधिक खतरा भारत को ही है। गम्भीर खतरा पाकिस्तान के परमाणु बमों को लेकर है। तालिबान पाकिस्तान के परमाणु बमों तक पहुंचने की कोशिश जरुर करेगा। यदि तालिबान की पहुंच परमाणु बम तक हो गयी तो भारत का ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया का वजूद खतरे में पड़ सकता है। ऐसे में जब आसिफ जरदारी पाकिस्तान के वजूद को खतरे में बताते हैं तो हम भारतीयों को खुश होने की जरुरत नहीं, बल्कि उस खतरे से सचेत होने की है, जो तालिबान के रुप में भारत के सामने आ सकता है। तालिबान के सफाए के नाम पर अमेरिका बमबारी करके बेकसूर लोगों की जान भी ले रहा है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी को तालिबान ही नहीं तालिबान के विरोधी भी हजम नहीं कर पा रहे हैं। जब तक अमेरिका पाकिस्तान में मौजूद रहेगा, तालिबान को समर्थन मिलता रहेगा। पाकिस्तान के वजूद को बचाने के लिए यह बहुत जरुरी है कि अमेरिका के बगैर ही पाकिस्तान और भारत एक होकर तालिबान का मुकाबला करें।सलीम अख्तर सिद्दीक़ी170, मलियाना, मेरठ09837279840saleem_iect@yahoo.co.in

Saturday, February 14, 2009




सर्द हवाओं और बारिश के बीच हुआ एटूजैड ब्लॉगिंग पुस्तक का विमोचन और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम : ब्लॉगिंग विषय पर सेमिनार
10 फरवरी को चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय मेरठ तथा रवि पॉकेट बुक्स, मेरठ के संयुक्त तत्वाधान में ब्लॉगिंग पर होने वाले सेमिनार और इस अवसर पर रवि पॉकेट बुक्स से प्रकाशित ब्लॉगिंग विषय की भारत की पहली पुस्तक, जिसे मेरठ के इरशाद अली ने बहुत मेहनत और शोध के बाद लिखा था, का विमोचन होना था। समय तीन बजे का था। मेहमान अभी आये नहीं थे। तभी यकायक मौसम ने करवट बदली आसमान में घने बादल छा गये। सर्द हवाएं चलनी शुरु हो गयीं । दो बजे के आसपास बारिश भी शुरु हो गयी। ऐसा लगा जैसे बारिश हमारे आयोजन पर पानी फेरने के लिए आमादा थी। धीरे-धीरे तीन बज गए। इरशाद ने मुझसे फिक्रमंद लहजे में कहा सलीम भाई अब क्या होगा ? मैंने इस पर जवाब दिया कि हमने अपनी तरफ से पूरी मेहनत की है अब सब कुछ अल्लाह पर छोड़ दो। बारिश हल्की पड़ चुकी थी। तभी मेरे फोन की घंटी बजी। भड़ास के यशवंत सिंह का फोन था। उन्होंने मेरठ में आगमन की सूचना दी। तभी इर्दगिर्द के हरिजोशी और रिचा जोशी आते नजर आए। अब बारिश थम गयी थी। देखते ही देखते मेहमानों का तांता लग गया और साढ़े तीन बजे तक चौधरी चरणसिंह विश्वविद्याालय के उर्दू विभाग का प्रेमचंद सभागार पूरा भर चुका था। लेकिन अभी भी मेरी आंखें आजकल के ओमकार चौधरी का इंतजार कर रही थीं। ओमकार चौधरी से मेरा नाता तब से है, जब से उन्होंने मेरठ के सांध्य दैकिन प्रभात से अपने कैरियर का आगाज किया था। प्रभात से लेकर हरि भूमि तक उन्होंने हमेशा ही मेरा मार्गदर्शन किया और हर प्रकार का सहयोग और अवसर प्रदान किया। मेरठ के डीएलए अखबार से वे जब जुड़े तो उन्होंने मुझे सम्पादकीय पेज के लिखने के लिए प्रेरित किया। सबसे बड़ी बात यह कि ब्लॉग के प्रति मेरी जिज्ञासा को उन्होंने ही बढ़ाया। ऐने वक्त पर किसी बहुत ही आवश्यक कार्य के कारण वे सेमिनार में शिरकत नहीं कर सके इसका मुझे हमेशा दुख रहेगा।
बहरहाल, सेमिनार का आगाज हुआ। संचालन की जिम्मेदारी मेरी थी। सबसे बड़ी दुविधा की बात थी कि मुझे पहली बार किसी कार्यक्रम का संचालन करना था। इससे पहले मैं माइक पर बोलते हुए घबराता था। जाहिर है मैं नर्वस था। लेकिन शुरु की घबराहट के बाद मैंने अपने आप को संभाल लिया। उसके बावजूद मुझसे कुछ गलतियां हुईं, जिसका मुझे मालूम है। लेकिन जब मैंने अन्त में यह कहा कि मैं पहली बार संचालन कर रहा हुं तो सभी ने तालियां बजाकर मेरी हौसला अफजाई की। संचालन करते वक्त मुझे एहसास हुआ कि लिखने और बोलने में कितना फर्क है।
जब मैंने इर्द गिर्द के हरिजोशी को बोलने के लिए आमंत्रित किया तो वो बोलते हुई आनाकानी कर रहे थे लेकिन जब बोले तो खूब बोले। प्रभावशाली ढंग से बोले। उन्होंने ब्लॉग की महत्ता बताने के साथ ही कहा कि ब्लॉग से अभिव्यक्ति की आजादी में बढ़ोतरी हुई है।
भड़ास के यशवंत सिंह से मेरा परिचय ब्लॉग के माध्यम से ही हुआ था। जब पुस्तक के विमोचन और सेमिनार करने की प्लानिंग चल रही थी तो मैंने ऐसे ही यशवंत सिंह जी को फोन पर ही आमंत्रित किया। मुझे हैरत और खुशी हुई कि उन्होंने फौरन आने की मंजूरी दे दी। उन्होंने अपने सम्बोधन में ब्लॉग से होने वाले लाभ बताए और कहा कि कैसे ब्लॉग के माध्यम से अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने के साथ ही पैसा भी कमाया जा सकता है।
किताब के लेखक इरशाद अली ने संक्षेप में पुस्तक के बारे में बताया तो मेराज सलमानी साहब ने कहा कि वे ब्लॉग के माध्यम से अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचा रहे हैं और दूसरों के विचारों को जान रहे हैं। सेमिनार में ब्लागर्स में एक विशेष स्थान रखने वाले दिल की बात के डा0 अनुराग आर्य साहब को भी आना था लेकिन आयोजन स्थल से पहुंचने से पहले उन्हें फोन पर अपने किसी रिश्तेदार के साथ हुई दुर्घटना का समाचार मिला और वे वापस लौट गए। मनविंदर भिंभर ने बोलने से साफ मना कर दिया था लेकिन यशवंत सिंह उन्हें लगभग जबरदस्ती माइक तक लेकर आए।
सेमिनार में ऐसे लोगों ने भी अपने विचार रखे, जो ब्लॉगर नहीं हैं। उनमें प्रमुख थे मानवाधिाकर चेतना अखबार के सम्पादक धर्मवीर कटोच। उन्होंने कहा कि ब्लॉग की खास बात यह है कि इसमें अखबार की तरह रजिस्ट्रेशन आदि कराने की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें प्रकाशक, सम्पादक, मुद्रक आप खुद ही होते हैं।
सेमिनार के बाद चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एसके काक ने अपने व्यस्त कार्यक्रम को छोड़कर पुस्तक एटूजैड ब्लॉगिंग का विमोचन किया। उन्होंने अपने उदबोधन में रवि पॉकेट बुक्स के मनेष जैन को एक अछूते विषय पर पुस्तक प्रकाशित करने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि नयी तकनीक के साथ चलकर ही तरक्की की जा सकती है और ब्लॉगिंग आज की आवश्यकता है।
चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष डा0 असलम जमेशदपुरी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यदि इसी प्रकार से सेमिनार आदि आयोजित किए जाते रहे तो ब्लॉगिंग के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा। अंत में जफर गुलजार ने अतिथियों का आभार प्रकट किया। सेमिनार में नफीस अहमद, अदीबा अलीम, प्रभात कुमार रॉय, राजेष भारती, रिचा जोषी अभिषेक अग्रवाल, अलाउद्दीन खां, सुधाकर आषावादी, दीपेष जैन आदि की उपस्थिति उल्लेखीय रही।
रवि पॉकेट बुक्स के मनेष जैन के उल्लेख के बगैर यह रिपोर्ट अधूरी रह जायेगी। मनेष जैन हमेशा ही नए लोगों को मौका देने के जाने जाते रहे हैं। वे अपने प्रकाशन से एटूजैड कम्प्यूटर बुक्स सीरीज जनरल पुस्तकें प्रकाशित करते हैं। इसके अलावा रवि पब्लिकेशन्स से टेक्निकल पुस्तकों का प्रकाशन करते हैं। उनके यहां से प्रकाशित होने वाली पुस्तकें उच्च कोटि की होती हैं।

Tuesday, February 3, 2009

लो खत्म हुई प्रेम कहानी

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम को चन्द्रमोहन कहें या चांद मौहम्मद। उनकी लगभग पूर्व पत्नि हो चुकीं अनुराधा को भी अनुराधा या फिजा कहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इन दोनों के साथ वही कहावत चरितार्थ हो गयी है कि 'धोबी का कुत्ता घर का रहा न घाट का÷। चन्द्रमोहन हरियाणा के डिप्टी सीएम थे। उन्हें हरियाणा के बाहर बहुत कम लोग ही जानते होंगे। लेकिन उनके प्रेम प्रकरण ने उन्हें अंतररष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्व तो कर ही दिया है। यहां भी एक कहावत चरितार्थ होती कि ÷बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा' दो महीने बाद ही चन्द्रमोहन के प्रेम का खुमार भी उतर गया और यह कहने वाले कि उन्हें बचपन से इस्लाम आकृषित करता रहा है, इस्लाम से प्रेम की कलई भी खुल गयी। जज्बात में आकर तख्त-ओ-ताज ठुकराने वाले चन्द्रमोहन को दो महीने में ही इस बात का एहसास हो गया कि जिंदगी सिर्फ जज्बातों के सहारे नहीं गुजारी जा सकती, पैसों की जरुरत पड़ती है। चन्द्रमोहन जैसा शख्स तंगदस्ती में कैसे दिन गुजार सकता है, जो ऐशोआराम में पला-बढ़ा हो। चन्द्रमोहन एक कमजोर इच्छाशक्ति वाले शख्स साबित हुए हैं। अनुराधा ने चन्द्रमोहन को उस स्थिति में अपनाया था, जब भजनलाल का पूरा परिवार चन्द्रमोहन को बेदखल कर चुका था। यदि अनुराधा को पैसे की चाहत होती तो वो चन्द्रमोहन से उनके बेदखल होते ही किनारा कर सकती थी। लेकिन जो अनुराधा अपने चन्द्रमोहन की बेवफाई को लेकर आसमान सिर पर उठा रही है, उसे भी यह सोचना चाहिए था कि जो शख्स अपनी उस पत्नि का नहीं हुआ, जिसके साथ उसने जिंदगी का लम्बा सफर तय किया है, उसका कैसे हो सकता है। अनुराधा ने भी तो एक औरत का दिल दुखाकर चन्द्रमोहन को हासिल किया था।
मुस्लिम उलेमाओं ने इस मुद्दे पर सही स्टैण्ड नहीं लिया है। जब दोनों ने अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल करके शादी करने की बात की थी तब ही उनकी नीयत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। इस्लाम में दूसरी शादी किन्हीं अहम वजहों से और सशर्त ही की जा सकती है। इनमें संतान न होने, पत्नि का अत्याधिक बीमार होना वजह हो सकती है। युद्व में हुईं विधवाओं को सहारा देने कि लिए भी एक से अधिक शादी का प्रावधान रखा गया था। इसमें भी शर्त यह है कि पत्नि दूसरी शादी की इजाजत दे और पति दोनों पत्नियों को बराबरी का दर्जा दे। क्या चन्द्रमोहन ने इस सब बातों का ख्याल रखा था ? क्या उन्होंने अपनी पहली पत्नि से इजाजत ली थी ? महज दूसरी शादी करने या वासना पूर्ति करने के लिए इस्लाम दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं देता। चन्द्रमोहन के मामले में नीयत इस्लाम धर्म को अपनाना नहीं बल्कि हिन्दू कानून के तहत शादी में आ रही रुकावट को दूर करना था। उलेमा पहले भी एक फतवे में कह चुके हैं कि केवल शादी करने के लिए इस्लाम कबूल करना सही नहीं है। सवाल यह है कि ऐसे में क्या उलेमाओं को दोनों को इस्लाम में दाखिल होने की इजाजत देनी चाहिए थी ? उलेमाओं को तो तभी दोनों को इस्लाम में दाखिल होने की इजाजत नहीं देनी चाहिए थी, जब उन्होंने महज शादी के लिए इस्लाम अपनाने का नाटक किया था। अब जब दोनों की बीच दरार आ गयी है तो उलेमाओं ने फिर से शरीयत की बातें शुरु कर दी हैं। शरीयत की बात तब आती है, जब कोई सही मायनों में इस्लाम की शरण में आया हो। अभी तो यही नहीं पता कि असलियत क्या है ? दोनों ने सही मायनों में इस्लाम कबूल किया है या नहीं ? यदि इस्लाम कबूल किया है तो किस मुफ्ती के सामने किया है ? निकाह किस मौलाना ने पढ़वाया ? गवाह कौन लोग थे ? वकील किसे बनाया गया था ? यदि निकाह हुआ है तो निकाहानामा कहां है ? सच्चाई सबके सामने है। अनुराधा आज भी मांग में सिंदूर डाले नजर आती हैं तो चन्दमोहन कलाई पर कलावा बांधते हैं। इस संवेदनशील और इस्लाम को मजाक समझे जाने वाले मु्द्दे पर उलेमाओं को संयम से काम लेना चाहिए। खामोशी अख्तियार करना ही बेहतर हो सकता है। दो लोगों के बीच की प्रेम कहानी में बेवजह इस्लाम को घसीटना इस्लाम की तौहीन के अलावा कुछ नहीं है। उलेमाओं को कुछ ऐसा प्रावधान करना चाहिए कि केवल शादी, खासकर दूसरी शादी के लिए इस्लाम कबूल करने वाले लोग इस्लाम को केवल शादी करने का साधन न बना सकें।

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