फ़िरदौस ख़ान सर्वश्रेष्ठ ब्लॊगर पुरस्कार से सम्मानित
नई
दिल्ली. पत्रकार फ़िरदौस ख़ान को साहित्यिक विषयों पर लेखन के लिए
सर्वश्रेष्ठ ब्लॊगर पुरस्कार से सम्मानित गया है. यह पुरस्कार उन्हें
हिन्दी दिवस के मौक़े पर ख़बरिया चैनल एबीपी न्यूज़ द्वारा रविवार को नई
दिल्ली के पार्क होटल में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया. उनका
चयन एबीपी के ख़ास मेहमान सुधीश पचौरी, डॉ. कुमार विश्वास, प्रसून जोशी और
नीलेश मिश्र ने किया.
ग़ौरतलब
है कि फ़िरदौस ख़ान को लफ़्ज़ों के जज़ीरे (द्वीप) की शहज़ादी के नाम से जाना
जाता है.वह पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. वह कई भाषाओं की जानकार हैं.
उन्होंने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल
तक सेवाएं दीं. उन्होंने अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का संपादन भी किया.
ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर उनके कार्यक्रमों का
प्रसारण होता रहा है. उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनलों के लिए
भी काम किया है. वह देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और
समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लिखती रही हैं.उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल
संपादन और लेखन के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है. वह
कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी वह शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक
उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली.उर्दू, पंजाबी,
अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में उनकी ख़ास दिलचस्पी है. वह मासिक
पैग़ामे-मादरे-वतन की भी संपादक रही हैं और मासिक वंचित जनता में संपादकीय
सलाहकार हैं. वह स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं. 'स्टार न्यूज़
एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' नाम से उनके दो न्यूज़ पॉर्टल भी हैं. वह
बलॉग भी लिखती हैं. उनके कई बलॉग हैं. फ़िरदौस डायरी और मेरी डायरी उनके
हिंदी के बलॉग हैं. हीर पंजाबी का बलॉग है. जहांनुमा उर्दू का बलॉग है और द
पैराडाइज़ अंग्रेज़ी का बलॉग है.
वह
रूहानियत में यक़ीन रखती हैं और सूफ़ी सिलसिले से जुड़ी हैं. उन्होंने
सूफ़ी-संतों के जीवन दर्शन पर आधारित एक किताब 'गंगा-जमुनी संस्कृति के
अग्रदूत' लिखी है, जिसे साल 2009 में प्रभात प्रकाशन समूह ने प्रकाशित किया
था. वह अपने पिता स्वर्गीय सत्तार अहमद ख़ान और माता श्रीमती ख़ुशनूदी ख़ान
को अपना आदर्श मानती हैं. क़ाबिले-ग़ौर
है कि सबसे पहले फ़िरदौस ख़ान ने ही कांग्रेस के उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी
को ’हिंदुस्तान का शहज़ादा’ कहकर संबोधित किया था, तभी से राहुल गांधी के
लिए ’शहज़ादा’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है.
उनकी
शायरी किसी को भी अपना मुरीद बना लेने की तासीर रखती है. मगर जब वह हालात
पर तब्सिरा करती हैं, तो उनकी क़लम तलवार से भी ज़्यादा तेज़ हो जाती है.
जहां उनकी शायरी में इश्क़, समर्पण, रूहानियत और पाकीज़गी है, वहीं लेखों
में ज्वलंत सवाल मिलते है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर कर देते हैं. उनका
कहना है- लिखने से पहले लफ़्ज़ों को जीना पड़ता है. तभी तो उनमें इतना असर
पैदा होता है कि वो सीधे दिल में उतर जाते हैं, रूह की गहराई में समा जाते
हैं. अपने बारे में वह कहती हैं-
मेरे अल्फ़ाज़, मेरे जज़्बात और मेरे ख़्यालात की तर्जुमानी करते हैं, क्योंकि मेरे लफ़्ज़ ही मेरी पहचान हैं.
सम्मानित
हुए अन्य ब्लॉगरों में दिल्ली की रचना (महिलाओं के मुद्दों पर लेखन),
दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी (पर्यावरण विषय पर लेखन), दिल्ली के मुकेश
तिवारी (राजनीतिक मुद्दों पर लेखन), दिल्ली के प्रभात रंजन (हिन्दी
साहित्य और समाज पर लेखन) अलवर के शशांक द्विवेदी (विज्ञान के विषय पर
लेखन), मुंबई के अजय ब्रम्हात्जम (सिनेमा, लाइफ़ स्टाइल पर लेखन), इंदौर के
प्रकाश हिंदुस्तानी (समसामायिक विषयों पर ब्लॉग), फ़तेहपुर के प्रवीण
त्रिवेदी (स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर ब्लॉग) और लंदन की शिखा
वार्ष्णेय (महिला और घरेलू विषयों पर लेखन) शामिल हैं.
फिरदौस जी को बधाई।
ReplyDeleteहम आपके तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं...
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