सलीम अख्तर सिद्दीकी
'हमारी अन्जुमन' नाम के एक कम्यूनिटी ब्लॉग की सदस्यता मुझे भी फराहम की गयी थी। पिछले दिनों कई पोस्ट उस पर डालीं। अच्छा रेस्पॉन्स मिला। अभी पिछले दिनों इस ब्लॉग मैंने एक पोस्ट 'पाकिस्तान में सिखों की हत्याओं का विरोध करें भारतीय मुसलमान' शीर्षक से डाली थी। उस पोस्ट के बाद पता नहीं क्या हुआ कि अपने आप को ब्लॉग का 'सलाहकार' बताने वाले मौहम्मद उमर कैरानवी साहब ने मेरी पोस्ट पर कमेंट करने वालों को सलाह दे डाली कि 'हमारी अन्जुमन' के बजाय सलीम साहब के ब्लॉग 'हकबात' पर ही कमेंट करें। यह भी लिखा गया कि क्योंकि सलीम अख्तर सिददीकी एक ही पोस्ट को कई ब्लॉग पर पब्लिश कर देते हैं, इससे ब्लॉग एग्रीग्रेटर नाराज हो जाते हैं, जिससे हमारी अन्जुमन की सदस्यता को ब्लॉग एग्रीग्रेटर खत्म कर सकते हैं। कैरानवी साहब ने मेरी गलती की माफी भी 'चिट्ठा जगत' और 'ब्लॉगवाणी' से मांग डाली। इसी के साथ मुझे बेआबरु करके 'हमारी अन्जुमन' से निकाल दिया गया। कैरानवी साहब से कुछ सवाल हैं। पहला तो यह कि क्या किसी पूर्व सूचना के किसी सदस्य की सदस्यता खत्म करना सही है ? दूसरा यह कि उन्हें यह किसने बता दिया कि एक से अधिक ब्लॉग पर एक ही पोस्ट को डालना गलत है ? यदि ऐसा है भी तो एग्रीग्रेटर मेरी सदस्यता से खत्म करेंगे, उस ब्लॉग की क्यों करेंगे, जिस पर मैंने पोस्ट डाली है ? मेरे पास किसी एग्रीग्रेटर की कोई चेतावनी आज तक नहीं आयी है। मेरे पास 'मौहल्ला', 'भड़ास', 'हिन्दुस्तान का दर्द' आदि कई ब्लॉग की सदस्यता है। पूर्व में इन सभी ब्लॉगों पर एक साथ पोस्ट डाली है। यानि अपने समेत चार ब्लॉग पर एक साथ एक ही पोस्ट डाली है। अक्सर ऐसा भी होता है कि कोई ब्लॉगर मेरी पोस्ट को मेरे ब्लॉग या किसी न्यूज पोर्टल से लेकर अपने ब्लॉग पर डालते हैं। कैरानवी साहब यह भी जान लें कि मैं 'हमारी अन्जुमन' जैसे ब्लॉग का मोहताज नहीं हूं। मैं 'विस्फोट', 'बी4एम', 'मौहल्ला लाइव', 'स्टार न्यूज एजेंसी', 'डेटलाइन इंडिया', 'मीडिया मंच', 'दैटस हिन्दी' और 'प्रवक्ता' जैसे न्यूज पोर्टलों सहित देश कई समाचार-पत्रों में भी लगातार लिखता रहता हूं और प्रमुखता के साथ छपता भी हूं। कैरानवी साहब ने लिखा है कि मैं कमेंट का जवाब नहीं देता। पहली बात तो यह है कि हर कमेंट का जवाब दिया जाए, यह जरुरी नहीं है। दूसरी यह कि यदि हर कमेंट का जवाब देने बैठ जाएंगे तो रोजी-रोटी का जुगाड़ कैसे होगा ? क्योंकि ब्लॉगिंग पैसे के नाम पर कुछ देती नहीं, बल्कि कुछ ले ही लेती है। शायद उमर कैरानवी साहब किसी ऐसी जगह जॉब करते हैं, जहां पर काम कम और ब्लॉगिंग करने का ज्यादा मौका फराहम हो जाता होगा। बंदे के साथ ऐसा नहीं है। उमर साहब ने कहा है कि 'आपकी पोस्ट 'हमारी अन्जुमन' के मिजाज की नहीं होती।' यदि मेरी पोस्ट आपके मिजाज की नहीं होती तो यह पहले साफ करना था कि किस 'मिजाज' का लेखन आप अपने ब्लॉग पर पब्लिश करेंगे ? सबसे अहम सवाल यह है कि 'पाकिस्तान में सिखों की हत्याओं का विरोध करें भारतीय मुसलमान' शीर्षक वाली पोस्ट के बाद ही उमर साहब को यह क्यों लगा कि मेरी पोस्ट 'हमारी अन्जुमन' के मिजाज की नहीं होती ? उस पोस्ट में ऐसा क्या गलत था, जिसका बहाना बनाकर मेरी सदस्यता खत्म की गयी ? क्या इससे पहले की मेरी सभी पोस्ट 'हमारी अन्जुमन' के 'मिजाज' की थीं ? उमर साहब को मैं यह बताना चाहता हूं कि मैं हमेशा ही मजलूमों के पक्ष में लिखता रहा हूं। मजलूम गुजरात का मुसलमान है या पाकिस्तान का हिन्दू या सिख हैं, सिंगूर और नन्दीग्राम के किसान हैं, या मनसे और बाल ठाकरे के सताए हुए बिहारी हैं, इससे मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद इसीलिए संघ परिवार के हमेशा निशाने पर रहता हूं तो मेरे वामपंथी दोस्त भी नाराज हो जाते हैं। अब उमर कैरानवी जैसे लोगों को भी लगता है कि में उनके 'मिजाज' का नहीं हूं।
सवाल मौजूं है.
ReplyDeleteलगता है कि मुसलमानों के सिखों की हत्या के विरोध की बात पसंद नहीं आई.
लेकिन क्यों? बड़ी अजीब बात है.
ऐसी कोई बात नहीं है यार!
ReplyDeleteमैं हमारी अंजुमन के सारे सदस्यों की ओर से बोलता हूं कि हमारी अंजुमन शान्ति की स्थापना के लिए क़ाएम की गई है। उसका कोई सदस्य आतंकावादी हमलों को पसंद नहीं करता चाहे आतंकवाद हिन्दू हो या मुसलमान।
आपको उनका 'मिजाज' पता नहीं? :) क्या बात करते हो सा'ब!
ReplyDeleteभाई सलीम अखतर साहिब आप जानते है कि हमारी अंजुमन एक धार्मिक ब्लौग है। और हर ब्लौगर का अपना एक उद्देश्य होता है सदस्य को उसकी पाबंदी करनी चाहिए। यह मामूली बात है, मैं समझता हूं इस पर एक पोस्ट लिखने की ज़रूरत नहीं थी। आप ठंडे दिल से खूद सोचें। सलीम भाई इसमें आपकी कोई बेइज्जती की बात नहीं है।
ReplyDeleteउनका मिजाज़ तो बच्चो से पूछते तो भी पता चल जाता..
ReplyDeleteवैसे पाकिस्तान के मुसलमान कभी नहीं चाहेंगे कि हिन्दुस्तान के मुसलमान उनके बीच बोले.. हमारी अंजुमन वाले क्यों नाराज़ हुए वे तो भारत के मुसलमान है..
सलीम भाई, जहाँ तक मैं समझता हूँ आप एक बहुत ही अच्छे लेखक और सम्मानित ब्लॉगर है इसमें कोई दो राय नहीं है. 'हमारी अंजुमन' की गाईड लाइंस ब्लॉग के उपरी तरफ दी गयी है, जिसको आपको पढ़ लेना चाहिए. हमारी अंजुमन का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि इस्लाम का पैगाम वैकल्पिक मीडिया के इस माध्यम अर्थात ब्लॉग के माध्यम से जन-जन तक पहुंचे.
ReplyDeleteऔर रही बात कैरान्वी भाई की तो वो आपका बहुत सम्मान करते हैं. उन्होंने बताया है कि उन्होंने आपके मेल (ब्लॉग-मेल) पर इत्तिला दी थी जिसका आपने जवाब भी नहीं था. और यह भी आपसे हमारा तय था कि सामाजिक ब्लॉग भी बनाने का प्रस्ताव था जिस पर चर्चा करना अभी बाकी थी...अभी भी यह विकल्प खुला है और हम हमारी अंजुमन नामक सामाजिक ब्लॉग आपकी सरपरस्ती में चलाना चाहते हैं...
सलीम साहब आप बड़े सहाफ़ी हैं..अंजुमन और आपके मुतल्लिक जहाँ तक मुझे इल्म है सभी लोगों के पास मेल घूमती रही और आखिर में जब आपका कोई जवाब नहीं आया ..और करीब सभी मिम्बरों की सहमती ले ली गयी तब आपको उसकी सदस्यता से बाहर किया गया...
ReplyDeleteमेरा इस मामले में यही कहना था की ब्लॉग के नाम के साथ जो एक सतर लिखी होती है इस्लाम धर्म का सामुदायिक चिठ्ठा उसकी जगह मुसलमानों कर दिया जाए...या फिर गर इस्लाम का ही रखना है तो सिर्फ इस्लाम से सम्बंधित पोस्ट ही यहाँ हो.बस इतनी सी बात थी.
आप नाहक दिल से ले बैठे....क्या आप किसी अंजुमन के मोहताज हैं...कतई नहीं तो फिर ये पोस्ट क्या किसी खुन्नस की पैदावार है...क्या आपको इस के पहले कोई खबर न थी ..क्या ये आपकी लापरवाही नहीं कि .आप कभी इधर आते भी नहीं..और सफत साहब क्या गलत कह रहे हैं कि मोडरेटर का अपना मिज़ाज होता है..
चलिए अच्छी बात है कि आप इन आंतकपरस्तों के मिजाज से बहुत जल्दी वाकिफ हो गये. सिद्धकी साहब, इन लोगों का न तो धर्म से कुछ लेना देना है और न ही देश और राष्ट्र से.. ये लोग मिलकर यहाँ कोई बहुत गहरा खेल रहे हैं..जो कि देर सवेर सामने आ ही जाएगा.
ReplyDeletesiddiqui sahab, yahi antar hai ek bhartiya musalman aur talibani musalman ke beech. sach likne ke liye aapko badhai.
ReplyDelete:)
ReplyDeletenice
ReplyDeleteSaleem sir yahi to Hindustaan ki mushqil hai yahan koi Islam ka paigaam failana chahta hai to koi Sanatan dharm ka sandesh.. koi insaniyat ka mazhab nahin samajhna chahta.. aur jisko galat kah do wahi dushman..
ReplyDeleteसलीम साहब आप बड़े सहाफ़ी हैं..अंजुमन और आपके मुतल्लिक जहाँ तक मुझे इल्म है सभी लोगों के पास मेल घूमती रही और आखिर में जब आपका कोई जवाब नहीं आया ..और करीब सभी मिम्बरों की सहमती ले ली गयी तब आपको उसकी सदस्यता से बाहर किया गया...
ReplyDeleteरही बात कैरान्वी भाई की तो वो आपका बहुत सम्मान करते हैं. उन्होंने बताया है कि उन्होंने आपके मेल (ब्लॉग-मेल) पर इत्तिला दी थी जिसका आपने जवाब भी नहीं था. और यह भी आपसे हमारा तय था कि सामाजिक ब्लॉग भी बनाने का प्रस्ताव था जिस पर चर्चा करना अभी बाकी थी...अभी भी यह विकल्प खुला है और हम हमारी अंजुमन नामक सामाजिक ब्लॉग आपकी सरपरस्ती में चलाना चाहते हैं...
ReplyDeleteखुदा खैर करे .
ReplyDeleteGuzaarish hai ki jo hua so hua, meharbaani karke ab zyada gand na failayen. YAh sab achchha nahin lagta. is baat ko khamoshi ke sath aapas me deal karen ya khamosh rahen. Aap khud samajhdar hain fir bhi?
ReplyDeleteजनाब अन्जुमन के दोस्त आपको बहुत कुछ बता गये, मेरे से इतने सवाल कर दिये जिनके जवाब के लिये मुझे किताब लिखनी पड जायेगी, जो फिलहाल सम्भव नहीं, खेर हमारी अपनी बातें होती रहेंगी लेकिन खास सिखों वाली पोस्ट की ओर बहुतों का धयान दिला रहे हो, भाई लोग उस विषय पर अपनी रोटियां सेक रहे हैं, उस पोस्ट पर मैंने तुरन्त आपकी पोस्ट पर और आपके ब्लाग पर भी कमेंटस दिया था, याददहानी के लिये पेश है
ReplyDeleteMohammed Umar Kairanvi said...
रजिया जी से सहमत, पाकिस्तान हमेशा हमारे लिये शर्मिन्दगी का कारण रहा है, हम पाकिस्तान में सिखों सहित इन्सानियत की हत्याओं का विरोध करते रहे हैं, फिर से करते हैं, हमेशा करते रहेंगे, हर तरह करते रहेंगे
''पाकिस्तान में सिखों की हत्याओं का विरोध करें भारतीय मुसलमान''
http://haqbaat.blogspot.com/2010/02/blog-post_23.html
बहुत ही गैर जिम्मेदाराना हरकत है ये....या तो ये कहें कि पाकिस्तान मैं आतंकवाद के खिलाफ भी ये लिखने नहीं देते हैं तो क्या हिंदुस्तान मैं होने वाले किसी ऐसी घटना पर ततो कक्या लिखने देंगे....इन लोगों की तो मानसिकता ही ठीक नहीं...खैर आप तुम्हारी अंजुमन पर लिखों या हमारी अंजुमन पर हम पढने आते रहैंगे...
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