जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी 1984 के लोकसभा में चुनाव केवल दो सीटें जीतकर लगभग मर ही चुकी थी। लेकिन फरवरी 1986 में बाबरी मस्जिद पर लगा ताला खुलने पर आखिरी सांसें गिन रही भाजपा को जैसे ’संजीवनी’ मिल गयी थी। संघ परिवार ने गली-गली रामसेवकों की फौजें तैयार करके नफरत और घृणा का ऐसा माहौल तैयार किया था कि हिन्दुस्तान का धर्मनिरपेक्ष ढांचा चरमरा कर रह गया। पूरा देश साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस गया था। चुनाव दर चुनाव भाजपा की सीटें बढ़ती रहीं। 1998 के चुनाव में भाजपा की सीटें 188 हो गयीं। भाजपा ने फिर से केन्द्र में सरकार बनायी, जो केवल 13 महीने ही चल सकी। लेकिन 1999 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा की सीटें नहीं बढ़ सकीं। वह 188 पर ही टिकी रही। तमामतर कोशिशों के बाद भी पूर्ण बहुमत पाने का भाजपा का सपना पूरा नहीं हो सका। 1999 में भाजपा ने राममंदिर, धारा 370 और समान सिविल कोड जैसे मुद्दों को सत्ता की खातिर कूड़े दान में डाल कर यह दिखा दिया कि वह अब सत्ता से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकती। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा को 2 से 188 सीटों तक लाने का श्रेय आडवाणी को ही जाता है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने में उनकी कट्टर छवि उनकी दुश्मन बन गयी। लेकिन भाजपा के पास अटल बिहारी वाजपेयी के रुप में एक ’मुखौटा’ मौजूद था। इसी मुखौटे को आगे करके बार-बार के चुनावों से आजिज आ चुके छोट-बड़े राजनैतिक दलों का समर्थन लेकर गठबंधन सरकार बनायी। भले ही भाजपा ने तीनों मुद्दों को छोड़ दिया हो, लेकिन संघ परिवार ने पर्दे के पीछे से अपना साम्प्रदायिक एजेंडा चलाए रखा। फरवरी 2002 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में जो कुछ किया, वह उसी एजेंडे का हिस्सा था। नरेन्द्र मोदी ’हिन्दू सम्राट’ हो गए।2004 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा ने साम्प्रदायिक कार्ड खेला, जो नहीं चल सका था। हालांकि तब कहा गया था कि भाजपा नरेन्द्र मोदी की वजह से हारी है, लेकिन भाजपा ने वरुण को भी दूसरा नरेन्द्र मोदी बनाने की कोषिष की भाजपा ने 2004 की हार से सबक नहीं लेते हुए एक बार फिर साम्प्रदायिक कार्ड खेलकर सत्ता पर काबिज होना चाहा। नरेन्द्र मोदी को स्टार प्रचारक बता कर उन्हें पूरे देष में घुमाया गया। वरुण को भी हिन्ुत्व का नया पुरोघा मान लिया गया। लेकिन देष की जनता कुछ और ही सोचे बैठी थी। देष की जनता ने राजग सरकार में देख लिया था कि ‘मजबूत नेता, निर्णायक सरकार’ का नारा लगाने वाले न तो ‘मजबूत’ हैं और न ही ‘निर्णायक‘। चुनाव हारते ही अपने को मजबूत बताने वाले आडवाणी विपक्ष के नेता बनने से गुरेज कर रहे हंै। यानि उस जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, जिसकी भाजपा को सबसे ज्यादा जरुरत है। ये ठीक है कि अब आडवाणी प्रधानमंत्री शायद ही बन सकें, लेकिन क्या भाजपा को मजबूती देना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। कांगेस के युवा चेहरे राहुल गांधी ने शालीन तरीके से चुनाव प्रचार करके देष की जनता को बताया कि देष राम नाम से नहीं विकास से दुनिया की ताकत बनेगा। भाजपा को गलतफहमी हो गयी थी कि देष की जनता का धर्म के नाम पर ध्रवीकरण किया जा सकता है। लेकिन ये इक्सवीं सदी है। 1992 और 2009 में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। जनता ने देख लिया था कि धर्म के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने के अलावा कुछ नहीं किया जाता। इस वुनाव ने भाजपा को सबक दिया है कि अब धर्म के नाम पर जनता को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। आम जनता को रोटी, कपड़ा और मकान पहले चाहिए, राम मंदिर या राम सेतु नहीं। इस चुनाव के जरिए देष की जनता ने उन राजनैतिक दलों को भी आईना दिखाया है, जो पांच-दस सीटें लेकर प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। बसपा सुप्रीमो को भी दलितों ने एहसास करा दिया है वे केवल उन्हें सत्ता तक पहुंचाने की सीढ़ी नहीं बनेेंगे। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान को भी मुसलमानों ने बता दिया है कि अब भाजपा का भय दिखाकर उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। देष की जनता ने बाहुबलियों को बाहर का रास्ता दिखा कर हिम्मत का काम किया है। वाम दलो को भी पता चल गया होगा कि समाजवाद का नारा लगाकर गरीब किसानों की बेषकीमती जमीनों को पूंजीपतियों को सौंपने का क्या अन्जाम होता है। नन्दी ग्राम और सिंगूर का खून रंग लाया है। लेकिन यह चुनाव यह भी बताता है कि अब एक आम आदमी लोकसभा में जाने का ख्वाब न पाले। क्योंकि इस बार संसद में पहुंचने वाले ज्यादतर सांसद करोड़पति या अरबपति हैं। एक बात और। सचिन पायलट, ज्योतिरादत्य सिंधिया, जयन्त चैधरी, अखिलेष यादव, वरुण और प्रिया दत्त आदि जैसे युवाओं को दिखाकर यह प्रचारित किया जा रहा है कि अब युवा आगे आ रहा है। सवाल यह है कि इन लोगों का अपना क्या है। ये युवा कितने जमीन से जुड़े हैं। इनको उस वर्ग की दुख-तकलीफों का कितना ज्ञान है, जिन्होंने इनको चुन कर भेजा है। क्या इनकी महज इतनी काबिलियत नहीं है कि ये राजनेताओं के चश्म ओ चिराग है। क्या इस बात की जरुरत नहीं है कि राजनैतिक पार्टियां ऐसे युवाओं को टिकट देकर अपने खर्च पर चुनाव लड़वाकर संसद में भेजें जो आम आदमी की तकलीफों को समझकर उनको दूर करे।
170, मलियाना, मेरठ।
Monday, May 18, 2009
देश ने नफरत की राजनीति को नकारा
सलीम अख्तर सिद्दीकी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
You are absolutely correct. BJP is Using Sri Ram as their agenda in the country of RAM Rahim.
ReplyDeleteBut One must think why this party increased her seat from 2 to 188 or 159 or whatever. This is just because of the dual policies of Ruling parties i.e. INC (Indian National Congress).
This party is the root cause of present condition of nation.
This party for the sake of her vote bank Used the Indian Mushlims . This party Used them by giving small lollypops of Haz Subsidy, Aid to Madershe, Wrong rectification in the Study material for the minorities, to the minorities.
Nobody can see his/her negligence for long. Therefore, some persons come forward from majority to save the rights of the majority of the nation.
This is the cause of evolution of RSS and subsequently BJP.
Now the situation is very grim in our nation and this can not be solved by criticizing BJP or RSS organization.
For this the ruling party needs to work on Development, Security issues and take the majority of this nation in his/her faith.
The minority also need to change their mindset , they should not celebrate when our nation looses a match against the minority driven country. This is a very simple example why Majority of this nation is not having faith on the minority.
A big brain washing is needed which can only be done by the government by providing equal security to all religion. Always advocating the rights of minorities is not Secularism. Giving all religion similar rights is Secularism.
So, Dear friend, Now We should think about our nation only not about the religion and I strongly say it should be bilateral... This is the only solution....
जब कॉंग्रेस हारी थी तब देश की जनता ने नफरत को स्वीकारा था?!
ReplyDeleteअस्वीकार भी जोरदार है पूरा 120 सीटें देकर अस्वीकार किया :)
बेहतर लिखा सलीम भाई आपने आपका नज़रिया इतना साफ़ है की चीजें आपने आप समझ आ जाती हैं और यकीन करिए आपके लेख से बहोत से लोगों को लिखने प्रेरणा मिलती है निश्चित ही देश बदल रहा है और लोगों को अब मज़बूत और बेहतर सरकार चाहिए.और जनता अब मोल-भाव करने वाले दलों से सावधान हो रही है.
ReplyDeleteआपका हमवतन भाई..गुफरान...अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद.
सिद्दकी साहब ! क्षमा करे, जानता हूँ कि इंसान अपने दिल के अन्दर पल रही घृणा/ उत्साह को जब बाहर निकालता है तो वह एक पक्षीय या यूँ कहूं कि स्वकेंद्रित ही ज्यादा रहता है लेकिन मत भूले कि २००४ के चुनाव से पहले भी इसी भाजपा ने प्रेम दर्शाने की राजनीती भी खेली थी, मगर परिणाम क्या रहा, सभी जानते है ! उस वक्त भी एक ख़ास वर्ग के मतदाता ने ही हराया था और इस बार भी ! फर्क सिर्फ यह है कि उस बार उनके वोट क्षेत्रीय दलों को पड़े थे और इस बार कांग्रेस को ! जैसा कि आपने कहा कि १९८४ में इसे सिर्फ २ सीटे मिली थी, तो मेरा कहना यह है कि तब तक बाबरी मस्जिद, गुजरात इत्यादि तो नाहे हुए थे फिर क्यों इस ख़ास किस्म के मतदाता ने उसे उस वक्त वोट नहीं दिया ? इस पार्टी के अगर २-४ जोकर अपने फायदे के लिए मंच से अनाप सनाप बक देते है तो इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि अल्पसंख्यको को वे लोग खा जायेंगे !वास्तविकता यह है कि वह ख़ास किस्म का मतदाता सिर्फ चापलूशी पसंद है, बस और कुछ नहीं, विकास की बात उसके लिए एक गौण विषय है, अगर वह विकास पसंद होता तो आजादी के ६३ सालो बाद भी आज उसकी ऐसी दुर्दशा नहीं होती !
ReplyDelete