Monday, May 30, 2016

क्या एक-दूसरे का सहारा बन पाएंगे मुलायम-अजीत?

सलीम अख्तर सिद्दीकी
लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक बियाबान में भटक रहे अजीत सिंह किसी ठौर की तलाश में हाथ-पांव मार रहे हैं। चंद दिन पहले खबरें थीं कि अजीत सिंह अपनी पार्टी लोकदल का भाजपा में विलय कर सकते हैं। कहा जाता है कि लोकदल के अधिकतर जाट नेताओं का मानना था कि अजीत सिंह को भाजपा के साथ जाना चाहिए। लेकिन लोकदल का भाजपा में विलय करने का मतलब था, अपना वजूद खो देने के साथ मुसलिम वोटों का छिटक जाना। लोकसभा चुनाव में जाटों ने नल का हत्था छोड़कर कमल का फूल पकड़ लिया था। नतीजा यह निकला कि न सिर्फ बागपत से अजीत सिंह से हारे, बल्कि मथुरा से उनके बेटे जयंत चौधरी का भी पत्ता साफ हो गया।
दरअसल, एक तो मुजफ्फरनगर दंगे ने जाट-मुसलिम समीकरण को तहस-नहस किया तो उधर नरेंद्र मोदी के तूफान में लोकदल के परखच्चे उड़ गए थे। अब जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तो अजीत की चिंता है कि कैसे अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हासिल की जाए? पहले वह जदयू के साथ जाना चाहते थे। लेकिन यह बात कोई भी समझने में नाकाम था कि बिहार तक सिमटी जदयू से मिलकर कैसे अजीत सिंह दोबारा अपना खोया जनाधार पा सकते हैं? अब फिलहाल खबरें हैं कि अजीत सिंह सपा से तालमेल करके विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। अभी तालमेल पर मुहर नहीं लगी है, लेकिन सवाल उभर रहा है कि क्या अजीत सिंह और मुलायम सिंह यादव एक-दूसरे का सहारा बनेंगे? इस तालमेल पर मुजफ्फरनगर दंगे की छाया न पड़े, ऐसा संभव नहीं है। मुलायम सिंह यादव अगर समझते हैं कि अजीत सिंह से तालमेल करके सपा को जाटों के वोट मिल जाएंगे, तो शायद वे गलत समझ रहे हैं। इसी तरह अजीत सिंह को भी इस भुलावे से बचना होगा कि सपा का मुसलिम वोट लोकदल को मिल जाएगा। एक तल्ख हकीकत यह है कि भले ही लोकदल नेतृत्व भाजपा से बचना चाहता है, लेकिन जाट वोटर भाजपा के पक्ष में हैं। इस वक्त अजीत सिंह अपनी राजनीतिक कॅरियर की सबसे बड़ी दुविधा में फंसे हैं। मुजफ्फरनगर दंगे ने उनके राजनीतिक भविष्य पर ग्रहण लगा दिया है।

Friday, May 27, 2016

मोदी युग में नेहरू की तारीफ!

सलीम अख्तर सिद्दीकी
ये तानाशाही नहीं तो और क्या है? मध्य प्रदेश के बड़वाणी जिले के आईएएस अधिकारी और बड़वानी के जिला कलेक्टर अजय सिंह गंगवार ने यह गलती कर दी  कि उन्होंने फेसबुक पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तारीफ कर दी। उनका ऐसा करना गजब हो गया। भला बताइए, मोदी युग में जवाहर लाल नेहरू की तारीफ कैसे हो सकती है? इसका खामियाजा गंगवार को उठाना पड़ा। गंगवार को भोपाल में सचिवालय में उप सचिव के तौर पर स्थानांतरित कर दिया गया।
क्या किसी सरकारी अधिकारी को किसी राजनेता की तारीफ करने का हक नहीं है? ये बात अरसे से महसूस की जा रही है कि मोदी सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी भी तरह पाबंदी लगाना चाहती है। गंगवार को सजा देने का मतलब यह है कि अब कोई अधिकारी दूसरे राजनीतिक दलों की तारीफ करने से पहले सौ बार सोचेगा। खासतौर से किसी कांग्रेसी नेता की। यानी पिछले दरवाजे से अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने की तैयारी कर ली गई है। गंगवार ने लिखा था, ‘मुझे उन गलतियों का पता होना चाहिए जो नेहरू को नहीं करनी चाहिए थीं। क्या यह उनकी गलती है कि उन्होंने हमें 1947 में हिंदू तालिबानी राष्ट्र बनने से रोका। क्या आईआईटी, इसरो, बार्क, आईआईएसबी, आईआईएम खोलना उनकी गलती है? क्या यह उनकी गलती है कि उन्होंने आसाराम और रामदेव जैसे बुद्धिजीवियों की जगह होमी जहांगीर का सम्मान किया?’
इस पोस्ट में ऐसा कुछ भी नहीं कि गंगवार को सजा दी जाती। आखिर जवाहर लाल नेहरू ने देश को दूसरा ‘पाकिस्तान’ बनने से रोका है, से कौन गलत ठहरा सकता है। आजादी के फौरन बाद हिंदू महासभा, आरएसएस और कांग्रेस में मौजूद कट्टर हिंदुत्ववादी देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देखने लगे थे। वे पाकिस्तान का उदाहरण देकर कहते थे कि हम भी भारत को हिंदू स्टेट बनाएंगे। लेकिन नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया। यही वह टीस है, जो संघ परिवार को रह-रह कर सालती है। अब जब देश में एक ऐसे आदमी की सरकार आई है, जो कहता है कि हां मैं एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी हूं, तो खतरा तो पैदा हो ही गया है कि देश को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की ओर धकेला जाए। 

Thursday, May 26, 2016

दो साल, बेरोजगारी की मार

सलीम अख्तर सिद्दीकी
नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दो साल पूरे कर लिए हैं। इन दो सालों का जश्न ऐसे मनाया जा रहा है, जैसे वाकई भारत बदल गया है, हर ओर खुशहाली आ गई है, महंगाई दुम दबाकर भाग गई है, हर आदमी के हाथ में रोजगार आ गया है। यह जश्न ऐसे वक्त में मनाया जा रहा है, जब देश के एक दर्जन से ज्यादा राज्य सूखे की चपेट में हैं। वहां पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। कहते हैं कि जब रोम जल रहा था, तो नीरो बंसी बजा रहा था। ये तो सिर्फ बंसी ही नहीं बजा रहे और ढोल नगाड़े बजा रहे हैं। यह सरकार आत्ममुग्धता की शिकार हो गई है। जमीनी हकीकत से नजरें चुराकर सिर्फ जुमलेबाजी हो रही है। इस सरकार की सबसे बड़ी असफलता रोजगार के मोर्चे पर सामने आई है। यही नरेंद्र मोदी चुनाव से पहले कहते थे कि यदि भाजपा की सरकार आई तो हर आदमी के हाथ में रोजगार होगा। दो करोड़ रोेजगार हर सृजित होंगे। लेकिन हकीकत भयावह है। सर्वों पर यकीन करने वाली सरकार इस सर्वे पर भी यकीन करे कि एक सर्वे में 43 प्रतिशत लोगों ने यह माना है कि मोदी नौकरियों के पर्याप्त अवसर पैदा कर पाने में असफल रही है। अगर सर्वे की भी न मानें तो आम आदमियों के बीच जाकर कोई भी यह जान सकता है कि रोजगार का बुरा हाल है। बात सिर्फ नौकरियों की नहीं है, जिन लोगों के निजी व्यवसाय हैं, वे बेहद मंदी की बात कर रहे हैं। छोटा व्यापारी हो या बड़ा, सबका यही कहना है कि जब से मोदी सरकार आई है व्यापार लगातार नीचे जा रहा है। जहां तक महंगाई की बात है। भले ही आंकड़ों में यह कहा जा रहा हो कि महंगाई पर काबू पा लिया गया है या वह कम हो गई है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। महंगाई अपने चरम पर है। खासतौर से खाने पीने की चीजें आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। आज सुबह एक दिलचस्प वाकया हुआ। मैं अपने दोस्त से मजाक कर रहा था। मैंने उससे कहा, अगली बार भी मोदी सरकार। इतना सुनते ही पास से गुजरता एक शख्स रुक कर बोला। भाई साहब मोदी सरकार सबसे बेकार। हमने पूछा, ऐसा क्यों? उसने जवाब दिया, जब से मोदी सरकार आई है काम धंधों का बुरा हाल है। लेकिन क्या करें, तीन साल तक तो इस सरकार को झेलना ही होगा। यह है इस सरकार की जमीनी हकीकत।

Tuesday, May 24, 2016

बजरंग दल के ट्रेनिंग कैंप नई बात नहीं है

सलीम अख्तर सिद्दीकी
अयोध्या में बजरंग दल युवाओं को आतंक की ट्रेनिंग दे रहा है। बजरंग दल कुछ भी कहता रहे कि यह ट्रेनिंग देश दुश्मनों के लिए है, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि युवाओं में सांप्रदायिकता का जहर बोया जा रहा है। अगर हथियार चलाने की ट्रेनिंग देश के लिए है, तो फिर उसमें जो आतंकवादी दर्शाए गए हैं, उन्हें मुसलिम क्यों बताया गया है? मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मीडिया रिपोर्टों में बताया गया था कि वेस्ट यूपी के कई शहरों में हिंदूवादी संगठन खुलेआम खतरनाक हथियार चलाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। विभिन्न नामों से चलने वाले हिंदू संगठनों के कर्ताधर्ता कैमरों के सामने कहते पाए गए कि यह मुसलमानों के खिलाफ तैयारी है। विद्रूप तो यह है कि सब कुछ सामने आने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार ने इन संगठनों के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया। इससे सरकार की नीयत पर संदेह होना लाजिमी है कि वह वास्तव में ही धर्मनिरपेक्ष है और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में वाकई गंभीर है?
हजारों मील दूर बैठे आईएस से खतरा बताने वाले आखिर अपने देश में चलने वाले आतंकी ट्रेनिंग कैंपों की ओर से क्यों आंखें मूंद रहे हैं? सवाल यह है कि हमें खतरा आईएस से ज्यादा है या अपनी बगल में चल रहे हथियार चलाने की टेÑनिंग देने वाले कैंपों से? मीडिया का एक वर्ग आईएसआईएस का ऐसा हौवा खड़ा करता है, जैसे बस उसका हमला भारत पर होने ही वाला है। दरअसल, मीडिया का एक वर्ग भी एक तरह से हिंदूवादी संगठनों में सांप्रदायिकता का जहर बोने के लिए आईएस हौवा खड़ा करता है। उन्हें वह सब कुछ करने पर उकसाता है, जो अयोध्या में सामने आया है। सच यह भी है कि मीडिया का एक वर्ग हिंदूवादी एजेंडे पर लगातार काम कर रहा है, जिसका मकसद हमेशा से ही रहा है कि धार्मिक धु्रवीकरण बना रहे, जिससे भाजपा को फायदा होता रहे। चुनाव के वक्त मीडिया का यह वर्ग कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो जाता है। अब जब उत्तर प्रदेश चुनाव आने वाले हैं, तो हम देख सकते हैं कि राज्य में इस तरह की बातें सामने आएंगी, जो सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देंगी और भाजपा समर्थित मीडिया उन्हें नमक मिर्च लगाकर परोसेगा।

Monday, May 23, 2016

क्योंकि एकनाथ खड़से भाजपा के मंत्री हैं

सलीम अख्तर सिद्दीकी
जरा कल्पना करिए कि कराची स्थित दाऊद इब्राहीम के घर से महाराष्ट्र के एक मंत्री एकनाथ खड़से के बजाय किसी और के, खासतौर से किसी मुसलिम के फोन पर कॉल आती तो क्या होता? क्या उसे भी इसी तरह आनन-फानन में क्लीन चिट दे दी जाती? हर्गिज नहीं। सबसे पहले उसे गिरफ्तार किया जाता। उसके तार न जाने किस-किस आतंकवादी संगठन से जोड़े जाते। फौरन ही मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता। जब तक जांच पूरी होती, पूरे देश में वह कुख्यात आतंकवादी घोषित कर दिया जाता। मास्टर माइंड की तलाश शुरू होे जाती। उसके लिंक कहां-कहां पर हैं, उनके खुलासे शुरू हो जाते। उसकी फेसबुक प्रोफाइल खंगाली जाती। जो उसके साथ जुड़े होते, उन पर नजर रखी जाती। लेकिन एकनाथ खड़से चूंकि महाराष्ट्र के मंत्री हैं और भाजपा से हैं, इसलिए मुंबई पुलिस ने उन्हें फौरन ही क्लीन चिट से नवाज दिया। हैरत की बात यह है कि मुंबई पुलिस ने बेसिक पूछताछ की जरूरत भी नहीं समझी। हालंकि मंत्री जी कह रहे हैं कि जिस फोन नंबर का जिक्र किया गया है, उसका पिछले एक साल से इस्तेमाल नहीं हुआ। ठीक है। नहीं हुआ होगा। लेकिन क्या मंत्री के इतना ही कह देने से उन्हें संदेह से परे कर देना सही है? जिन लोगों को आतंकवाद के शक में घरों से उठाकर पुलिस अज्ञात स्थान पर ले जाकर उनसे गहन पूछताछ करती है, वे अपने को बेगुनाह बताएं तो क्या पुलिस उन्हें ऐसे ही छोड़ देती है? खबरें हैं कि खड़से के मोबाइल पर दाउद इब्राहीम की पत्नी महजबीं शेख के नंबर से चार सितंबर 2015 से पांच अप्रैल 2016 के बीच कई कॉल आए। लेकिन पुलिस के लिए यह जांच का मुद्दा नहीं है। पुलिस भेदभाव करती है, ऐसा यूं ही नहीं कहा जाता। वह भेदभाव करती है। खासतौर से अगर संदेह के घेरे में हिंदू संगठनों के नेता हैं, तो पुलिस अपने मुंह पर पट्टी बांध लेती है। दूसरे लोगों की छोटी से छोटी बात का बतंगड़ बताकर पेश किया जाता है। यह मान लिया गया है कि हिंदूवादी संगठन देशभक्त हैं, वे दाऊद इब्राहीम जैसे देशद्रोहियों से कैसे बात कर सकते हैं? लेकिन यह सब भ्रम है। हिंदूवादी संगठनों का एक चेहरा और भी है, जो अक्सर कभी मालेगांव, तो कभी समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लॉस्ट करता नजर आता है। 

Friday, May 20, 2016

सूरज निकलता है तो सब देखते हैं

सलीम अख्तर सिद्दीकी
‘आकाश में सूरज निकल रहा है, मेरा देश बदल रहा है।’ ये लाइनें उस थीम सॉन्ग है, जिसे मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर जारी किया गया है। गीत की अगली लाइनों में मोदी सरकार का ऐसे बखान किया गया है, जैसे मात्र दो साल में देश पूरी तरह बदल गया है। वैसे जब सूरज निकलता है, तो दुनिया को पता चल जाता है कि सूरज निकल गया है। सूरज को यह ऐलान करने की जरूरत कभी नहीं पड़ती मैं निकल रहा हूं। ऐसे ही अगर मोदी सरकार के दौरान देश वाकई बदल रहा है, तो उसका बखान क्यों गा-गाकर किया जा रहा है? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि दो साल में क्या देश वाकई इतना बदल गया है कि उसके गुणगान किए जाएं।
मोदी सरकार ने देशभर में स्वच्छता अभियान शुरू किया था। उसका क्या हश्र है, यह सभी जानते हैं। नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 3,500 घरों में शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अभी तक मात्र 779 शौचालयों का ही काम शुरू हुआ है। ध्यान दें काम शुरू हुआ है, पूरा नहीं हुआ। 205 सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों के लक्ष्यों की तुलना में केवल 46 शौचालय ही बनाए गए हैं। अंदाजा लगाइए कि जब प्रधानमंत्री के क्षेत्र का यह आलम है, तो अन्य क्षेत्रों का क्या आलम होगा। इसी तरह गंगा का साफ करने के लिए नमामि गंगे अभियान पूरे जोर शोर से शुरू किया गया था। उसमें क्या प्रगति हुई है, यह कोई नहीं जानता। सरका बताती नहीं है। जनता आरटीआई के तहत पूछने जाएगी तो उसे जवाब नहीं मिलेगा। क्योंकि मोदी सरकार की एक अलिखित नीति है कि जानकारी किसी को मुहैया न कराई जाए। यही वजह है कि सूचना आयोग के पास हजारों आवेदन ऐसे पड़े हैं, जिनमें कोई जानकारी मांगी गई, लेकिन नहीं दी जा रही है।
जैसे अटल सरकार ने ‘फील गुड’ का स्लोगन दिया था और जनता ने उसे नकार दिया था, ऐसे ही मोदी सरकार जमीनी हकीकत से बेखबर अपने गुणगान में लगी है। अगर वाकई देश बदल रहा है, तो उसका पता जनता को भी पता चलेगा, जैसे सूरज निकलने पर सबको पता चल जाता है कि दिन निकल आया है।

Thursday, May 19, 2016

कांग्रेस को एयूडीएफ से गठबंधन न करना महंगा पड़ा

सलीम अख्तर सिद्दीकी
दो साल बाद भारतीय जनता पार्टी को असम में खुशी मिली है। उसका खुश होना जायज है। दिल्ली और बिहार की हार के बाद वह सकते में थी। इस खुशी में वह भूल रही है कि 2014 के मुकाबले उसका वोट प्रतिशत कम हुआ है। असम में 2104 के लोकसभा चुनाव में उसका मत प्रतिशत 36.5 प्रतिशत था, लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में घटकर 30.1 प्रतिशत रह गया है। इसी तरह केरला में 2014 के 10.33 से घटकर 10.7 प्रतिशत, तमिलनाडु में 5.56 के मुकाबले 2.7 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 16.8 से घटकर 10.3 प्रतिशत रह गया है। हां, उसने केरल में एक सीट के साथ अपना खाता खोला है, तो पश्चिम बंगाल में तीन सीटों पर विजयी रही है।
यह बहुत शोर मचाया जा रहा है कि मोदी सरकार की नीतियों की वजह से देश में अच्छे दिन आ गए हैं। गरीबों के लिए जो योजनाएं चलाई गई हैं, उनका फायदा उन तक पहुंच रहा है। सवाल यह है कि वह फायदा असम को छोड़कर शेष चार राज्यों के लोगों तक क्या नहीं पहुंचा, जो उसे वहां जबरदस्त मुंह की खानी पड़ी है। यह भी जरूरी नहीं है कि असम की जनता ने मोदी सरकार की नीतियों से खुश होकर भाजपा को वोट दिया है। सच तो यह है कि 15 साल से चल रही कांग्रेस राज को जनता बदलना चाहती थी। विकल्प के रूप में उसके सामने भाजपा थी, इसलिए उसे आजमाने का फैसला किया गया। वैसे भी असम में भाजपा ने बंगलादेशियों की अवैध घुसपैठ का मुद्दा उठाकर वहां धार्मिक ध्रुवीकरण किया, जिसमें वह कामयाब रही। उधर, कांग्रेस को एयूडीएफ से गठबंधन न  करना भी महंगा पड़ा। मुसलिम वोट कांग्रेस और एयूडीएफ में बंटे, जिसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा को मिला।
बावजूद इसके सच यह है कि असम में पहली बार भाजपा की सरकार का आना उसके लिए बड़ी उपलब्धि है। अब ेदेखना यह है कि उसने बंगलादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने का जो वायदा असम की जनता से किया है, उसे वह कितना पूरा कर पाती है? यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा वादे तो करती है, लेकिन उन्हें पूरा नहीं करती। बंगलादेशी घुसपैठियों को निकालना बहुत आसान नहीं है। अब डर इस बात का है कि असम की जीत से उत्साहित भाजपा के वे नेता जो अनाप-शनाप बयान देते हैं, एक बार फिर बाहर निकल सकते हैं, जिससे देश का सांप्रदायिक माहौल गरम हो सकता है। 

Wednesday, May 18, 2016

मुगलकालीन इमारतों को ही ढहा दीजिए

सलीम अख्तर सिद्दीकी
भाजपा जिन चीजों के लिए जानी जाती है, उसे वह सब खूब करना आता है। उसका एजेंडा हमेशा की सांप्रदायिक और विभाजनकारी रहा है। कभी-कभी तो यह ख्याल आता है कि यदि भारत में मुसलमान नाम का जीव न होता तो न आरएसएस होता और न ही भारतीय जनता पार्टी। इनका वजूद मुसलमानों से ही कायम है। अगर भारत से मुसलमान माइनस कर दिए जाएं तो इनकी मौत निश्चित है। इन्हें वह हर इमारत गुलामी की निशानी लगती है, जिन्हें मुगल शासकों ने बनाया था। वह हर सड़क अपवित्र लगती है, जिसका नाम किसी मुगल शासक के नाम पर रखा गया है। औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम पर कर दिया गया, बहुत अच्छा किया। औरंगजेब था ही ऐसा कि उसका नाम कहीं नहीं आना चाहिए। इतिहास में से उसका नाम खुरच देना चाहिए। जैसे राजस्थान सरकार पाठ्यपुस्तकों से जवाहर लाल नेहरू का नाम खुरचने में लगी है। कहा जाता है कि औरंगजेब सवा लाख जनेऊ रोज जलाता था। यानी सवा लाख हिंदुओं को मुसलमान बनाया जाता था। लेकिन आज तक यह गणित अपनी समझ में नहीं आया कि जब सवा लाख जनेऊ रोज जलाए जाते थे, तो उसके शासक रहते कितने जनेऊ जलाए गए होंगे? मेरा गणित बहुत कमजोर है। कोई गणित का माहिर हिसाब लगाकर बताए कि अगर सवा लाख जनेऊ रोज जलाए जाते थे, तो भारत में मुसलमान आज भी सिर्फ 20 प्रतिशत क्यों है?
अब सुब्रमण्यम स्वामी ने मांग रखी है कि अकबर रोड का नाम बदलकर महाराणा प्रताप रोड रखा जाए। रख दीजिए। किसने रोका है? मैं तो यहां तक कहता हूं मुगलकालीन सभी इमारतों को ध्वस्त कर दीजिए। लाल किला, ताजमहल, जामा मसजिद, कुतुबमीनार वगैरहा-वगैरहा। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। अब तो वैसे भी एक हिंदूवाद राष्ट्रवादी आदमी का शासन है। अब यह संभव हो सकता है। दुनिया का क्या है, वह तो शोर मचाकर चुप बैठ जाएगी। देश उनका है, वह चाहे जो करें। उन्हें कौन रोक सकता है। पूर्ण बहुमत की सरकार है। पहली बार आई है। दोबारा मौका मिले ना मिले, कौन जानता है। इसलिए देर नहीं होनी चाहिए।

Monday, May 16, 2016

ट्रंप कैसी दुनिया बनाना चाहते हैं?

सलीम अख्तर सिद्दीकी
इसमें कोई शक नहीं कि दक्षिणपंथी ताकतें पूरी दुनिया में मजबूत होती जा रही हैं। भारत में भी दो साल पहले एक ऐसी सरकार वजूद में आई, जो कट्टर हिंदुत्व की बात करती है और उसके निशाने पर देश के अल्पसंख्यक रहते हैं। कोई कह सकता है कि सरकारी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं किया जाता, जिससे लगे कि मोदी सरकार अल्पसंख्यक विरोधी है। लेकिन भाजपा के मंत्री, सांसद, नेता और विधायक जिस तरह की भाषा अल्पसंख्यकों को, खासतौर से मुसलमानों के लिए इस्तेमाल करते हैं, उससे कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि उसकी सोच क्या है? पूरे यूरोप में भी मुसलिम विरोधी लहर चल रही है। खास तौर से खाड़ी के देशों में हिंसा के चलते यूरोपियन मुल्कों में पहुंचे शरणार्थियों को लेकर शंकाएं जताई जा रही हैं।
अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप खुलकर मुसलमानों पर हमलावर हो रहे हैं। दुनिया में कितनी भी मुसलिम विरोधी लहर चल रही हो, लेकिन जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने मुसलमानों के बारे में कहा है, उससे सिर्फ नफरत ही की जा सकती है। डोनाल्ड ट्रंप को यह नहीं भूलना चाहिए कि इराक, लीबिया या मिस्र में जो कुछ भी हो रहा है, वह अमेरिका और उसके पिट्ठु देशों की वजह से हो रहा है।
ट्रंप के मुसलमानों को अमेरिका में बिल्कुल न घुसने देने से क्या होगा? जो मुसलमान अमेरिका में रह रहे हैं, उन्हें भी बाहर निकाल देने से क्या होगा? वे कहीं और अपना ठौर-ठिकाना ढूंढ लेंगे। लेकिन अगर मुसलमानों ने पश्चिमी देशों के उत्पादों का बायकॉट शुरू कर दिया तो क्या होगा, कभी टंप ने ये भी सोचा है? अगर मुसलिम देशों ने अमेरिका के साथ व्यापार बंद कर दिया तो क्या होगा? अगर ट्रंप अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं और वास्तव में उन्होंने वही किया, जो आज कह रहे हैं, तो दुनिया बदल जाएगी। आखिर ट्रंप किस तरह कि दुनिया बनाना चाहते हैं? वह दुनिया, जिसमें सिर्फ नफरत और खून-खराबा हो? अमेरिका और पश्चिमी देशों की गलत नीतियों की वजह से दुनिया भर में हिंसा फैली है, जिसके शिकार सबसे ज्यादा मुसलिम हुए हैं। ट्रंप आग से खेल रहे हैं, जिसमें वह खुद और उनका देश अमेरिका भी झुलस सकता है।

Sunday, May 15, 2016

क्या भाजपा शासित राज्यों में रामराज्य आ गया है?

सलीम अख्तर सिद्दीकी
संघ परिवार और उसके समर्थक मीडिया ने ऐसा माहौल बना दिया है कि यूपी में ‘गुंडाराज’ चल रहा है और बिहार में ‘जंगलराज’। पश्चिम बंगाल तो बमों का भंडार बताया जा रहा है। गैरभाजपा शासित राज्यों में हुई एक हत्या भी गुंडाराज और जंगलराज नजर आने लगता है। ऐसा लगता है कि भाजपा शासित राज्यों में ‘राजराज’ चल रहा है। गुजरात में विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण भाई तोगड़िया के भतीजे समेत तीन लोगों की हत्या कर दी गई, लेकिन किसी ने नहीं कहा कि गुजरात में गुंडराज या जंगलराज चल रहा है। जितने भी बुरे विश्लेषण हो सकते हैं, सब गैरभाजपा शासित राज्यों के सुरक्षित कर लिए गए हैं। मध्य प्रदेश के अपराध कभी मीडिया की सुर्खियां नहीं बनते। हरियाणा में जाट आंदोलन के दौरान जो कुछ हुआ, वह तो मानवता के नाम पर कलंक था। गुड़गांव में एक पत्रकार पूजा तिवारी को हरियाणा पुलिस का एक अधिकारी खुदकुशी के लिए मजबूर कर देता है, लेकिन पत्रकार पर ही ब्लैकमेलर होने का दाग लगा दिया जाता है। गुजरात में पटेल आंदोलन के दौरान अरबों की संपत्ति नष्ट कर दी जाती है, लेकिन फिर भी गुजरा चमकता हुआ राज्य है। मध्य प्रदेश में व्यापमं नाम का भ्रष्टाचार दर्जनों जिंदगियां लील लेता है, लेकिन वहां के अपराधों की गिनती नहीं की जाती। बिहार में एक मंत्री के लड़के का एक नौजवान की हत्या यकीनन घृणित काम है, लेकिन पत्रकार पूजा तिवारी को मौत के मुंह तक ले जाना वाला हरियाण पुलिस का अधिकारी कैसे मासूम है? यह बहुत ही दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश या बिहार की किसी एक घटना पर सरकार समर्थित चैनल और अखबार हंगाम खड़ा कर देते हैं। चैनलों पर भाजपा के प्रवक्ता गुुंडाराज और जंगलराज चिल्लाने लगते हैं। हद तो यह है कि चैनन का एंकर भी बेशर्मी के साथ भाजपा प्रवक्ताओं के साथ खड़ा नजर आता है। यह सब लिखने का मतलब यह नहीं है कि बिहार या उत्तर प्रदेश में जो अपराध हो रहे हैं, उन्हें सही ठहराया जाए। मकसद सिर्फ इतना है कि अपराध को भी राजनीति का शिकार न बनाया जाए तो बेहतर होगा। अन्यथा हम जाने-अनजाने अपराधियों के हौसले बुलंद करते रहेंगे।

Thursday, May 12, 2016

मोदी सरकार पर असफलता की खीज हावी

सलीम अख्तर सिद्दीकी
जब वह न हो पाए, जिसका वादा किया था, तो खीज स्वाभाविक है। असफलता की खीज मोदी सरकार के मंत्रियों के बयानों से साफ झलक रही है। भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन पर निशाना साधते हुए कहा है कि उसने देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में मिला दिया है। राजन को हटाकर शिकागो भेज देना चाहिए। स्वामी का मानना है कि राजन की नीतियों से देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। सवाल यह है कि वित्त मंत्री रघुराम राजन हैं या अरुण जेटली? नीतियां कौन बनाता है? केंद्र सरकार ही न? फिर अर्थव्यवस्था के रसातल में जाने का जिम्मेदार कौन है? क्या केंद्र सरकार अपनी असफलता ठीकरा राजन पर फोड़ना चाहती है? राजन तो कई बार अपरोक्ष रूप से सरकार को चेता चुके हैं कि जो आर्थिक नीतियां बनाई जा रही हैं, वे देशहित में नहीं हैं। स्वामी का बयान उस वक्त आया है, जब आंकड़े कह रहे हैं कि देश में महंगाई बढ़ी है और देश का औद्योगिक उत्पादन खतरनाक हद तक घट चुका है। हैरत की बात यह है कि सरकार इससे अनजान रही।
उधर, अदालत का उत्तराखंड मामले पर बोल्ड कदम उठाना और सूखे पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेना भी केंद्र सरकार को नागवार गुजरा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली कहते हैं कि न्यायपालिका का कार्यपालिका और विधायिका में दखल बढ़ना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। अरुण जेटली यह क्यों नहीं समझते कि जब सरकारें अपने कर्तव्य से विमुख होकर सिर्फ राजनीति में लगी रहेंगी और जनता परेशान होगी तो अदालत को सामने आना ही होगा। अगर सरकारों पर अदालतों का अंकुश न हो तो वे बेलगाम होकर तानाशाह सरीखा काम करने लगेंगी। केंद्र की मोदी सरकार चाहती है कि वह निरंकुश होकर काम करे। वह जो करे, उसे सब सिर झुकाकर स्वीकार कर लें। सच तो यह है कि जो हवाई वादे करके सरकार सत्ता में आई थी, उनमें से एक भी वादा आज तक पूरा नहीं हो सका है। असफलता की खीज प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उसके मंत्रियों पर हावी हो चुकी है। पीएम मोदी केरल की तुलना सोमालिया से कर बैठते हैं, जिसका दुनिया भर में उनका मजाक उड़ता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज लीबिया में फंसे केरल के लोगों को निकालने का एहसान जताते हुए कहती हैं कि उनका खर्च हमने वहन किया। इससे कम अक्ली की बात क्या होगी कि एक विदेश मंत्री इतना भी नहीं जानतीं कि जो पैसा खर्च हुआ, वह जनता का है।

Wednesday, May 11, 2016

केरल की तुलना सोमालिया से करना अज्ञानता की पराकाष्ठा

सलीम अख्तर सिद्दीकी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपनी अज्ञानता और अपरिपक्वता का परिचय दिया है। केरल की एक जनसभा में उन्होंने केरल की तुलना सोमालिया से कर डाली। सोमालिया दुनिया का संभवत: सबसे बदहाल देश है। अकाल और आतंकवाद से पीड़ित इस देश में भुखमरी से रोज ही लोग मरते हैं। ये हालात कैसे प्रधानमंत्री को केरल में दिखाई दे गए, समझ से परे है। सोमालिया की बहुसंख्यक आबादी भूख, प्यास और भयंकर सूखे की चपेट में है। गत दो दशकोें में 20 लाख लोग अनाज की कमी से तड़प-तड़प कर मर चुके हैं, जिनमें बच्चों की संख्या 30 हजार बताई जाती है। जबकि ऐसा नहीं है कि सोमालिया में प्राकृतिक संपदा नहीं है। लेकिन पश्चिमी देशों ने साजिशन एक जरखेज देश को सोमालिया को बंजर में तब्दील कर दिया। सोमालिया में तेल, यूरेनियम, गैस एवं सोने की खानें बड़ी मात्रा में मौजूद हैं।  सोमालिया की सीमा से सटे देश इथोपिया की मदद से ब्रिटेन, इटली एवं फ्रांस ने यहां का रुख किया और यहां की संपदा पर कब्जा करने के लिए सबसे पहले कृषि व्यवस्था में परिवर्तन किया। दरअसल, खेती और पशुपालन सोमालिया के लोगों का मूल पेशा था। वे खेतों में केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं करते थे। यही कारण था कि अगर कभी बारिश नहीं भी होती थी, तो उनके खेतों में इतना अनाज पैदा हो जाता था कि उनका गुजर-बसर हो सके। इन तीनों देशों ने सबसे पहले उनके इसी मूल संसाधन पर घात लगाई और ऐसी कृषि व्यवस्था तय की कि जमीनें एक विशेष केमिकल की आदी हो गर्इं और फिर धीरे-धीरे उनमें विशेष प्रकार के अनाज पैदा करने की क्षमता ही शेष रह गई। यूनिसेफ के सर्वे के अनुसार, 68 प्रतिशत जमीन बंजर होने की प्रबल आशंका है। जब जमीन से हर प्रकार का अनाज पैदा होने की क्षमता खत्म हो गई, तो पश्चिमी देशों ने यहां खेतों में पैदा होने वाला अनाज कम दामों पर खरीद कर वैश्विक मंडियों में महंगे दामों में बेचने की ठेकेदारी भी ले ली। दूसरी ओर यहां बरसों तक बारिश नहीं हुई। नतीजतन, भीषण सूखा पड़ा और पैदावार लगभग खत्म हो गई। कुछ हिस्सों में घरेलू आमदनी केवल इतनी रह गई थी कि पीने का पानी हासिल किया जा सके। इस प्रकार सोमालिया समेत अफ्रीका के कई देश धीरे-धीरे गरीबी के दलदल में फंसते चले गए। गरीबी की मार थी ही, पश्चिम के ठेकेदार अपनी साम्राज्यवादी नीतियों पर सख्ती से अमल कर रहे थे। अंजाम यह हुआ कि पूरा सोमालिया गृहयुद्ध के दलदल में फंसता चला गया।
इनपुट ‘चौथी दुनिया’ से साभार

Tuesday, May 10, 2016

लिफाफे में बंद हुई भाजपा की शिकस्त

सलीम अख्तर सिद्दीकी
आखिरकर अंतिम पड़ाव पर उत्तराखंड में भाजपा की शिकस्त हो गई। हालांकि यह शिकस्त लिफाफे में बंद हो गई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट बुधवार को खोलेगा। अरुणाचल प्रदेश की सरकार को चोर दरवाजे से गिराने के बाद अति उत्साह में भाजपा ने उत्तराखंड में कांग्रेस के कुछ बागियों के सहारे वहां भी अपनी सरकार बनाने की जो चाल चली थी, वह उसी के गले का फंदा बन गई है। उत्तराखंड मामले में भाजपा को शिकस्त दर शिकस्त मिली। उसने आनन-फानन में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया। लेकिन मामला जब अदालत में गया तो भाजपा को एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है। लेकिन भाजपा की लुटिया डुबोने में लगे कुछ भाजपा नेताओं ने गलती से सबक न लेकर गलती दर गलती की।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जब केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए बहुमत का फैसला सदन में करने का आदेश दिया तो केंद्र सरकार उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। लेकिन वहां भी वह हुआ, जो हाईकोर्ट ने कहा था। यानी बहुमत का फैसला सदन में।
आखिरकार 10 मई को सदन में वोटिंग हुई और पता चला कि भाजपा को वहां जबरदस्त शिकस्त मिली। यदि केंद्र सरकार उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देती, तो तब भी वही होना था, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ है। तब शायद उसकी इतनी किरकिरी नहीं होती, जितनी अब हुई है। दरअसल, केंद्र सरकार को यह भरोसा था कि जिन बागी विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष ने अयोग्य घोषित किया है, अदालत उस फैसले को बदल देगी, लेकिन उसकी उम्मीदों पर तब पानी फिर गया, जब अदालत ने भी उन्हें अयोग्य करार देते हुए वोटिंग से दूर रहने के आदेश दिए। यदि बागी विधायकों को भी सदन में वोट देने का अधिकार मिल जाता तो इस सूरत में जरूर भाजपा अपनी चाल में कामयाब हो जाती।
दरअसल, भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का अपना सपना साकार करने की बहुत जल्दी में लग रही है। यही वजह है कि वह इस चक्कर में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारे चले जा रही है।

Sunday, May 8, 2016

भाजपा का वैचारिक दिवालियापन

सलीम अख्तर सिद्दीकी
खबर है कि राजस्थान की भाजपा सरकार ने आठवीं कक्षा की पुस्तक से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वाला पाठ हटा दिया है। यह समझ से परे है कि राजस्थान सरकार ऐसा करके क्या संदेश देना चाहती है? हालांकि लगता यह है कि भाजपा कांग्रेस के विरोध में इतने नीचे उतर आई है कि वह देश के उन नायकों से भी नफरत करती दिख रही है, जिन्होंने देश की आजादी दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई। इसके बरअक्स भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस ने आजादी की लड़ाई से अपने आपको दूर ही रखा। कहा तो यहां तक जाता है कि संघ नहीं चाहता था कि अंगे्रज इस देश को छोड़कर जाएं। इसलिए वे न केवल जंग-ए-आजादी की लड़ाई से दूर रहे, बल्कि क्रांतिकारियों की मुखबरी तक की। शायद यही वजह है कि देश की जंग-ए-आजादी की लड़ाई में सिर कटाना तो दूर, उंगली तक कटाने वाला एक भी आरएसएस का नेता नजर नहीं आता। इसीलिए आजकल संघ उधार के उन नायकों पर जी रहा है, जो उसकी विचारधारा से सहमत नहीं थे।
जवाहर लाल नेहरू से संघ परिवार के वैचारिक मतभेद रहे हैं। उनकी नीतियों से भी असहमत रहे हैं। खासतौर से कश्मीर नीति पर भाजपा वाले आज तक उनकी जबरदस्त आलोचना करते हैं। कश्मीर समस्या को नेहरू की गलती मानते हैं। यहां तक तो सही है, लेकिन अगर भाजपा यह चाहती है कि देश के बच्चे जवाहर लाल नेहरू के बारे में न जानें तो इसे उसके वैचारिक दिवालियपन के अलावा और क्या कहा जा सकता है। भाजपा जवाहर लाल नेहरू का नाम कहां-कहां से हटाएगी? क्या वह भारत का इतिहास बदल देगी? मान लिया कि भारत का इतिहास बदल देगी, लेकिन क्या दुनिया के इतिहास में से भी जवाहर लाल नेहरू का नाम हटवा देगी? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि वह इतिहास के पन्नों से किस-किस कांग्रेस नेता का नाम खुरचेगी? क्या भाजपा उम्र भर के लिए सत्ता में रहने का बॉन्ड भरवाकर सत्ता में आई है? क्या वह अमर हो गई है, जो उसे मौत नहीं आएगी? अब सवाल यह है कि भाजपा नेहरू के जगह किसे रखेगी? नरेंद्र मोदी को या अमित शाह को? भाजपा जिस राह पर चल रही है, वह उसे सिर्फ गर्त में लेकर ही जाएगी। अगर वह समझती है कि छिछोरी हरकतों से जनता खुश हो जाएगी तो इस पर सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि वह मूर्खों की जन्नत में रहती है।

Friday, May 6, 2016

‘खतरनाक आतंकवादी’ बेकसूर छूटते हैं

सलीम अख्तर सिद्दीकी
दिल्ली पुलिस ने 12 ‘खूंखार आतंकवादियों’ को पकड़ने का दावा किया है, जो न सिर्फ दिल्ली को दहलाना चाहते थे, बल्कि पठानकोट एयबेस की तर्ज पर हिंडन एयरबेस पर हमला करने की साजिश कर रहे थे। जब भी इस तरह के आतंकवादी पकड़े जाते हैं, तब मीडिया में उन्हें इस तरह पेश किया जाता है, मानो अदालत ने उन्हें आतंकवादी मानकर सजा सुना दी हो। पकड़े गए आतंकवादियों का पूरा परिवार एक अनजाने में खौफ में जीने के साथ ही लोगों की हिकारत की नजरों का शिकार भी होता है। खूंखार आतंकवादियों पकड़ने जाने के इसी बीच यह खबर भी आती है कि कोई फलां आतंकवादी, जिसे 20-25 साल पहले सिमी या किसी आतंकवादी संगठन का मानकर भारी मात्रा में असलाह के साथ पकड़ा गया था, वो बेकसूर था और अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया है। उसके बेकसूर होने की खबर कहीं अंदर के पेजों पर चार लाइन की खबर छप जाती है। बाज अखबार तो छोटी खबर छापने की जहमत भी नहीं उठाता। सवाल यह है कि जब किसी कथित आतंकवादी के पकड़े जाने पर दुनिया भर की बातें उसके बारे में प्रचारित की जाती हैं, तो उसके बेकसूर साबित होने पर मीडिया चुप्पी क्यों साध लेता है? जिन सुरक्षा एजेंसियों ने उसे पकड़ा था, उन पर सवाल क्यों नहीं उठाए जाते? सुरक्षा एजेंसियों की ‘फुल प्रुफ थ्योरी’ अदालत में क्यों दम तोड़ देती है? डेढ़-दो दशक तक जेल में बिताए उसके बुरे दिनों का मुआवजा क्यों नहीं दिया जाता? हमारी सुरक्षा एजेंसियां कितनी ‘मुस्तैद’ हैं, इसका उदाहरण देश पठान कोट मामले में तो देख ही चुका है। अब हिंडन एयरबेस मामले में भी उसकी भयंकर चूक उजागर हुई है। जब सुरक्षा एजेंसियां यह प्रचारित करने में लगी हैं कि पकड़े गए आतंकवादी हिंडन एयरबेस को निशाना बनाना चाहते थे, उसी में एक शख्स घूमता हुआ पकड़ा गया। आखिर हिंडन एयरबेस को खुला क्यों छोड़ दिया गया? जो सोनू नाम का आदमी पकड़ा गया है, वह कौन है, इसका अभी पता नहीं चला है। यकीनन अगर वह मुसलिम नहीं हुआ तो उसे मानसिक बीमार बताकर छोड़ा भी जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह पकड़े गए आतंकवादियों का साथी तो हो ही जाएगा। आतंकवादी पर दोगली नीति बंद होनी चाहिए।

Wednesday, May 4, 2016

संसदीय समिति ने मोदी सरकार को दिखाया आइना

सलीम अख्तर सिद्दीकी
पठान कोट हमले की जांच करने वाली संसदीय समिति ने सुरक्षा एजेंसियों पर उंगली उठाई है, तो सही ही उठाई है। जरा याद कीजिए, 2104 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और उसके नेता नरेंद्र मोदी कितनी बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे? ऐसा लगता था कि जैसे भाजपा के सत्ता में आते ही भारतीय सेना पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के अड्डे तबाह कर देगी। विपक्ष में रहते हुए भाजपा यह मांग भी करती रही है कि भारत को पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप तबाह कर देने चाहिए थे। लेकिन विडंबना तो यह है कि भाजपा ने सत्ता में आते ही पाकिस्तान के साथ प्रेम की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं। नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण में बुलाया। नरेंद्र मोदी अचानक नवाज शरीफ के साथ चाय पीने पाकिस्तान पहुंच गए।
चाय पीने का नतीजा यह निकला कि चंद दिन बाद ही पठानकोट पर हमला हो गया। हमले जांच करने वाली संसदीय समिति की रिपोर्ट कहती है कि पठानकोट एयरबेस की सुरक्षा में खामियां ही खामियां हैं। सबसे ज्यादा हास्यास्पद बात तो यह कि उसी पाकिस्तान की जांच कमेटी को हमले की जांच करने के लिए पठानकोट बुलाया लिया, जिसकी एजेंसियों पर हमले का समर्थन करने का आरोप है। क्या  पाकिस्तान के आतंकवादी तो हमेशा की भारत को निशाना बनाने की फिराक में रहते हैं। सवाल तो यह है कि जब भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को तीन दिन पहले यह इनपुट मिल गया था कि आतंकवादी पठान कोट में घुस चुके हैं, तो एयरबेस की सुरक्षा चाक-चौबंद क्यों नहीं गई? क्यों उसे आतंकवादियों के लिए खुला छोड़ दिया गया था? पठानकोट में आतंकवादियों के निशाने पर क्या हो सकता था? एयरबेस ही न? आतंकवादी पठानकोट में पिज्जा बर्गर खाने के लिए तो नहीं आए होंगे? पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने से पहले भारत की सुरक्षा एजेंसियों को अपने गिरबां में भी झांकर देखना चािहए कि वह कितनी सुस्त हैं? दूसरी बात यह कि जो एसपी सलविंदर सिंह सबसे बड़ा संदिग्ध है, उसे क्लीन चिट क्यों दे दी गई? क्या इसलिए कि पंजाब में चल रहे उस ड्रग सिंडिकेट की परतें न खुल सकें, जिसमें कुछ ऐसे लोगों के नाम सामने आ सकते थे, जिससे अकाली-भाजपा सरकार की फजीहत हो जाती? जब तक हम अपना घर सुरक्षित नहीं करेंगे, घर के भेदियों को बेनकाब नहीं करेंगे, तब तक आतंकवाद पर काबू नहीं पाया जा सकता।

Tuesday, May 3, 2016

...लेकिन मोदी सरकार को शर्म नहीं आएगी

सलीम अख्तर सिद्दीकी
भाजपा को आज दो तगड़े झटके लगे। संसदीय समिति ने पठानकोट हमले में सुरक्षा खामियों पर सवाल उठाते हुए मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है, तो उधर अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी पर नजर रखने वाले अमेरिकी आयोग यूएससीआईआरएफ (यूएस कमीशन आॅन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रÞीडम) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 2015 में भारत में असहिष्णुता बढ़ी है और धार्मिक आजादी के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में भी इजाफा हुआ है। जैसी की उम्मीद थी, केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट को नकार दिया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक हिंदूवादी गुटों के हाथों धमकी, उत्पीड़न और हिंसा की बढ़ती घटनाओं का सामना करना पड़ा है। सरकार और भाजपा के लिए शर्मिंदगी वाली बात यह है कि रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि हिंदूवादी संगठनों को केंद्र सरकार का मूक समर्थन मिला हुआ है। इस सच से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भाजपा से ताल्लुक रखने वाले हिंदूवादी संगठनों ने तब से देश के अल्पसंख्यक तबकों को धमकाना शुरू कर दिया था, जब से केंद्र में मोदी सरकार ने शपथ ली थी। रिपोर्ट में एक वीडियो का जिक्र किया गया है, जो फरवरी 2015 में हुई संघ की एक बैठक का है। इस वीडियो में भाजपा के कई नेता मुसलमानों को ‘शैतान’ कहते हुए और उन्हें बर्बाद करने की धमकी देते हुए देखे जा सकते हैं। रिपोर्ट में जिस तरह से मोदी सरकार पर निशाना साधा गया है, उससे पता नहीं उसे शर्म आएगी या नहीं, लेकिन इस रिपोर्ट से पूरी दुनिया में भारत को अब दूसरे नजरिए से देखा जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी यह कहते हुए नहीं अघाते कि जब से वह प्रधानमंत्री बने हैं, तब से दुनिया में भारत को अच्छी नजरों से देखा जा रहा है। पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। लेकिन विदेशी संस्थाएं अगर भारत की मौजूदा केंद्र सरकार को सांप्रदायिक बता रही है, तो कहना पड़ता है कि मोदी की गर्वोक्ति झूठी है अगर कोई विदेशी संस्था नरेंद्र मोदी सरकार की थोड़ी सी भी तारीफ कर देती है, तो उसके सभी नेता उसका हर मंच से जिक्र करते हुए गर्व महसूस करते हैं। लेकिन अमेरिका की इस रिपोर्ट पर शर्मिंदगी महसूस क्यों नहीं करती?

Monday, May 2, 2016

प्रियंका गांधी कर सकती हैं कांग्रेस का बेड़ा पार

सलीम अख्तर सिद्दीकी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का सवाल बन चुका है। 1992 में बाबरी मसजिद शहीद होने के बाद से ही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में हाशिए पर है। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो वह एक तरह से हाशिए से भी बाहर हो चुकी है। लेकिन कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की ऐसी आंधी चली थी कि उसमें सभी राजनीतिक दल उड़ गए थे। अब जब उत्तर प्रदेश में एक तरह से चुनाव की रणभेरी बच चुकी है, कांग्रेस अपना जनाधार फिर से हासिल करने के लिए बेचैन है। चुनावी रणनीतिकार माने जा रहे प्रशांत किशोर बिहार में नीतीश कुमार को जिताने के बाद कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में चुनावी सफलता दिलाने में जुटे हैं। लेकिन प्रशांत किशोर कैसे कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसे आगे करके चुनाव लड़ा जा सके। प्रशांत किशोर चाहते हैं कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव राहुल गांधी अथवा प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़े। इसके कम ही चांस हैं कि कांग्रेस राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश चुनाव का चेहरा बनाए। इसमें खतरे ज्यादा हैं। अगर किसी वजह से राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश की जनता ने रिजेक्ट कर दिया तो उनके प्रधानमंत्री बनने के अवसर बहुत कम हो जाएंगे। यही कहा जाएगा कि जो चेहरा एक राज्य में जीत नहीं दिला सका, उसे कैसे प्रधानमंत्री का दावेदार माना जा सकता है। इसलिए लगता है कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस आगे कर सकती है। कांग्रस को ऐसा करना भी चाहिए। प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री की उम्मीदवार नहीं हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश में उतारा जाता है, तो वह दूसरे राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। उनकी बातों में गंभीरता है। सबसे बड़ी बात यह है कि उनमें लोग इंदिरा गांधी का अक्स देखते हैं। लोकसभा चुनाव में उन्होंने जिस तरह से विपक्षी दलों के सवालों के तुर्की ब तुर्की जवाब दिए थे, उससे लोगों में उनके प्रति विश्वास बढ़ा है। खासतौर से महिलाओं में उनके प्रति आकर्षण है। कांग्रेस के लोग भी प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग करते रहे हैं। कई बार उनके समर्थन में पोस्टर भी लगाए गए हैं, लेकिन अभी तक प्रियंका यही कहती रहीं हैं कि उन्हें राजनीति नहीं करनी है। वक्त का तकाजा तो यही है कि कांग्रेस प्रियंका को उत्तर प्रदेश चुनाव में आगे करके चुनाव लड़े। यदि उसने ऐसा किया तो कांग्रेस को सफलता मिल सकती है।

Sunday, May 1, 2016

भ्रष्टाचार पर सिर्फ जुमलेबाजी

सलीम अख्तर सिद्दीकी
आॅग्स्टा हेलीकॉप्टर मामले में इटली की एक अदालत के फैसले पर मोदी सरकार कांग्रेस पर हमलावर हो गई। उसे ऐसा लग रहा है, जैसे उसने बहुत भारी जीत हासिल कर ली हो। दरहकीकत आॅग्स्टा मामले में मोदी सरकार खुद ही कठघरे में खड़ी हो गई है। यह यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि मोदी सरकार आॅग्स्टा मामले में सिर्फ और सिर्फ राजनीति कर रही है। अगर ऐसा नहीं है, तो वह सोनिया गांधी समेत उन सभी लोगों पर कानून का डंडा क्यों नहीं चला रही है, जिनके नाम आॅग्स्टा हेलीकॉप्टर खरीद में कमीशन खाने वालों में आए हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि दो साल से मोदी सरकार क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी थी? क्या वह इसका इंतजार कर रही थी कि इटली से कुछ मसाला और वह कांग्रेस को घेर सके? सच तो यह है कि अगर इटली से अभी भी कुछ मसाला नहीं आता तो मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी होती। सवाल यह भी उठ रहा है कि दो साल के अंदर उसने आॅगस्टा कंपनी को ब्लैक लिस्ट क्यों नहीं किया? आखिर एक ऐसी कंपनी, जिस पर कमीशन खिलाने के आरोप लगे हैं, उसे मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया में कैसे शामिल कर लिया? जैसे इतना की काफी नहीं था। आॅग्स्टा को टाटा के साथ मिलकर भारत में पूंजी लगाने की अनुमति भी दे दी गई।
अब यह खुलकर सामने आ गया है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर केवल जुमलेबाजी से काम ले रही है। सत्ता में आने पहले उसने सिंह गर्जना की थी कि भाजपा सत्ता में आई तो सभी भ्रष्टाचारी जेल में होंगे। कितने भ्रष्टाचारियों को जेल में डाला है अब तक मोदी सरकार ने? हद तो यह है कि प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के बारे में तो यहां तक कह दिया गया था कि वह तो किसी हालत में बच हीं नहीं सकते। रॉबर्ट वाड्रा खुले घूम रहे हैं। मोदी सरकार का एक ही एजेंडा है कि किसी भी तरह बस भ्रष्टाचार पर बातें करते रहो, करो कुछ नहीं है। यही वजह है कि एक ताजा सर्वे कहता है कि पिछले दो साल के दौरान लोगों की जिंदगी में कुछ भी अंतर नहीं आया है। बहुत लोगों ने तो यह तक माना है कि उनकी जिंदगी और ज्यादा बदतर हो गई है। मोदी सरकार जो कुछ कहती है, वह करती नहीं है। रोज नई योजनाएं लागू की जाती हैं। उन पर कितना काम हुआ, कोई नहीं जानता। वह आदर्श ग्राम योजना, स्मार्ट सिटी, स्वच्छता अभियान आदि योजनाएं धूल फांक रही हैं। नई-नई योजनाएं लांच करके लोगों को भरमाया जा रहा है।