Wednesday, April 27, 2016

कराची में ‘शिवसेना’ वाली हरकत

सलीम अख्तर सिद्दीकी
पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर फिल्म डायरेक्टर कबीर खान के साथ बदसलूकी की गई, उन्हें जूता दिखाया गया। हालांकि ऐसा करने वाले चंद लोग थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसे शहर के चेहरे पर कालिख पोती है, जो जिंदादिल कहलाता है और एक प्रगतिशील शहर है। वैसे भी कबीर खान वहां अपनी मर्जी से नहीं गए थे, बल्कि उन्हें एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया था। कुछ पाकिस्तानियों की इस पर आपत्ति है कि कबीर खान अपनी फिल्मों में पाकिस्तान की गलत छवि पेश करते हैं। सवाल यह है कि ऐसा हुआ ही क्यों कि एक फिल्म डायरेक्टर को पाकिस्तान की ऐसी छवि दिखानी पड़ी? ऐसा नहीं है कि कराची के जो हालात हैं, उससे हिंदुस्तान के लोग नहीं जानते हैं। रोशनियों के शहर को तारीकियों में किसने डुबोया? ऐसे ही लोगों ने जो अपनी थोड़ी सी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं करते।
क्या अब पाकिस्तान के कट्टरपंथी यह तय करेंगे कि भारत के फिल्म निर्माता अपनी फिल्में किस कहानी पर बनाएं? पाकिस्तान में भी ऐसी फिल्में बनती हैं, जिनमें भारत को ‘विलेन’ के रूप में दिखाया जाता है। क्या भारत के लोग इस पर आपत्ति दर्ज कराए कि उसने ऐसा क्यों किया? पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान के कई कलाकर बॉलीवुड में काम करते हैं, मोटा पैसा कमाते हैं। उन्हें यह दौलत, इज्ज्त और शोहरत तीनों चीजें मिलती हैं। यह ठीक है कि भारत में भी शिवसेना सरीखी कुछ पार्टियां हैं, जो पाकिस्तानी कलाकारों को विरोध करती हैं। पिछले दिनों ही पाकिस्तान के गजल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम शिवसेना ने करने नहीं दिया था। लेकिन शिवसेना का विरोध भी जबरदस्त तरीके से यहीं के लोगों ने किया था। कराची में कुछ लोगों ने जो शिवसेना वाली जो हरकत की है, वह निंदनीय है।
ऐसा नहीं है कि कराची एयरपोर्ट पर कबीर खान के साथ जो बदतमीजी की गई, उसके समर्थन में पूरा कराची शहर होगा। यकीनी तौर पर उन चंद कट्टरपंथियों की जबरदस्त आलोचना की गई होगी, जिन्होंने ऐसा किया। यह भारत के बॉलीवुड की हिम्मत है कि उसने ऐसी फिल्में भी बनाई हैं, जिनमें भारत के अल्पासंख्यकों के साथ होने वाली ज्यादती को मुखर होकर फिल्माया है। कश्मीर में सेना किस तरह कश्मीरियों पर जुल्म करती है, उसे भी फिल्न्माया है। हमेें यकीन है कि पाकिस्तान में ऐसी कोई फिल्म नहीं बनी होगी, जिसमें यह दिखाया गया हो कि वहां किस तरह अल्पसंख्यकों को सताया जाता है, उन्हें धर्मपरिवर्तन करने पर मजबूर किया जाता है। 

Tuesday, April 26, 2016

जुमला नहीं है ‘भगवा आतंकवाद’

सलीम अख्तर सिद्दीकी
मालेगांव में 2006 को हुए बम विस्फोट के आठ आरोपियों को बरी कर दिया गया। यह वह दौर था, जब लगातार बम धमाके हो रहे थे और मुसलिम युवा जेल की सीखचों के पीछे भेजे जा रहे थे। तब मैंने अपने एक लेख में शक जाहिर किया था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बम धमाकों के पीछे किसी और का हाथ हो और बदनाम मुसलमानों को किया जा रहा है। इस शक के पीछे की वजह यह थी कि आंध्र प्रदेश समेत कुछ दूसरे राज्यों में आरएसएस के कार्यकर्ता तब मारे गए थे, जब वे बम बना रहे थे और वह फट गया था। हालांकि तब पुलिस ने मामले को रफा-दफा कर दिया था। जब 2008 में मालेगांव में फिर धमाके हुए और मुंबई एटीएस चीफ स्वर्गीय हेमंत करकरे ने उसकी छानबीन की तो सब कुछ साफ हो गया। बम धमाकों के तार अभिनव भारत नाम के हिंदू संगठन से जुड़े पाए गए। जिसमें साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के नाम सामने आए थे। तब पहली बार ‘भगवा आतंकवाद’ सामने आया था। इससे पहले हर आतंकवादी घटना के पीछे इसलामी आतंकवाद का ठप्पा लग जाता था। हैरतअंगेज तौर पर घटना के चंद घंटों बाद ही उसके तार कभी सिमी से, कभी हूजी से तो कभी लश्करे तौयबा से जोड़कर मुसलिम युवाओं की धरपकपड़ की जाती थी। उनमें से ही किसी एक को ‘मास्टर माइंड’ प्रचारित किया जाता था। मीडिया भी सुरक्षा एजेंसियों के हवाले से अतिरंजित खबरें चलाकर मामले को संगीन बनाने में पीछे नहीं रहता था। भगवा आतंवाद की परतें और उघड़तीं अगर मुंबई एटीएस चीफ हेमंत करकरे की मुंबई हमलों के दौरान हत्या नहीं होती। वे भगवा आतंवाद का ऐसा चेहरा सामने लाने वाले थे, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की होगी। कहा तो यहां तक जाता है कि मुंबई हमले की आड़ में करकरे की हत्या इसलिए कर दी गई थी, ताकि भगवा आतंकवाद का पूरा सच सामने न आ सके। अभी इसकी पूरी कोशिश की जा रही है कि साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित समेत अभिनव भारत के पूरे गैंग को किसी तरह बचा लिया जाए।  इसके लिए न केवल वकीलों को बल्कि जजों को भी धमकाने की खबरें आ रही हैं। गवाहों को गवाही बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बहरहाल, मालेगांव के आरोपियों की रिहाई से यह बात तो साफ हो गई कि ‘भगवा आतंकवाद’ महज जुमला नहीं था। 

Sunday, April 24, 2016

महाराष्ट्र सरकार की शर्म पर भी पड़ा ‘सूखा’

सलीम अख्तर सिद्दीकी
एक एसएमएस मिला था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मन की बात’ सुनने की अपील की गई थी। ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने सूखे पर चिंता जाहिर की तो अच्छे मानसून की भविष्यवाणी पर खुशी भी जताई। ‘मन की बात’ सुनने के बाद एक खबर नजर से गुजरी, जिसमें बताया गया था कि महाराष्ट्र सरकार ने भाजपा सांसद और अभिनेत्री हेमा मालिनी को वो बेशकीमती जमीन कोड़ियों के भाव दे दी, जो गार्डन के लिए आरक्षित थी। हेमा मालिनी उस पर एक नृत्य एकादमी खोलेंगी। एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि हेमा मालिनी को मुंबई की अंधेरी तालुका स्थित आंबिवली में जो जमीन दी गई है, वह गार्डन के लिए आरक्षित है। इस जमीन को हेमा मालिनी की संस्था को महज 35 रुपये वर्ग मीटर की दर पर दिया गया है। सूखे पर चिंता जाहिर करना और एक भाजपा शासित राज्य द्वारा गार्डन के लिए आरक्षित जमीन को अपने एक सांसद को कौड़ियों के मोल दे देना क्या भाजपा सरकार की दोगली नीति नहीं है?
सूखे से त्राहि-त्राहि कर रहे महाराष्ट्र की ‘राष्ट्रवादी और संवेदनशील’ सरकार ने कुछ तो सोचा ही होगा, जो गार्डन के लिए आरक्षित जमीन नृत्य अकादमी के लिए कोड़ियों के भाव दे दी। शायद उसके मुताबिक सूखे से मुकाबला करने के लिए गार्डन की नहीं, नृत्य की ज्यादा जरूरत है। महाराष्ट्र में भरत नाट्यम, कत्थक आदि नृत्य होंगे तो इंद्र देवता प्रसन्न होंगे और सूखे से निजात दिला देंगे।  वैसे भी आजकल जिस तरह मोदी सरकार में अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है, तो कोई ताज्जुब नहीं कि उसका यही मानना हो कि नृत्य से इंद्र देवता प्रसन्न होकर बारिश कर देंगे और सूखे का संकट खत्म हो जाएगा। अगर गार्डन के लिए आरक्षित जमीन पर कंक्रीट का जंगल खड़ा करने के लिए जमीन दे दी जाएगी, तो उससे क्या पर्यावरण नहीं बिगड़ेगा?
मोदी सरकार इस बात का खूब डंका पीटती है कि उसके शासन में कोई भ्रष्टाचार नहीं होता। 70 करोड़ की जमीन को सिर्फ 1.75 लाख में किसी को दे देना भ्रष्टाचार नहीं है क्या? क्या यह सदाचार है? ऐसा लगता है कि सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र सरकार की शर्म भी सूख गई है। अब देखना यह है कि महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या एक्शन लेते हैं। वैसे इस बात की उम्मीद कम ही है कि मोदी सरकार महाराष्ट्र सरकार की बेशर्मी पर कुछ एक्शन लेगी।

Wednesday, April 20, 2016

उत्तराखंड पर केंद्र सरकार की किरकिरी

सलीम अख्तर सिद्दीकी
उत्तराखंड मसले पर केंद्र सरकार की लगातार किरकिरी हो रही है, लेकिन वह हठधर्मिता पर उतर आई है। उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को बहुमत साबित करने का मौका दिए बगैर ही वहां आनन-फानन में राष्ट्रपति शासन लगाना केंद्र सरकार के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। वह अदालत में दलील दे रही है कि राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन जब हाईकोर्ट ने केंद्र से सख्त लहजे में कहा कि ‘राष्ट्रपति से भी गलती हो सकती है’, तो उसके पास कोई जवाब नहीं है। कोर्ट ने सही ही तो कहा है कि राष्ट्रपति पर शक नहीं किया जा सकता, लेकिन उनका फैसला समीक्षा से परे नहीं है। कोर्ट ने तो यहां तक कहा कि केंद्र द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्यपाल के माध्यम से दिल्ली से शासन करने का निर्णय संदेहास्पद लगता है। लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार जल्दी से हथियार नहीं डालेगी, तो यह न्यूज चैनल कह रहा है कि गृहमंत्रालय के सूत्र कह रहे हैं कि उत्तराखंड हाइकोर्ट की टिप्पणी गलत है और सरकार इस टिप्पणी को निरस्त कराने या वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। गृहमंत्रालय इसे राष्ट्रपति पर निजी टिप्पणी मान रहा है। अगर ऐसा है तो इसका मतलब यह है कि गृहमंत्रालय हाईकोर्ट की टिप्पणी के बहाने मामले को लंबा खींचना चाहता है।
केंद्र सरकार अपनी गलती छिपाने के लिए सौ जतन करेगी। उसे पता है कि अगर उत्तराखंड मामले में उसकी हार हुई तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। केंद्र सरकार की नीयत जरूर ही पिछले दरवाजे उत्तराखंड में अपना राज चलाने की थी, लेकिन अदालत ने उसका रास्ता रोक दिया लगता है। यह वही भारतीय जनता पार्टी है, जो सबसे ज्यादा लोकतंत्र की माला जपती है। अनुच्छेद 356 को जमकर विरोधी करती रही है, लेकिन जब उसका अपना नंबर आया तो उसने अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड में इस अनुच्छेद का जमकर दुरुपयोग किया। अगर उत्तराखंड मसला अदालत नहीं पहुंचता तो संभवत: केंद्र अन्य कांग्रेस शासित राज्यों पर अनुच्छेद 356 की चाबुक चला देती। अब पता नहीं कोई की कड़ी फटकार के बाद केंद्र सरकार को शर्म आई या नहीं, लेकिन इतना तय लग रहा है कि अदालत में केंद्र को मुंह की खानी पड़ेगी। 

Monday, April 18, 2016

सूखा, सेल्फी और मेकअप

सलीम अख्तर सिद्दीकी
इसे बेशर्मी की पराकाष्ठा कहें, या अमानवीयता? सूखे की मार झेल रहा महाराष्ट्र का लातूर नेताओं के लिए पिकनिक स्पॉट बन गया है। चंद दिन पहले ही मराठवाड़ा इलाके में दौरे के लिए पहुंचे बीजेपी के मिनिस्टर के हेलिकॉप्टर के लिए बने अस्थाई हेलिपैड पर 10 हजार लीटर पानी इस्तेमाल किया गया था। महाराष्ट्र सरकार की उस मामले में अभी किरकिरी हो ही रही थी कि अब महाराष्ट्र की ग्रामीण विकास और जल संरक्षण मंत्री पंकजा मुंडे ने सूखाग्रस्त लातूर का दौरा करते वक्त सेल्फी लेकर अपने अमानवीय होने का सबूत दिया है। सेल्फी में पंकजा मुंडे मुस्कुराते हुए दिख रही हैं। उनसे सवाल किया जा सकता है कि सूखाग्रस्त क्षेत्र को देखकर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट के क्या मायने हैं? यही न कि उन्हें मानवीय सरोकारों से कुछ लेना-देना नहीं है। खबरें बताती हैं कि मुंडे मनचाही सेल्फी लेने की बार-बार कोशिश करती रहीं। जब मनचाही सेल्फी खिंच गई तो उनके चेहरे पर वह मुस्कुराहट तैर गई, जो सेल्फी में साफ नुमायां हो रही है। बेशर्मी की हद यहीं नहीं खत्म होती। उन्होंने दौरे के वक्त गर्मी की शिकायत करते हुए कहा कि गर्मी की वजह से उनका मेकअप खराब हो रहा है। लातूर महाराष्ट्र का वह इलाका है, जहां पर पीने का पानी भी रेल के जरिए भेजा जा रहा है। अगर पंकजा मुंडे में जरा भी संवेदना होती तो वह अपनी सेल्फी खींचने के बजाय उन लोगों के बीच जातीं, जो बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। उन्हें दिलासा देतीं। हालात देखकर पानी वितरण का और ज्यादा अच्छा करने की कोशिश करतीं। लेकिन ऐसा लगता है कि पंकजा मुंडे समेत सभी सरकारें इस बात से मुतमुइन होकर बैठ गर्इं हैं कि मौसम विभाग ने इस मॉनसून में अच्छी बारिश की भविष्यवाणी कर दी है, इसलिए वे अब सेल्फी लेकर सूखा से प्रभावित लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने के काम में लग गई हैं। जरा कल्पना कीजिए। अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी खरी नहीं उतरी तो क्या होगा? अभी जिस तेजी के साथ तापमान बढ़ने के साथ सूखे से लगातार हालात खराब होते जा रहे हैं, उससे निपटने में सरकारें क्या कर रही हैं। सरकारों का संवेदनहीन होना नया नहीं है। लेकिन जब कोई मंत्री सुखा प्रभावित क्षेत्र में जाकर मुस्कुराते हुए सेल्फी ले और गर्मी की वजह से अपना मेकअप खराब होने की बात करे, तो इसका मतलब यह है कि नेताओं में इंसानियत नाम की चीज खत्म हो चुकी है।

Friday, April 15, 2016

राम के बाद भगवान कृष्ण पर दांव

सलीम अख्तर सिद्दीकी
उत्तर प्रदेश भाजपा ने एक पोस्टर जारी किया है। पोस्टर में भाजपा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष केशव मौर्य भगवान कृष्ण बने हैं। उत्तर प्रदेश को द्रौपदी के रूप में दिखाया है। पूरा विपक्ष कौरव बनकर द्रौपदी का चीर हरण करने में लगा है। भारतीय जनता पार्टी की सोच कितनी विकृत हो चुकी है, यह इस पोस्टर के जारी करने से पता चलता है। ऐसा लगता है कि भाजपा के पास चुनाव में उतरने के लिए कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जिस पर वह चुनाव लड़ सके। इसलिए वह एक तरह से छिछोरी हरकतों पर उतर आई लगती है। भाजपा किसी और तरीके से पोस्टर जारी कर सकती थी। इस पोस्टर को देखकर ऐसा लगता है कि केशव मौर्य को इसीलिए लाया गया है, जिससे वह प्रदेश में धार्मिक उन्माद भड़का सकें। लेकिन क्या इस तरह की हरकतों से भाजपा उत्तर प्रदेश में फतह पा सकेगी? यह अजीब बात है कि भाजपा ने अपने परंपरागत राम मंदिर मुद्दे को डस्टबिन के हवाले कर दिया है। केशव मौर्य कहते हैं कि राम मंदिर नहीं, विकास हमारा चुनावी मुद्दा होगा। जिस तरह का पोस्टर भाजपा ने जारी किया है, क्या उससे पता चलता कि वह विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहती है? यह अजब है कि भाजपा के नेता कहते रहे हैं कि हमें लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, इसलिए राममंदिर नहीं बन सकता। अब तो जनता ने उन्हें बहुमत से ज्यादा सीटें दे दी हैं, अब क्यों वह राम मंदिर बनाने से कन्नी काट रहे हैं? वैसे अब यह बहाना है कि चूंकि हमारा राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए हम राम मंदिर बनाने नहीं बना सकते। आखिर भाजपा नेता क्यों राम मंदिर से कन्नी काट रहे हैं? इसकी वजह यह है कि वे जानते हैं कि धौंसपट्टी और जबरदस्ती वे ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए उन्होंने राम मंदिर का राग छोड़कर अब भगवान कृष्ण और द्रौपदी को अपनी राजनीति का शिकार बना लिया है। वैसे यह बहुत ही हैरत की बात है कि भाजपा अध्यक्ष भगवान कृष्ण और द्रोपदी का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं और हिंदू समाज चुप है। क्या यह भगवान कृष्ण और द्रोपदी का अपमान नहीं है? वैसे जिन राजनीतिक दलों को भाजपा ने अपने पोस्टर में कौरव के रूप में दिखाया है, अगर वे एक जगह हो जाएं तो उन्हें उत्तर प्रदेश में एक सीटने के लिए भी लाले पड़ सकते हैं।

Thursday, April 14, 2016

अंबेडकर के नकली वारिस

Monday, April 11, 2016

देशभक्ति को दिखावे की चीज किसने बनाया?

सलीम अख्तर सिद्दीकी
अनुपम क्या हैं? एक एक्टर ही ना। हालांकि जब से उनकी पत्नी किरण खेर भाजपा से सांसद बनी हैं, उन्हें ‘सांसद पति’ कह सकते हैं। आजकल देश में प्रधान पति से लेकर सांसद पति होते हैं। जिनका काम अपनी पत्नी के नाम पर अपना नाम चमकाना होता है। अनुपम खेर वही कर रहे लगते हैं। अचानक उनके दिल में कश्मीरी पंडितों के लिए दर्द जाग गया है। वे खुद भी कश्मीरी पंडित हैं। अच्छा है। अपने लोगों का दर्द बांटना भी चाहिए। लेकिन क्या कश्मीरी पंडितों के साथ अभी कोई ज्यादती हुई है। कश्मीर से उन्हें दर-बदर हुए लगभग बीस साल होने जा रहे हैं। हमने कोई ऐसी खबर नहीं सुनी कि अनुपम खेर ने कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ किया हो।
2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आती है। उनकी पत्नी सांसद बनती हैं। इसके बाद अनुपम खेर के दिल में न केवल विस्थापित कश्मीरी पंडितों के दर्द उभर आता है, बल्कि वे राष्ट्रवाद के प्रखर हिमायती के रूप में उभर कर आते हैं। इसलिए वे अपनी कर्मस्थली महाराष्ट्र में सूखे से दम तोड़ते किसानों, पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसते मराठवाड़ा के लोगों को तड़पता छोड़कर श्रीनगर की एनआईटी में जाने के लिए जोरआजमाइश करते हैं। इसकी भी वजह है, जो पब्लिसिटी एनआईटी में जाने पर मिलती, वह गरीब किसानों के बीच जाने पर कहां मिलने वाली थी।
जब उन्हें श्रीनगर हवाई अड्डे से ही कश्मीर छोड़ने का फरमान उस सरकार ने जारी किया, जिसमें उनकी राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा सत्ता में साझीदार है, तो वह एक फाइव स्टार होटल से एक तस्वीर सोशल मीडिया में पोस्ट करते हैं, जिसमें वह तिरंगा पकडेÞ हुए हैं। साथ में लिख रहे हैं, ‘डियर एनआईटी स्टूडेंट, मैं यह तोहफा आपके बीच आकर आपको देना चाहता था। कोई बात नहीं फिर सही। तिरंगा हमारे दिलों में है।’
यकीनन तिरंगा और देशभक्ति लोगों के दिलों में होती है। उसे जाहिर करने के लिए तिंरगा हाथ में लेकर भारत माता की जय बोलने की जरूरत नहीं होती। हम भी वही कहते हैं, जो अनुपम ने कहा है। लेकिन दुर्र्भाग्य से अनुपम खेर जैसे लोगों ने तिरंगे और देशभक्ति को बाजार की चीज बना दिया। दिखावे की चीज बना दिया। वैसे अनुपम खेर के पास अच्छा मौका है। वह एनआईटी की घटना के विरोध में अपना पद्म भूषण वापस कर सकते हैं। देशभक्ति दिखाने का सुनहरा मौका।

Sunday, April 10, 2016

गिद्ध


रामदीन ने दो साल पहले ही तो अपने घर की उस छत को सही कराया था, जो थोड़ी बरसात में टपकने लगती थी। जब से छत ठीक कराई है, वर्षा रानी ने मुंह मोड़ लिया है। अगर उसे पता होता कि छत ठीक कराते ही आसमान से पानी गिरना बंद हो जाएगा तो वह छत ठीक ही नहीं कराता। उस पैसे से महाजन का थोड़ा कर्ज उतार देता। सुसरा कर्ज भी तो सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता रहता है। मूल तो तब जाए, जब ब्याज पूरा हो। दो साल से खेत सूखे पड़े हैं। अब तो लग रहा है, जैसे शहर का रुख करना ही पड़ेगा। यह सोचते हुए वह जब बाहर निकला और आसमान की ओर सिर उठाया तो सूरज की तेज किरणों ने उसे आंखें बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। दूर-दूर तक बंजर जमीन अकाल की आहट दे रही थी। 
उसकी पत्नी पानी लेने गांव से पांच किलोमीटर दूर गई है। सरकार ने वहां टैंकरों से पानी भेजने की बात कही थी। वह सोच रहा था, पता नहीं पानी मिलेगा भी या नहीं। उसकी जबान प्यास की वजह से तालू से चिपकी जा रही थी। वह अपने सूखे होंठों पर बार-बार जबान फेरकर उन्हें तर करता रहता। बड़ी हसरत से कोने में रखे घड़े को देखता। उसमें पानी के चंद कतरे बचे थे। वे उन कतरों को पी लेगा तो पत्नी थककर आएगी तो वह क्या करेगी। फिर उसे ख्याल आता कि वह तो पानी लेकर आएगी। पीकर भी आएगी। यह सोचकर उसके हाथ घड़े की ओर बढ़ते। फिर अगले पल ही उसके जेहन में कई सवाल एक साथ कौंध जाते। अगर पानी का टैंकर किसी वजह से नहीं आया तो? उसे पानी भरने का मौका नहीं मिला तो? उसने किसी से सुना था कि कैसे टैंकर से पानी लेने के लिए लोग लड़ रहे थे। उसने एक बार फिर घड़े की ओर से मुंह फेर लिया।
बाहर आहट हुई। रामदीन बाहर निकला। पत्नी पसीने से तरबतर होकर हांफ रही थी। घड़ा खाली था। मतलब पानी नहीं मिला था। वह तेज धूप की वजह से बिल्कुल सूख गया था। बिल्कुल ऐसे, जैसे उसके खेत सूखे गए हैं। रामदीन ने एक बार फिर आसमान की ओर देखा। पत्नी ने भी उसका अनुसरण किया। सूरज कहर बरसा रहा था। जैसे सब कुछ जलाकर खाक कर देना चाहता हो। 
पत्नी के मुंह से बरबस निकला, अकाल है यह तो। फिर कुछ सोचकर रामदीन की ओर देखकर बोली, सुना है अकाल की आहट होते ही गिद्ध आसमान पर मंडराने लगते हैं। गिद्ध तो कहीं भी नहीं दिखाई दे रहे। रामदीन को पत्नी की बात जंची। उसके दिल के किसी कोने से आवाज आई। इसका मतलब अकाल नहीं आएगा। 
शाम हो चली थी। वह घड़ा बगल में दबाकर सरपंच के घर की ओर चल दिया। वहीं से थोड़ा बहुत पानी मिलने की उम्मीद थी। सरपंच की बैठक में रंगीन टीवी लगा है। सरपंच का बेटा शहर से आया हुआ है। वह उत्सुकता से टीवी पर नजर गड़ाए है। आइपीएल टूर्नामेंट का उद्घाटन होने वाला है। रामदीन की नजरें भी टीवी पर जम गर्इं। बहुत बड़ा मैदान है। बिल्कुल हरा-भरा। उसने बहुत दिनों बाद हरियाली देखी थी। 
मैदान पर एक पानी का टैंकर आया है। एक मोटे पाइप से पानी की मोटी धार मैदान पर बहने लगी। यह देखकर रामदीन को पानी याद आ गया। वह सरपंच के लड़के से बोला, साहब थोड़ा पानी मिल जाएगा क्या? पत्नी गई थी पानी लेने, लेकिन मिला नहीं। सरपंच के बेटे ने टीवी से नजरें हटाकर अपने पीछे की ओर देखा। रामदीन हाथ जोड़े खड़ा था। सरपंच के बेटे ने कुछ सोचा और बोला, हां...हां ले लो। लेकिन एक घड़े से ज्यादा मत लेना। और किसी को बताना भी मत। कल ही छह टैंकर पिताजी ने मुश्किल से मंगवाकर टंकियों में भरवाए हैं। यह कहते हुए उसने टीवी का चैनल बदल दिया। अब टीवी पर एक शहर का नजारा दिख रहा था। पुलिस के संरक्षण में पानी बांटा जा रहा था। लोग लड़ रहे थे। हरेक को सबसे पहले पानी लेने की जल्दी थी। पानी...जिसका कोई रंग नहीं होता, लेकिन जिंदगी होता है। बेशकीमती पानी। वही पानी, जिसे दूसरी जगह एक तमाशे के लिए बरबाद किया जा रहा था। वही पानी, जिस पर सबका हक है, लेकिन एक वर्ग उस पर डाका डाल रहा है।
रामदीन के जेहन में अपनी पत्नी के शब्द गूंज उठे। सुना है, अकाल की आहट होते ही आसमान में गिद्ध मंडराने लगते हैं, लेकिन गिद्ध तो दिखाई ही नहीं दे रहे। रामदीन ने अपने घड़े में पानी भरा। घर जाते हुए सोचने लगा कि पत्नी से बताऊंगा कि वह गलत कहती है कि गिद्ध दिखाई नहीं दे रहे हैं। बात बस इतनी सी है कि इंसान गिद्धों को मारकर खुद गिद्ध बन बैठा है। 

Wednesday, April 6, 2016

देशभक्ति से पहले ‘कारोबार’ जरूरी

सलीम अख्तर सिद्दीकी
देश भर के सर्राफा व्यापारी ज्वेलरी पर एक प्रतिशत एक्साइज लगाने के खिलाफ पिछले 36 दिन से हड़ताल पर हैं। सर्राफा व्यापारियों की सोच थी कि केंद्र की मोदी सरकार तो ‘अपनी’ है, इसे वह जब चाहेंगे झुका लेंगे। उनके जेहन में यह भी चल रहा होगा कि जिस तरह यूपीए सरकार के दौरान एक्साइज लगाने  के विरोध में 21 दिन तक हड़ताल करके सरकार को ‘झुका’ लिया गया था, उसी तरह मोदी सरकार भी झुक जाएगी। ऊपर से यह अहंकार भी कि हम भाजपा के परंपरागत वोटर हैं, इसलिए हमारा हक बनता है कि सरकार हमारे ‘अच्छे दिन’ लाने की सोचे। लेकिन अब सर्राफा व्यापारियों का अहंकार टूटने लगा है और गलतफहमी दूर होने लगी है।
मेरठ सदर सर्राफा व्यापारियों के बीच जाने पर पता चला कि उनकी मायूसी अब खीज में बदलने लगी है। वे उस हर आदमी को शक की नजर से देखने लगे हैं, जो उनके बीच जाकर आंदोलन और उनकी मांगों के बारे में जानना चाहता है। उनसे बातचीत से पता चला कि उन्हें अपने ‘कारोबार’ की चिंता है। उस कारोबार की जो, कच्ची पर्चियों पर चलता है। बिना टैक्स के करोड़ों का व्यापार किया जाता है। जो ज्वेलरी वे किसी ग्राहक को 10 हजार रुपये में बेचते हैं, वही ज्वेलरी जब दो दिन बाद वही ग्राहक बेचने के लिए उसी ज्वेलर्स के पास जाता है, तो ग्राहक को सात हजार रुपये देने की बात करता है। इसकी वजह साफ है, उसने माल ही सात हजार रुपये वाला दिया था, कैसे 10 हजार में खरीद ले? जब ज्वेलरी एक नंबर में बिकेगी तो व्यापारी को बताना भी पड़ेगा कि इसमें कितना सोना है, कितना पीतल या तांबा है? बस यही ‘कारोबार’ बचाने की लड़ाई सर्राफ लड़ रहे हैं। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि यदि ज्वेलरी टैक्स के दायरे में आ जाएगी, तो जिस काले धन से ज्वेलरी खरीदी जाती है, वह बाहर आ आएगा। धरने पर बैठे सर्राफा व्यापारी खांटी के भाजपाई हैं। भाजपा से हैं, तो देशभक्त होना लाजिमी है। लेकिन वे ऐसे देशभक्त कतई नहीं बनना चाहते, जिससे उनके ‘कारोबार’ पर चोट लगे। जबानी जमा खर्च वाले देशभक्त बनने से उन्हें कोई गुरेज नहीं है। ये किसी ने नहीं सोचा था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की झोली वोटों से भर देने वाले सर्राफा व्यापारी एक दिन ‘मोदी हाय हाय’, ‘जेटली हाय हाय’ के  नारे लगाएंगे। यही व्यापारी थे, जो 2014 में भाजपा और मोदी का विरोध करने वाले का गिरेबां तक पकड़ लेते थे। आज गधों पर ‘मोदी’ और ‘जेटली’ लिखकर सड़कों पर छोड़ा जा रहा है।देशहित और देशभक्ति से पहले ‘कारोबार’ जरूरी है, यह सर्राफा व्यापारियों ने बता दिया है।

Tuesday, April 5, 2016

छोटे अफसर बने बलि का बकरा

सलीम अख्तर सिद्दीकी
पीलीभीत में जब 10 सिखों को आतंकवादी बताकर मार डाला गया था, जब पीलीभीत के एसपी सिटी आरडी त्रिपाठी थे। वे आज भी सीना ठोक कर कह रहे हैं कि मारे गए सिख हार्डकोर आतंकवादी थे। आरडी त्रिपाठी आज इसलिए ऐसा बोल पा रहे हैं, क्योंकि सीबीआई ने पक्षपात करते हुए उनका नाम फर्जी मुठभेड़ मामले से निकाल दिया था। 1987 में आरडी त्रिपाठी तब भी सुर्खियों में आए थे, जब वे पीएसी के कमांडेंट थे और पीएसी ने मलियाना में 73 लोगों को मार डाला था। तब तत्कालीन गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित ने उन्हें सस्पेंड करने की घोषणा मलियाना में खुद मेरे सामने की थी, लेकिन अगले दिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका खंडन कर दिया था।
सामूहिक हत्याकांडों में बड़े अफसर हमेशा बचते रहे हैं। छोटे अधिकारियों को बलि का बकरा बनाया जाता रहा है। पीलीभीत में भी ऐसा ही हुआ है। सजा पाए पुलिसकर्मी कह रहे हैं कि बड़े अधिकारियों को बचा लिया गया, लेकिन हमें फंसा दिया गया है। उनका कहना सही है, इतना बड़ा कांड वरिष्ठ अधिकारियों की सहमति और साजिश के बगैर नहीं हो सकता। वैसे भी उस वक्त तो आतंकवादियों को ‘खत्म’ करने की पूरी छूट सरकार ने दे रखी थी।
इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उत्तर प्रदेश सरकार की भी इसमें रजामंदी रही हो। पीलीभीत के हत्यारे पुलिसकर्मियों को तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने न सिर्फ पुलिसकर्मियों की ‘आतंकवादियों’ को मार गिराए जाने की खुले दिल से प्रशंसा की थी, बल्कि उन्हें उनकी ‘बहादुरी’ के लिए  पुरस्कृत भी किया था। इंकार तो इससे भी नहीं किया जा सकता कि यदि मरने वालों के परिवारजन और कुछ स्वयंसेवी संगठन इस हत्याकांड के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आते, तो कल्याण सिंह सरकार उन्हें ‘बख्श’ देती।  वैसे भी उत्तर प्रदेश सरकार मुठभेड़ के आरोपी पुलिसकर्मियों को इस बीच तरक्की भी करती रही।  यह विडंबनचा है कि फर्जी मुठभेड़ के मुजरिमों को  कल्याण सिंह सरकार ने ही नहीं, हर सरकार ने बचाने की हर संभव कोशिश की थी। लेकिन मरने वालों के परिजनों की मुस्तैद पैरवी के आगे किसी की नहीं चली। 25 साल बाद ही सही, मरने वालों को इंसाफ मिला तो सही।

Monday, April 4, 2016

देश में ‘नीरो’ की सरकार

सलीम अख्तर सिद्दीकी
गुजरात में अब एक शिक्षण संस्थान ने ऐलान किया है कि जिसे भी संस्थान में एडमिशन लेना है, उसे एप्लीकेशन फॉर्म में ‘भारत माता की जय’ लिखना होगा। ऐसा नहीं करने पर संस्थान में एडमिशन नहीं दिया जाएगा। ये ऐलान अमरेली के एजुकेशन ट्रस्ट श्री पटेल विद्यार्थी आश्रम की ओर से किया गया है। इस ट्रस्ट के मुखिया भाजपा नेता दिलीप संघानी हैं।
बाबा रामदेव के कानून ने हाथ बांध रखे हैं, वरना वह क्या गुजरते, यह सोचकर की सिहरन होने लगी है। यह वही रामदेव हैं, जो रामलीला मैदान से महिलाओं के कपड़े पहनकर फरार हुए थे। उधर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी गरज रहे हैं कि जो भारत माता की जय नहीं बोले, उसे भारत में रहने का अधिकार नहीं है। फड़नवीस को पहले अपने राज्य की जनता को पीने का पीने देना चाहिए, उसके बाद कुछ कहना चाहिए। जैसे भूखे पेट भजन नहीं होता, ऐसे प्यास से ऐंठी जबान से भारत माता की जय निकलना मुश्किल है।
देश की सभी समस्याओं का हल भारत माता की जय में समा गया है। संघ परिवार के नेताओं को यही समझ में नहीं आ रहा है कि वे ‘जुनूं’ में क्या-क्या कह रहे हैं। जब उनका जुनून उतरता है, तो फिर कहते फिरते हैं कि मेरी बात को ‘तरोड़ मरोड़’ कर पेश किया गया है। वैसे भारत माता की जय का खुमार पांच राज्यों के चुनाव के नतीजे आते ही उतर जाएगा। जैसे बिहार में बीफ का उतर गया था। हां, उत्तर प्रदेश में अभी एक साल तक भारत माता की जय का उद्घोष चलता रहेगा।
यह कैसी विडंबना है कि जो भारतीय जनता पार्टी विकास-विकास चिल्ला रही थी, राज्यों के चुनाव जीतने के लिए सांप्रदायिक धु्रवीकरण का सहारा ले रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कहते नहीं अघाते कि भारत तेजी से विकास कर रहा है। वे यह कहने से भी नहीं चूकते कि दुनिया भी भारत को चमकता सितारा बता रही है। लेकिन सच तो यह है कि देश की जनता हाहाकार कर रही है। जनता हर मोर्चे पर जूझ रही है।
लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन कहती हैं कि जब पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं, तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते। ऐसा लगता है कि देश में ‘नीरो’ की सरकार चल रही है।

Sunday, April 3, 2016

अब भगवा और वंदेमातरम का वितंडा

सलीम अख्तर सिद्दीकी
संघ परिवार की ओर से बेतुके बयान तभी क्यों आते हैं, जब चुनाव हो रहे होते हैं? यह जानने के बावजूद भी कि इस तरह के बयान भाजपा को नुकसान पहुंचाते रहे हैं? संघ की इस रणनीति के पीछे क्या वजह हो सकत है, यह तो वही जाने, लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी सरकार की लगातर विफलता के बाद संघ परिवार को यह लगता है कि अब अंतिम हथियार राष्ट्रवाद ही बचा है, जिसके सहारे डूबती नैया को बचाया जा सकता है। तभी तो वह भगवा ध्वज बनाम तिरंगा और राष्ट्रगान बनाम वंदेमातरम का वितंडा खड़ा कर देती है। भाजपा एक अरसे से कहती रही है कि हमें लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, इसलिए वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती। राम मंदिर मामले में भी उसका यही कहना था। वह बार-बार कहती रही है कि पूर्ण बहुमत आते ही मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा। अब भाजपा के पास 340 सीटें हैं। अब वह क्यों राम मंदिर बनाने का वादा पूरा क्यों नहीं कर रही है। अगर भगवा ध्वज तिरंगा से ज्यादा अच्छा है, तो उसे बदल क्यों नहीं देते? राष्ट्रगान की जगह वंदेमातरम क्यों नहीं ले आते? अब तो बहाना भी नहीं है कि हमारा बहुमत नहीं है। लेकिन है, बहाना है। राज्यसभा में हमारा बहुमत नहीं है। इसका इलाज भी तो है आपके पास। संयुक्त अधिवेशन बुलाकर  सारे कानून पास करा लीजिए ना? कौन रोक रहा है आपको? यूं भी बकौल आपके पूरा देश मोदी सरकार के कसीदे काढ़ रहा है। जयजयकार हो रही है पूरी दुनिया में। इन किसानों और सुनारों की बात जाने दीजिए ना। ये तो  एहसान फरामोश हैं। छोटी-छोटी बचत करने वाले लोगों का भी क्या है, इन्हें ये हक कहां पहुंचता है कि वे अपने भविष्य के लिए कुछ बचत  कर सकें? इन लोगों का ब्याज कम करके ही तो तो पूंजीपतियों को दिए जाने वालों को कम ब्याज पर कर्ज दिया जाएगा। देश गरीब गुरबे नहीं चलाते, पूंजीपति चलाते हैं।
सच तो यह है कि मोदी सरकार की कुछ करने की नीयत ही नहीं है। यह तो बस वितंडा खड़ा करके देश में ऐसे हालात बनाए रखना चाहती है, जिससे लोग रोजी-रोजी को भूलकर तथाकथित राष्ट्रवाद पर बहस में उलझे रहें। देश की जयजयकार करते रहिए। मोदी सरकार के गुण गाते रहिए। यही भाजपा का मिशन है। इससे आगे की जो बात करेगा, वह देशद्रोही है।

Friday, April 1, 2016

हंगामा खड़ा करना है मकसद

सलीम अख्तर सिद्दीकी
देश में ‘भारत माता की जय’ बोलना या ना बोलना, सबसे बड़ी समस्या बन गया है। इसके बोलने के पक्ष में दलील देने वाले कहते हैं कि ऐसा बोलना देशभक्ति की निशानी है। विरोध करने वाले कहते हैं कि देशभक्ति नारों से नहीं आती। इधर, दारुल देवबंद ने इसे इसलाम विरोधी बता दिया है। भागवत कह ही चुके हैं कि भारत माता की जय बोलना किसी पर जबरदस्ती थोपा नहीं जा सकता। भागवत सही कहते हैं, लेकिन उनके कुनबे के लोग ऐसा नहीं मानते। वे आए दिन इसे लेकर बखेड़ा करते रहते हैं। माहौल ऐसा बना दिया गया है, जैसे भारत माता की जय बोलना ही देशभक्ति मापने का एकमात्र पैमाना हो। वे ये नहीं समझ पा रहे हैं कि देशभक्ति का जज्बा अंदर से पैदा होता है। दिखावे के लिए बोला जाने वाला कोई भी नारा खोखला ही होता है। ऐसा नहीं है कि जो लोग भारत माता की जय नहीं बोल रहे, वे देशभक्त नहीं हैं? सच तो यह है कि जो लोग भारत माता की जय नहीं बोलते, वे शायद ऐसा कहने वालों से ज्यादा ही देशभक्त होंगे। वैसे भी देशभक्ति वक्त आने पर साबित की जाती है। जब-जब देश को जरूरत हुई है, तब-तब उन लोगों ने देश के लिए अपनी कुरबानियां दी हैं, जो भारत माता की जय या वंदेमातरम् बोलने से परहेज करते रहे हैं। दारूल उलूम देवबंद की जंग-ए-आजादी के लड़ाई में बहुत अहम भूमिका रही है। इसके विपरीत उन लोगों ने आजादी की लड़ाई से दूरी बनाकर रखी है, जो आज भारत माता की जय बोलकर या उसे दूसरों पर थोपकर देशभक्ति का दिखावा कर रहे हैं। दारूल उलूम ने सही कहा है कि अपने देश से प्यार करना, उसका वफादार रहना हर मुसलमान का फर्ज है, लेकिन वह देश की पूजा नहीं कर सकता, क्योंकि वह सिर्फ अल्लाह के सामने ही सिर झुका सकता है। सांप्रदायिक संगठनों ने जिस तरह से भारत माता की जय को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, उससे सिवाय दिलों में दूरियां बनने के कुछ नहीं होगा। देश से सभी प्यार करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ लोग इसका दिखावा करते हैं, कुछ वक्त आने पर देश के लिए जान दे देते हैं। वे संगठन जो भारत माता की जय बोलने पर कुछ ज्यादा की जोर दे रहे हैं, वे हालात को समझें और मान लें कि किसी पर कोई नारा थोपा नहीं जा सकता। लेकिन जब मकसद ही हंगामा खड़ा करना हो तो क्या किया जा सकता है।