Thursday, March 31, 2016

पठानकोट में जांच का ड्रामा

सलीम अख्तर सिद्दीकी
इससे ज्यादा हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि पाकिस्तान की एक टीम, जिसमें वहां की बदनाम-ए-जमाना इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई का भी नुमाइंदा शामिल है, पाठानकोट एयरबेस पर हुए हमले की जांच कर रही है। आखिर इस तरह की जांच का औचित्य क्या है? क्या पाकिस्तान मान जाएगा कि हां, हमने या हमारे यहां के नॉन एक्टर्स लोगों ने इसे अंजाम दिया था? मान भी  गया तो क्या हो जाएगा? आखिर भारत सरकार अपनी कमजोरी को पाकिस्तान के पीछे क्यों छिपाना चाहता है। जब पठानकोट एयरबेस पर हमाल हुआ था, उससे तीन दिन पहले ही यह इनपुट मिल गया था कि आतंकवादी पठानकोट में प्रवेश कर चुके हैं। तीन दिन तक हमारी गुप्तचर एजेंसियां उन्हें ढूंढ नहीं पाई। क्या यह हमारी सुरक्षा और गुप्तचर एजेंसियों की नाकामी नहीं थी? हैरत की बात यह है कि पठानकोट में एयरबेस ही ऐसी  जगह थी, जिसकी सुरक्षा कड़ी करनी चाहिए थी? पठानकोट में आतंकवादियों की दिलचस्पी वहां की बिरयानी खाने में तो नहीं ही रही होगी। उनका निशाना एयरबेस ही होना था। उसे खुला क्यों छोड़ दिया गया? बाद में पता चला कि एयरबेस में वहां इतने छेद हैं कि स्थानीय लोग उसमें आराम से चले और आ जाते हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पठानकोट के एसपी सलविंदर सिंह को क्यों क्लीन चिट दी गई? सुरक्षा एजेंसियों की इससे बड़ी नाकामी क्या होगी कि अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि एयरबेस में कितने आतंकवादी घुसे थे? पाकिस्तान की जांच टीम आई जरूर है, लेकिन उसे किस तरह जांच करने दिया जा रहा है, यह इससे पता चलता है कि उसे चुनिंदा जगह ही जाने की अनुमति मिली है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर कहती है कि पाकिस्तानी की जांच टीम जेआईटी के सदस्यों के साथ भारतीय वायुसेना के किसी भी अधिकारी से संपर्क नहीं कराया जाएगा। अभी यह नहीं पता कि जांच टीम अपने देश में जाकर क्या कहेगी? हो सकता है कि वह यह कह दे कि हमें जो सबूत दिखाये गए वो पर्याप्त नहीं हैं? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या पाकिस्तान भारत को हाफिज सईद से लेकर मसूद अजहर तक से पूछताछ करने की इजाजत दे देगा? यह जांच-वांच का ड्रामा बंद करके भारत को अपनी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने की जरूरत है।

Tuesday, March 29, 2016

दिलचस्प मोड़ पर उत्तराखंड की राजनीति

सलीम अख्तर सिद्दीकी
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल ही अपने ब्लॉग में लिखा था कि क्यों उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला संविधान सम्मत है? लेकिन नैनीताल हाईकोर्ट ने 31 मार्च को विधानसभा में शक्ति परीक्षण करने का फैसला देकर उनकी दलीलों को दरकिनार कर दिया है। 31 मार्च को हरीश रावत सरकार अपना बहुमत साबित कर पाएगी या नहीं, यह अलग सवाल है, लेकिन कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार को करारा झटका देकर उसे बता दिया है कि धारा 356 का दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस के उन बागी 9 विधायकों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है, जो संभवत: भाजपा के कहने पर बागी हुए थे। भले ही भाजपा यह कहती रहे कि कांग्रेस में हुई बगावत से उसका कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन भाजपा शासित राज्य हरियाणा के गुड़गांव के पांच सितारा होटल में उनकी खातिरदार कौन कर रहा है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि बागी कांग्रेसी नौ विधायकों का भविष्य क्या होगा? क्या वे माफी मांगकर कांग्रेस में आएंगे? क्या वे भाजपा में शामिल होंगे? या अपनी कोई नई पार्टी बनाएंगे? यह मुमकिन नहीं लगता कि इतनी बड़ी बगावत के बाद कांग्रेस आलाकमान उन्हें माफी दे देगा। भाजपा उन्हें लेने से इसलिए कतराएगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट देना पड़ेगा। इससे खुद भाजपा में बगावत होने का डर पैदा हो जाएगा। आखिर वे भाजपा नेता क्यों ऐसे नेताओं को स्वीकार करेंगे, जिनसे उन्हें अपना हक छिनता हुआ दिखाई देगा? रही बात नई पार्टी बनाने की, तो हो सकता है कि ऐसा हो जाए। लेकिन क्या वे नौ विधायक इतने बड़े कद के हैं कि उन्हें जनता स्वीकार कर लेगी? यकीनन 31 मार्च उत्तराखंड की सियासत में नया अध्याय लिखेगी। यदि कांग्रेस अपना बहुमत साबित करने में कामयाब हो जाती है, तो केंद्र की मोदी सरकार पर यह करारा तमाचा होगा। यदि हरीश रावत विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रहते हैं, तो यह तय है कि भाजपा महज चंद महीनों की सरकार बनाने से परहेज करेगी। इस सूरत में यही बचता है कि उत्तराखंड में नए चुनाव कराए जाएं। केंद्र की मोदी सरकार की यही मंशा लगती है। ताज्जुब नहीं होना चाहिए इस साल पांच राज्य के साथ उत्तराखंड में चुनाव की घोषणा हो जाए। हाईकोर्ट का फैसला कांग्रेस को यह राहत भी दे सकता है कि केंद्र सरकार अब अन्य कांग्रेसी सरकारों से छेड़छाड़ करने से परहेज करेगी।

Monday, March 28, 2016

धारा 356 की चाबुक

सलीम अख्तर सिद्दीकी
अरुणाचल प्रदेश में धारा-356 के दुरुपयोग के बाद एक बार इस धारा का जबरदस्त तरीके से दुरुपयोग करे उत्तराखंड की सरकार को गिराकर केंद्र की मोदी सरकार अपना ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का सपना पूरा करना चाहती है। दिल्ली और बिहार की हार से बौखलाई मोदी सरकार ने उन
छोट राज्यों पर अपनी गिद्ध नजरें गड़ा दी हैं, जहां पर कांग्रेस की सरकारे हैं। यह वही भाजपा है, जो धारा 356 के इस्तेमाल को गलत बताती रही है। हैरत इस बात की है कि एक शांत राज्य उत्तराखंड में उसे संवैधिानिक संकट नजर आता है, लेकिन पिछले दिनों हरियाणा में जाट आरक्षण के चलते हुई अभूतपूर्व हिंसा मामूली कानून व्यवस्था का मामला लगती है। मोदी सरकार ने राज्यों में चुन-चुनकर ऐसे राज्यपाल नियुक्त किए हैं, जो पूरी तरह से केंद्र सरकार के एजेंट बनकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने का काम कर रहे हैं। त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय तो एक तरह से आरएसएस का एजेंडा लागू कर रहे हैं। वह फेसबुक और ट्विटर पर निहायत ही घृणास्पद सांप्रदायिक टिप्पणियां करते रहते हैं। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक भी भाजपा नेता की तरह बर्ताव करके एक तरह से विपक्ष की नेता की भूमिका में हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के बोम्मई केस का फैसला देते समय धारा 356 के दुरुपयोग को रोकने की कोशिश की थी। उस फैसले में साफ कहा गया था कि ‘किसी सरकार की किस्मत का फैसला राजभवन में नहीं हो सकता है, बल्कि विधानसभा में शक्ति परीक्षण के जरिए ही हो सकता है।’ इस फैसले में यह भी साफ कर दिया गया था कि, ‘किसी राज्य सरकार के बर्खास्त किए जाने और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के कारण, न्यायिक समीक्षा के दायरे में आते हैं।’
भाजपा भले ही कहती रहे कि वह दूसरी पार्टियों से अलग है, लेकिन लगता है कि वह कांग्रेस से भी गई गुजरी पार्टी बन चुकी है। अरुणाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड की सरकार गिराकर उसने साबित कर दिया है कि वह भी कांग्रेस सरकारों की तरह ही अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए धारा 356 जैसे काले कानून का सहारा लेने से नहीं चूकेगी। कांग्रेस ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है, जो उसे देनी भी चाहिए। आखिर कब तक धारा 356 का सहारा लेकर लोकतंत्र का गला घोटा जाता रहेगा? 

Sunday, March 27, 2016

रेलवे की अब बच्चों पर मार

सलीम अख्तर सिद्दीकी
मोदी सरकार बच्चों को भी नहीं बख्श रही है। आधे टिकट पर सीट न देने का क्रूर फरमान दरअसल आधा टिकट को खत्म करने की कवायद भर है, जो वह पीछे के दरवाजे से लागू कर रही है। सामने आकर आधा टिकट खत्म करने की उसमें हिम्मत नहीं है। जनरल डिब्बों में तो वैसे ही क्या पूरा क्या आधा टिकट, वैसे भी सीट नहीं मिलती है। स्लीपर क्लास में लंबी दूरी की यात्रा करने वाला बच्चा कैसे आधे टिकट पर बिना सीट के सफर करेगा, इसका ध्यान सरकार ने नहीं रखा है। इसलिए अब अपने बच्चे की ‘मुश्किल’(भक्तों का यही कहना है कि बच्चों को ‘थोड़ी मुश्किल’ होगी) आसान करने के लिए मां-बाप पूरा टिकट लेना ही सही समझेंगे। कौन चाहेगा कि चंद रुपयों की खातिर लंबी दूरी उनका बच्चा तकलीफ में पूरी करे? संभवत: सरकार की भी यही सोच है कि अभिभावक ‘मरता क्या न करता’  की तर्ज पर अपने बच्चे पर पूरा पैसा खर्च करेंगे ही। वैसे भी स्लीपर क्लॉस में मिडिल क्लास सफर करता है, जिसके बारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही कह चुके हैं कि वह अपना ख्याल खुद रखे। इस नई व्यवस्था से रेलवे को 525 करोड़ रुपये सालाना की आय होगी। इस तरह सरकार की झोली लबालब भर जाएगी। जो मां-बाप अपने बच्चे का पूरा टिकट लेने में असमर्थ होंगे, उन्हें आधा टिकट लेकर भी बेसीट होना पड़ेगा। उसके हिस्से की सीट पूरे पैसे लेकर किसी और को दे दी जाएगी। बच्चों के हक पर डाका डालकर देश में हर साल 2 करोड़ अतिरिक्त सीटें उपलब्ध होने का दावा करने के साथ ही इस व्यवस्था को रोजाना 54 नई ट्रेन चलाने जैसा बताया जा रहा है।
सरकार ने रेलवे को दूध देने वाली गया समझ लिया है। इससे पहले रेलवे जनरल टिकट की वैधता मात्र तीन घंटे कर चुकी है। यानी अगर जनरल टिकट लेकर तीन घंटे के अंदर यात्रा नहीं करते हैं, तो वह अवैध हो जाएगा। दो साल होने को आए रेलवे ने यात्रियों पर तो भारी वित्तीय बोझ डाल दिया है, लेकिन रेलवे में कोई बड़ा सुधार हुआ हो, ऐसा अभी नजर नहीं आ रहा है। जो सरकार बच्चों के हक पर डाका डालने से भी नहीं कतरा रही है, वह कब कफन पर भी टैक्स थोप देगी, कुछ नहीं का जा सकता। हर रोज थोड़ा-थोड़ा मारने के बजाय सरकार एक बार ही जनता को क्यों नहीं मार देती।