Friday, December 18, 2015

रामदीन की टपकती छत और बुलेट ट्रेन

सलीम अख्तर सिद्दीकी
रामदीन के कमरे की छत टपकती है। बरसात में कहां बैठें, कहां सोएं, इसके लाले पड़ जाते हैं। वह हमेशा सोचता था कि बस अगले महीने कुछ बचत हो जाएगी तो सबसे पहले कमरे की छत सही करायगा। लेकिन वह अगला महीना कभी नहीं आया। फिर उसने अच्छे दिन आने की बात सुनी। वह अच्छे दिनों के ख्वाब बुनने लगा। ह्यअच्छे दिन आने वाले हैंह्ण स्लोगन देने वालों का राज आ गया। डेढ़ साल से ज्यादा गुजर गया। लेकिन उसके अच्छे दिन नहीं आए। लोग उससे कहने लगे कि अच्छे दिन आएंगे तो एक जुमला था। वे कभी नहीं आएंगे। लेकिन वह अभी भी उम्मीद से था। बस यही कहता था, अभी वक्त दिया जाना चाहिए। इतनी जल्दी अच्छे दिन नहीं आ सकते। फिर एक दिन उसने अखबार में खबर पढ़ी कि देश में जल्दी ही बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी। उसके लिए जापान जैसा साहूकार देश में बुलेट ट्रेन चलाने के लिए भारी भरकम कर्ज देने के लिए तैयार हो गया है। वह खुशी से फूला नहीं समाया।
उसे अब उम्मीद हो चली थी कि अच्छे दिन जरूर आएंगे। रामदीन के एक मित्र ने उसका हौसला यह कहकर बढ़ा दिया कि बड़ा सोचोगे तो तभी कुछ बड़ा कर पाओगे। जैसा बुलेट ट्रेन चलाने वालों ने सोचा है। कर्ज लिया है तो क्या, सब सही हो जाएगा। 50 साल तो यूं ही बीत जाएंगे। बुलेट ट्रेन चल जाएगी तो देश का दुनिया में नाम होगा। उसके दिमाग में बड़ा सोचने और बड़ा करने की बैठ गई। वह अपने घर की टपकती छत को भूल गया। अब उसे लगने लगा कि उसके घर में एसी होना चाहिए। घर में एसी लग जाएगा तो समाज में उसकी इज्जत बढ़ जाएगी। उसने अपनी पत्नी से एसी लगवाने का जिक्र किया तो पत्नी बोली, तुम्हारा दिमाग चल गया है क्या? घर की छत सही कराने के लिए पैसा नहीं है, चले हैं एसी लगवाने। उसने पत्नी को समझाया, बैंक से पैसा ले लेंगे। किस्तों में अदा हो जाएगा। जब तक बड़ा नहीं सोचेंगे, तब तक कुछ होगा। देखा नहीं सरकार की रेल कितनी व्यवस्था कितनी खराब है, फिर भी कर्ज लेकर बुलेट ट्रेन चला रही है?
पति की इस बात से पत्नी को लगा कि उसके पति का दिमाग ठिकाने पर नहीं रहा है। वह कहने लगी, बुलेट ट्रेन से पहले नई रेलगाड़ियां तो चलाते नहीं। देखा नहीं, जब गांव जाते हैं तो कैसे रेल में बोरों की तरह ठूंस कर जाते हैं। कहीं जाना हो तो एक महीना पहले रिजर्वेशन कराना पड़ता है। किसी वजह से न जाओ पाओ तो टिकट वापस करने पर कुछ भी हाथ में नहीं आता। अब तो अपने मुन्ने का आधा टिकट भी देना बंद कर दिया है रेल वालों ने। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बुलेट ट्रेन क्या हमारे लिए चल रही है? सरकार हमारी जेब से ही बुलेट टेÑन का खर्च निकालेगी और मजे अमीर लोग लेंगे। तुम एसी लगवाकर किसकी जेब से पैसे निकलवाओगे? जब बिजली का बिल दोगुना आएगा तो क्या शिंजो उसे भरेंगे? रामदीन की समझ में आ गया। उसने पहले अपनी घर की छत सही कराने का फैसला कर लिया और सोचने लगा कि हमारी सरकार को इतनी छोटी बात क्यों समझ में नहीं आई, जो मेरी पत्नी के भी समझ में आ गई?

Wednesday, December 2, 2015

गंदगी विचारधारा में है

सलीम अख्तर सिद्दीकी
संसद में इनटॉलरेंस पर जो बहस हुई और संसद से बाहर इस पर जो बहस हो रही थी, उसमें जरा भी अंतर नहीं है। आखिर इस बहस का नतीजा क्या निकला? कुछ नहीं। महामहिम की बात पर गौर कीजिए, जब तक दिमाग से गंदगी नहीं निकालेंगे, तब तक हम डर और अविश्वास के माहौल में जीते रहेंगे। जो महामहिम ने कहा, वही तो आमिर खान ने भी कहा था। चूंकि आमिर खान ‘सॉफ्ट टारगेट’ हैं, महामहिम नहीं हैं, इसलिए चुप्पी लगा ली गई। यही बात अगर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कही होती, तो शायद हंगामा बरपा हो चुका होता। उन्हें भी पाकिस्तान भेजने की बात की जाती। यही वह गंदगी है, जिसे महामहिम दिमाग से निकालने की बात कर रहे हैं। यानी एक वर्ग देश पर अपना एकाधिकार मानने से परहेज करे। बदकिस्मती से देश पर उन तत्त्वों का राज आ गया है, तो अपने अलावा सबको देशविरोधी और पाकिस्तानी मानते हैं। इसलिए भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कहने लगे हैं कि किसी की देशभक्ति की पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन उनकी ‘विचारधारा’ ऐसा नहीं मानती। वह अपने विरोध को देश विरोध मान लेती है। ऐसे ही जैसे मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते अपनी हर आलोचना को हिंदुओं की आलोचना से जोड़ दिया था। इसलिए मोदी कहा यह आश्वस्त नहीं कर पाता कि देश में इनटॉलरेंस इतनी जल्दी खत्म हो जाएगी।
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