Monday, February 17, 2014

पैरों की जूती


सलीम अख्तर सिद्दीकी
अपने एक पुराने दोस्त के गांव में उसके घर पर बैठा हुआ था। शाम ढल चल चुकी थी। अंधेरा बढ़ने लगा था। घर क्या, वह पूरा महल सरीखा था, लेकिन उसमें गांव की महक समाईहुईथी। परंपरागत मूढ़े पड़े थे, जिन पर बैठकर लोग रात गए तक किन्हीं मुद्दों पर चर्चाकरते थे। मेरा दोस्त दीनदार किस्म का आदमी था। टोपी उसके सिर पर रहती थी। इबादत का कोईभी वक्त वह नहीं छोड़ता था, भले ही उसके लिए बहुत जरूरी काम छूट जाए। हम ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चाकर रहे थे।बच्चे ने आकर किसी के आने की सूचना दी। अंदर भेज दो, कहकर वह बातचीत में मशगूल हो गया। चंद लम्हों बाद ही एक शख्स ने बैठकखाने में कदम रखा। दोस्त और उस शख्स की बातचीत से मालूम हुआ कि वह उसके खेतों पर काम करने वाला मजदूर था और पूरे दिन का लेखा-जोखा देने आया था। वह खड़े-खड़े बातें कर रहाथा। दोस्त ने उससे कहा, बैठ जा। वह सामने ही उकडूं बैठगया और उसने फिर अपनी बात जारी की। मेरा माथा ठनका। वह नीचे क्यों बैठा है? थोड़ी देर बाद लगभग 13-14 साल का एक लड़का चाय की ट्रे लेकर आया और करीब पड़ी एक मेज खींचकर उस पर ट्रे रखकर चला गया। ट्रे में चाय के तीन कप थे, लेकिन एक कप डिस्पोजल था। यह देखकर फिर मैं सोचने लगा कि ऐसा क्यों है? दोस्त ने उस शख्स से चाय लेने के लिए कहा। उसने पहले मना किया, लेकिन दोबारा कहने पर डिस्पोजल वाला कप उठा लिया।
अब मैं समझचुका था कि वह शख्स मूढ़े पर क्यों नहीं बैठा और उसके लिए अलग कप में चाय क्यों आई है। थोड़ी देर की बातचीत के बाद उस शख्स ने जेब से कुछनोट निकाले और दोस्त की ओर बढ़ाते हुए बोला, आज जो मंडी माल गया है, यह उसके पैसे हैं।दोस्त ने नोट गिने और अपनी जेब के हवाले कर लिए और चाय की चुस्कियां लेने लगा। उसने कुछनिर्देश उस शख्स को दिए । वह शख्स उल्टे पांव बैठकखाने से बाहर निकल गया। मैं सोच रहा था कि नोटलेते वक्त आदमी छुआछूत क्यों नहीं मानता? मैं जानता था कि दोस्त ने उस शख्स के साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया है? लेकिन मैं उसके मुंह से सुनना चाहता था। मैंने पूछा, भाई, उस शख्स के साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया तुमने। जवाब वही मिला, जो मुझे अपेक्षित था, बल्कि उससे भी ज्यादा तल्ख। उसने कहा, जूतियां पैरों में ही अच्छी लगती हैं, उन्हें सिर पर नहीं रखा जाता। उससे बहस करना बेकार था। बहस में पड़ने के बजाय मैंने मेज पर पड़े रिमोटसे टीवी ऑन कर दिया। खबर मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित थी। उसमें बताया जा रहा था कि कैसे राहत शिविरों में रहने वाले लोगों की हालत खराब थी। उनमें बच्चे दम तोड़ रहे हैं।बारिश के बाद दुश्वारियां और बढ़ गई हैं। खबर देखते-देखते मेरा दोस्त बोला, इस देश में हमारे साथ हमेशा से भेदभाव होता आया है। कोई भी सरकार हो, सब यही करती हैं। मुझसे नहीं रह गया।मैंने कहा, जब तक हम अपने मजहब के खिलाफ जाकर इंसानों को अपने पैरों की जूती समझते रहेंगे, तब तक हमारे साथ यही होता रहेगा। उसने मेरी बात को अनसुनी सी करते हुए चैनल बदल दिया।

1 comment:

  1. खरी खरी सुना दी आपने...मित्र तब अपनी सोच बदलने से रहे..

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